सहमति – असहमति एक स्वस्थ लोकतंत्र के लिए आवश्यक।

भारत देश को अंग्रेजो ने अनेक सालों से अपना उपनिवेश बना कर रखा था अर्थात यहाँ कई साल अंग्रेज़ो ने अपने अनुसार देश की जनता के जीवन को नियंत्रित करने का प्रयास किया । उस दौर में जनता को कोई ज्यादा विशेष अधिकार प्राप्त नही थे । अनेक महापुरुषों ने अपना जीवन भारत की जनता को स्वतंत्रता का अर्थ और उसके फ़ायदे समझाने में तथा स्वतंत्रता दिलाने के लिए न्यौछावर कर दिया। तब अनेक समय की कठिन तपस्या से जनता को ये समझ आने लगा कि स्वतंत्रता कितनी आवश्यक हैं; स्वतंत्रता की महत्ता समझने से भी ज्यादा कठिन तपस्या करनी पड़ी स्वतंत्रता प्राप्त करने में।

स्वतंत्रता आंदोलन में अनेक बच्चों, युवाओं, वृद्धों , महिलाओं आदि सभी वर्गों ने अपना सर्वस्व न्यौछावर किया तब कही हमे स्वतंत्रता प्राप्त हुई। उसके बाद भारत मे अपना लोकतंत्र अर्थात जनता के लिए , जनता के द्वारा , जनता का शासन स्थापित किया गया। हमारे संविधान निर्माताओं ने इस बात का विशेष ध्यान रखा कि भविष्य में ऐसा पुनः न हो पाए कि जनता की ही आवाज दबाने की कोशिस की जाए इसलिए ही भारत मे लोकतंत्र की स्थापना की गई और प्रत्येक नागरिक को अपनी बात रखने की ( जहाँ तक देश की एकता , अंखडता को खतरा न हो) स्वतंत्रता भी दी गयी हैं। यहाँ तक लोकतंत्र में शांतिपूर्ण आंदोलन की भी अनुमति दी गयी हैं।

Importance of democracy in hindi

वाद , विवाद और संवाद के पहलुओं पर गौर किया जाए तो ये कहा भी जाता है कि जब दो बुध्दिमान व्यक्ति आपस में बहस करते हैं तो पहले वाद , विवाद अर्थात असहमति और फिर संवाद यानी सहमति बनती हैं। तो उस चर्चा से समाज के लिए अवश्य ही कुछ न कुछ सकारात्मक निकल कर आता हैं। ऐसे में अगर सरकार जनता के लिए कुछ लेकर आती हैं और जनता उनपर असहमति व्यक्त करती हैं तो इसमें ज़्यादा चिंता का विषय नही होना चाहिए क्योंकि लोकतंत्र में सहमति और असहमति चलती ही रहती हैं। हाँ इतना जरूर हैं कि जनता को सरकार की बात और सरकार को जनता की बात एक सकारात्मक दृष्टिकोण से सुननी चाहिए और सामाजिक कल्याण में जो उचित हो उसपर दोनो को अपनी सहमति देनी चाहिए।

Indian democracy in hindi

अनेक धर्म शास्त्रों और महापुरुषों ने मध्यम मार्ग को महत्ता दी हैं ; जैसे वेद और महात्मा बुद्ध का मध्यम मार्ग के विचार अत्यंत लोकप्रिय हैं । इसी तरह सरकार और जनता को समाजहित और जनकल्याण के लिए असहमति की स्तिथि में हमेशा एक मध्यम मार्ग की खोज करनी चाहिए न कि कुछ ऐसा किया जाए जिससे समाजहित और जनकल्याण के विषयों में बाधा पहुँचे।
किसी देश में कितनी ही अच्छी व्यवस्था क्यों न हो यदि वहाँ की जनता निम्न आचार , विचार, व्यवहार करती हैं तो वो अच्छी व्यवस्था भी , खराब ही सिद्ध होगी । और एक खराब व्यवस्था होते हुए भी यदि जनता उत्तम आचार , विचार , व्यवहार करती हैं तो , जनता एक ख़राब व्यवस्था को भी उत्तम सिद्ध कर सकती हैं।