कर्तव्य पालन नैतिकता के मापदंड के तौर पर | KARTAVYA PALAN PAR NIBANDH | ESSAY KARTAVYA PALAN

 

 

नैतिकता के अलग अलग मायने – 

समाज के किसी भी व्यक्ति  द्वारा किये गए कार्य को नैतिक या अनैतिक ठहराकर ही  सामाजिक व्यवस्थाओं द्वारा उस कार्य या निर्णय का पक्ष या विरोध किया जाता है | KARTAVYA PALAN 

समाज  के अनुसार सामान्यतः नैतिकता के मापन के आधार भी बदलते  रहते है – जैसे किसी समाज में  रहन-सहन, खान-पान , आदि के आधार पर ही किसी को  नैतिक या अनैतिक घोषित कर  दिया जाता है | इसी प्रकार  किसी  समाज में एक से ज्यादा विवाह को नैतिक समझा जाता है और वही दूसरी और किसी अन्य समाज में एक से अधिक विवाह को अनैतिक घोषित कर दिया जाता है |  किसी समाज में प्रेम विवाह को अनैतिक ठहराकर व्यक्तियों को समाज से निष्कासित कर दिया जाता है ; वही दूसरी और किसी अन्य  समाज में प्रेम विवाह को ख़ुशी ख़ुशी  स्वीकार कर लिया जाता है |  इसी  प्रकार अन्य नैतिक या अनैतिक के आधार पर समाज में  निर्णयों या कार्यो  का विश्लेषण  किया जाता हैं | KARTAVYA PALAN


कुछ लोग  समाज के नियमो के हिसाब से चलने को ही नैतिकता कहते है तो कुछ लोग स्वय विवेक के अनुसार चलने  को सबसे बड़ी नैतिकता समझते है | उपरोक्त चर्चा से कह सकते है कि नैतिकता शब्द खुद में बहुत बड़ा  अध्ययन क्षेत्र हैं |  इसी प्रकार किसी समाज के खुद के बनाएं  पैमानों को सार्वकालिक या सार्वदेशिक नहीं माना जा सकता हैं | 

 

 

किसी एक ही समाज द्वारा  बनाएं नियमों को नैतिक कहने में अनेक समस्याए आ सकती है जैसे कि


१. कैसे कह सकते है कि किसी समाज ने नैतिकता के जो पैमाने बनाये है , वो सभी काल और सभी स्थान में मान्य हो ; क्योकि समय और परिस्थिति के अनुसार प्रत्येक नियम कानून में परिवर्तन करना अति आवश्यक  हो जाता है | जैसे किसी समय में समलैंगिग सम्बन्धो को अनैतिक घोषित किया गया था , वही अब इन सम्बन्धो को क़ानूनी सुरक्षा मुहैया करा कर समाज में प्रतिस्थापित करने का प्रयास पूर्ण मनोयोग से किया जा रहा हैं।


२. प्रत्येक समाज पर वहाँ की भौगोलिक , सामाजिक ,आर्थिक , राजनितिक , तथा अन्य  स्थितियों का बहुत अधिक प्रभाव पड़ता हैं | अतः  प्रतेयक समाज की प्रकृति अलग अलग होती हैं ; जिस प्रकार 

जूते की एक माप  सबके  पैर के  लिए आरामदायक नहीं हो सकती

 

या चलने या दौड़ने में सहायक नहीं हो सकती है | उसी प्रकार  समावेशी  विकास {सबका सामान विकास} के लिए यह आवश्यक है कि समाज के प्रत्येक  व्यक्ति को उसकी क्षमता के अनुसार ही विकास  के पर्याप्त  अवसर दिए जाए | क्योकि कभी कभी व्यक्ति , नैतिकता के नाम पर  समाज द्वारा  बनाये गए कड़ोर नियम कानूनों के जाल  में उलझ  कर अपना विकास नहीं कर पाता  है ; और ऐसे ही रूढ़िवादी समाजों में  अनेक हुनर दम थोड़ देते हैं | 


       ऐसे में प्रश्न यह उठता है कि नैतिकता की सही परिभाषा क्या होनी चाहिए ?

 

 

कर्तव्य पालन (KARTAVYA PALAN) नैतिकता के तौर पर 


यह एक ऐसा विषय है जिसको अनेक आधारों पर परिभाषित किया जा सकता है , और प्रत्येक आधार  किसी न किसी रूप में सही भी हो सकता हैं | दोस्तों यह एक ऐसा विषय है जिस पर महापुरषो ने आदिकाल  से अनेक प्रकार से व्याख्या की हैं ; परन्तु सभी व्याख्याओं को सम्मान देते हुए | कुछ विद्वानों  की उस परिभाषा के बारे में चर्चा करेंगे ,जिसमे उन्होंने कर्तव्य पालन (KARTAVYA PALAN) को नैतिकता का प्रमुख आधार माना हैं |  


इस परिभाषा के अनुसार किसी व्यक्ति की नैतिकता का आधार उसके द्वारा निभाए गए सामाजिक कर्तव्यों को माना जा सकता है | 
उदाहरण स्वरुप ले सकते है जैसे  नेता , शिक्षक , वैज्ञानिक , इंजीनियर , किसान , सैनिक , मजदूर आदि सभी समाज के तत्व किस न किसी  प्रकार से  अपने कर्तव्यों का पालन करते  है |  अब प्रश्न यह उठता  है कि कर्तव्य पालन के आधार पर  किसी को कैसे  नैतिक या अनैतिक  घोषित किया जा सकता है ?

 जैसे कोई जन प्रतिनिधि इस आधार पर नैतिक नहीं कहा जा सकता की वो समाज में बैठ  कर कितनी ऊँची बाते करता है , या वह किस प्रकार के परिधान पहनता है , या  वह  कितनी बड़ी गाड़ी में चलता है | ये उसके नैतिकता के कोई पैमाना हुआ ही नहीं  |  बल्कि उसके नैतिकता का आधार यह होगा की जिन कार्यो के लिए जनता ने उसे अपना प्रतिनिधि चुना  है ; वो उन कर्तव्यों को कहाँ तक पूर्ण कर पाया है |   क्या चुनाव के समय के उसके व्यवहार और चुनाव के बाद के उसके व्यवहार में कोई बदलाव आया है ; कही  आम जनता उसके परिवर्तित व्यवहार से  खुद को ठगा सा महसूस तो नहीं कर रही |  और कहा तक उसने अपने किये वादों  को पूर्ण किया  हैं | 


उसी प्रकार यह पैमाना हम अन्य सामाजिक भागो पर भी लागू  कर सकते है ; जैसे किसी शिक्षक का कर्तव्य है कि  वो समाज और राष्ट्र के लिए सशक्त  व्यक्तिव्त और उत्तम मानसिकता  के युवाओ का निर्माण करें | कही कोई  शिक्षक व्यक्तिगत विचारो के आधार पर किसी  विधार्थी से भेदभाव तो नहीं कर रह है ; या कही वह शिक्षण देने में कोई लापरवाही  तो नहीं कर  रहा है |  
इसी प्रकार एक विधार्थी की नैतिकता  इसी में है कि वह पुरे कर्तव्य बोध के साथ शिक्षा ग्रहण करें | 
इस आधार पर हम अन्य सामाजिक तत्वों को भी देख सकते है | 

नैतिकता के इस आधार में भी कुछ समस्याएं आ सकती हैं , क्योकि इसमें कभी कभी विषयनिष्ठ की जगह वस्तुनिष्ठ का मामला सामने आ सकता है | परन्तु इसमें अधिकतर मुद्दों में  विषयनिष्ठ का प्रश्न ही दृष्टिगोचर होगा क्योकि समाज या अन्य सेवाओं में सरकार या अन्य सामाजिक संस्थाओ द्वारा व्यक्ति के कार्य नियमो और  कर्तव्यों को चिन्हित किया जाता हैं | 


अतः  अगर कोई व्यक्ति समाज में बड़ी बड़ी बाते करे परन्तु अगर वह अपने कर्तव्य के प्रति गंभीर नहीं है तो उसे खुद को नैतिक कहलवाने  से पहले अपनी कार्य प्रणाली पर भी विचार  करना होगा  |

इस प्रकार कुछ तत्वों या सिद्धांतो के अनुसार हम अपने कार्य का विश्लेषण कर सकते है –

  1. सत्यनिष्ठा 
  2. विषयनिष्ठा 
  3. जवाबदेही 
  4. निष्कपटता 
  5. ईमानदारी 
  6. नेतृत्व 

कि अपना कर्तव्य पालन  करते समय हम कितना इन सिद्धांतो  का पालन करते है या कितना इन सिद्धांतो का अपने जीवन में अनुसरण करते है |

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