कविता :- जलते जंगल | Burning Forest in Uttarakhand

Burning Forest in Uttarakhand

 

ये कैसा युद्ध है ये कैसा दंगल,

क्यों धूँ-धूँ कर हैं जलते जंगल।

 

तपिश ह्रदय में है धरा झेलती,

किसकी खुशी है ये अमंगल।

 

धुआँ-धुआँ हुई है पूरी धरती,

क्यों मानुष की आंख न भरती।

 

ये तो है जननी से भी बढ़कर,

जो हम सबका जीवन तरती।

 

कौन हवा से है हाथ मिलाता,

सीने को इसके है दहलता।

 

क्या कुछ नहीं दिया जंगल ने,

कौन इसको बेखौफ जलाता।

 

जब-जब हैं ये जंगल जलते,

कितने बेजुबान हैं जिंदा जलते।

 

उनका घर भी है मानुष के जैसा,

बच्चे उनके भी हैं खूब उछलते।

 

कितनी सुन्दर है धरा हमारी।

बचाना इसे सबकी जिम्मेदारी।

 

प्रण करो कि जंगल ना दहके,

मिलकर हम सब इसको सवाँरे।

 

Forest Fire ।  Lines on Burning Forest in Uttarakhand in Hindi । Vanagni | Poem on Forest Fire in Uttarakhand 

 

 

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