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1. ‘ धड़ीचा कुप्रथा ‘ : जहाँ कुछ रुपयों के लिए बीच दी जाती हैं लड़किया । Dhadeecha Pratha kya hai | Dhadicha Pratha in Hindi

‘ धड़ीचा कुप्रथा ‘ : जहाँ कुछ रुपयों के लिए बीच दी जाती हैं लड़किया । Dhadeecha Pratha kya hai | Dhadicha Pratha in Hindi

भारतीय समाज विविधताओं से पूर्ण हैं, यहाँ पर कुछ दूरी पर ही खान-पान, बोली, रीति-रिवाज, परंपराओं आदि में अनेक अंतर देखने को मिलते हैं। परंतु हमेशा ही ये अंतर सकारात्मक नहीं होते हैं, बल्कि नकारात्मक भी होते हैं। यदि एक क्षेत्र आधुनिक विचारों से परिपूर्ण हैं तो कुछ क्षेत्र ऐसे भी है जहाँ अब भी किसी कमज़ोर वर्ग पर असहनीय अत्याचार होते सुनाई या दिखाई दे जाएंगे।
जहाँ एक तरफ चाँद और मंगल पर जाने की योजनाएं बनाई जा रही हैं । वहीं दूसरी ओर कई  क्षेत्र में कुछ वर्ग प्रतिदिन सुबह उठ कर अपने भाग्य को कोस रहा होता हैं और कैसे उत्पीड़न से बाहर निकला जाए, इसकी योजना बना रहा होता हैं।
अभी कुछ समय पहले हमने एक लेख आटा-साटा प्रथा पर लिखा था। अब अन्य उससे भी ज्यादा शोषित प्रथा को इस लेख में लेकर आएं हैं, जिसका नाम है – धड़ीचा प्रथा (Dhadeecha Pratha)। इन्हें प्रथा कहना तो कही से सही नहीं होगा क्योंकि ये प्रथाएँ नहीं कुप्रथाएं हैं। 
इस लेख में हम जानेंगे कि :
धड़ीचा प्रथा (Dhadicha Pratha) क्या है ? / Dhadicha Pratha kya hai  / Dhadicha system
धड़ीचा प्रथा (Dhadeecha Pratha) कहाँ होती हैं ?
धड़ीचा प्रथा (Dhadeecha Pratha) या ऐसी अन्य प्रथाएं क्यों मौजूद  है ?
धड़ीचा प्रथा (Dhadicha Pratha) य अन्य प्रथाओं का अंत कैसे किया जाए ?

 

धड़ीचा प्रथा (Dhadeecha Pratha) क्या हैं / What is Dhadicha Pratha 

धड़ीचा प्रथा (Dhadeecha Pratha) में औरतों को कुछ दिन, कुछ महीने या साल के लिए किराएं पर लेने का कार्य किया जाता है। कह सकते है कि कुछ पैसे देकर एक पक्ष द्वारा लड़कियों को किसी अन्य पक्ष को बेच दिया जाता है। ये सब निर्भर करता है कि अगला व्यक्ति किस प्रकार से उसका दाम लगाता हैं। इस कुप्रथा में खुद महिला के घर वाले भी शामिल होते हैं।
ये कुप्रथा मध्य प्रदेश के शिवपुरी जिले के एक भाग से सम्बंधित है। जहाँ कोई व्यक्ति किसी महिला के दाम देकर उसे खरीदता हैं। वो दाम देकर महिला को महीने, साल के लिए खरीद सकता हैं। इस प्रक्रिया का पूरा लेखा लिखित में स्टाम्प पेपर पर किया जाता हैं। जब उसका समय पूरा हो जाते है, तो उस महिला को किसी अन्य व्यक्ति को बेच दिया जाता हैं या वही व्यक्ति ओर पैसे देकर उसे अधिक समय के लिए रख सकता हैं। ये कुप्रथा ऐसी है जिससे सोचने पर भी एक अत्याचार की तस्वीर सामने आ जाती है। सोच सकते है जिनकों इस कुप्रथा से शोषित होना पड़ता है, वो किस स्थिति से गुजरते होंगे।   

धड़ीचा प्रथा (Dhadeecha Pratha) से शोषित महिलाएं या लड़किया अनेक सवालो के जवाब चाहती होगी समाज से – 

अब सवाल उठता है कि क्या हम शिवपुरी की उस जमीन जहाँ धड़ीचा प्रथा (Dhadicha Pratha) चलती है, वहाँ खड़े होकर ये कह सकते है कि गर्व करिए आप भारत भूमि पर हैं। शायद कभी भी नहीं; एक पढ़ा लिखा, समझदार, जागरूक व्यक्ति तो कभी भी यह उस जमीन पर खड़ा होकर नहीं कह पाएगा। 
शायद कुछ व्यक्तियों को ये बात अजीब लगे। और कुछ को ये सुनकर विश्वास भी न हो रहा हो, परंतु यही सत्य हैं। भारत विविधताओं का देश हैं। जिस पर हमेशा से गर्व महसूस किया जाता रहा हैं। परंतु जरूरी नहीं कि हमेशा ही विविधता हमारे लिए प्रसन्नता का अवसर लेकर आएं। बहुत बार ये विविधताएं बहुत कुछ सोचने, विचारने, को भी मजबूर करती हैं। 
क्या ये वही भारत भूमि है जहाँ नारी शक्ति की उपासना में व्रत रखें जाते हैं।
क्या ये वही देश का भाग है जहाँ ज्ञान की देवी सरस्वती , समृद्धि की देवी लक्ष्मी , अन्याय पर न्याय की देवी – शक्ति की देवी माँ दुर्गा की उपासना की जाती हैं।
क्या ये वही देश है जहाँ दुष्टों का अंत करने वाली माँ काली की उपासना की जाती हैं।
 
इन सबका एक ही जवाब हैं कि हाँ शिवपुरी भी उसी भारत का एक भाग हैं।

धड़ीचा प्रथा (Dhadicha Pratha) ये सिद्ध करती है  कि सामाजिक क्रियाएं सकारात्मक  ही नहीं नकारत्मक भी होती है – 

समाज अनेक सामाजिक क्रियाओं का पुंज होता हैं। वो सामाजिक क्रियाएं कैसी भी हो सकती हैं, नकारात्मक भी और सकारात्मक भी। ये सब निर्भर करता है व्यक्तियों पर। हमारा समाज अनेक सामाजिक समूहों, सामाजिक संस्थाओं के द्वारा ही बना हुआ हैं। समाज मे समय के साथ-साथ परिवर्तन होते रहते हैं। अनेक रूढ़िवादी प्रथाओं को त्याग दिया जाता है उनकी जगह नई प्रथाएँ परम्पराएँ जगह ले लेती हैं। अनेक ऐसे उदाहरण है, जो शोषित प्रथाएँ थी उन्हें समय-समय पर त्यागा गया हैं। जैसे सती प्रथा, बाल विवाह आदि प्रथाओं को समय समय पर त्यागा गया हैं। परंतु इसका मतलब ये नहीं है कि अभी समाज से सभी कुप्रथाएं नष्ट हो गयी हैं। 
ऐसा नही है कि सरकार ने इस कुप्रथा के खिलाफ़ कोई संज्ञान नही लिया हैं। इस कुप्रथा के खिलाफ सरकार ने समय-समय पर कार्यवाही की हैं। और अनेक व्यक्तियों को पकड़ा भी गया हैं। अनेक औरतों को खरीदने वाले व्यक्तियों को भी पकड़ा गया हैं। परंतु इसका मतलब ये नही है कि इन कुप्रथाओं का जड़ से अंत हो गया हैं। अनेक ऐसी प्रथाएँ वहाँ के स्थानीय समाज की स्वीकृति से उनके सामने चलती रहती हैं। जिसको खुद वहाँ का स्थानीय समाज बचाने का प्रयास करता हैं।
आज भी समाज में अनेक कुप्रथाएं मौजूद हैं जैसे कि आटा-साटा कुप्रथा, धड़ीचा कुप्रथा ।  मालूम नहीं इस इतने बड़े भू-भाग पर कितनी कुप्रथाएं चल रही होंगी। यहाँ सवाल ये भी है कि इनको कैसे रोका जाए। 

धड़ीचा प्रथा (Dhadicha Pratha) व आटा साटा ( AATA SATA PRATHA)
आदि कुप्रथाओं क्यों समाज में मौजूद रहती है  – 

 

  • जागरूकता का आभाव।
  • महिलाओ को एक वस्तु के समान समझना। ये सत्य है आज भी समाज में अनेक ऐसे लोग मौजूद है जो महिला को मात्र उपभोग की वस्तु समझते है।
  • स्थानीय समाज  का इसके खिलाफ आवाज न उठाना या कहे की स्थानीय समाज की सहयोगी की भूमिका होना।
  • प्रशासन की उदासीनता।
  • स्थानीय समाज का प्रशासन को सहयोग न करना।
  • नैतिक मूल्यों पर आधारित पर्याप्त शिक्षा का आभाव।
  • लड़कियों का जन्म दर कम होना। 
  • लड़कियों की भृण हत्या करना।
  • पढ़े-लिखे जागरूक व्यक्तियों का उदासीन बने रहना।
  • स्थानीय नेताओ का अपने  लाभ के लिए  इन जैसे कुप्रथाओ के खिलाफ आवाज न उठाना।

धड़ीचा  प्रथा (Dhadeecha Pratha) व आटा साटा ( AATA SATA PRATHA)
आदि कुप्रथाओं को रोकने के लिए क्या  किया जा सकता हैं  – 

 

समाज का दायित्व :

सबसे पहले समाज को इसमे आगे आना होगा। यदि समाज इसका बचाव करने का कार्य करेगा तो ऐसी कुप्रथाएं चलती ही रहेगी। सबसे पहले समाज को प्रशासन के साथ सहयोग करके इन कुप्रथाओं के खिलाफ़ आवाज़ उठानी होगी। समाज को प्रशासन की कार्यवाही में सहयोग करना होगा।
जब तक समाज इन कुप्रथाओं को संरक्षण देता रहेगा। तब तक इन कुप्रथाओं का समूल अंत करना बहुत मुश्किल कार्य हैं। 

जागरूकता का अभाव – 

इन सब कुप्रथाओं को बढ़ावा देने में जागरूकता का अभाव भी कहीं न कहीं कारण बनता हैं। अतः ये आवश्यक है कि इन क्षेत्रों में स्कूल स्तर से ही आधुनिक मूल्यों को पढ़ाने और सिखाने में जोर दिया जाए। एक शिक्षा ही ऐसा शस्त्र है जो सभी नकारात्मक विचारों को नष्ट कर सकता हैं। अतः इक्कीसवी सदी में आधुनिक मूल्यों का प्रचार-प्रसार सभी जगह किया जाए। 

सामाजिक संस्थाओं की भूमिका –

धड़ीचा कुप्रथा, आटा साटा कुप्रथा ऐसी अनेक कुप्रथाओं को रोकने में सामाजिक संस्थाओं की भूमिका अत्यंत अहम हैं। सामाजिक संस्थाएं इन कुप्रथाओं के खिलाफ़ लगातार काम भी करती रही हैं। और इन जैसी अनेक कुप्रथाओं को रोकने में सफल भी रही हैं। अतः ये जरूरी है कि सामाजिक संस्थाएं ऐसी कुप्रथाओं के खिलाफ अभियान चलाती रहे और इनका अंत करती रहे। 

प्रशासन द्वारा निष्पक्ष कार्रवाही की जाये  :

प्रशासन को इन कुप्रथाओं के खिलाफ़ एक दृढ़ इच्छा शक्ति और निष्पक्षता से कार्यवाही करनी चाहिए। समय-समय में प्रशासन पर अनेक आरोप लगते रहे हैं। जो कहीं न कहीं प्रशासन पर समाज की उम्मीदों को गहरा आघात लगाती हैं। अतः ये जरूरी है कि प्रशासन अपने ईमानदार अधिकारियों को इन कुप्रथाओं के खिलाफ कार्य करने का काम दे। और यदि कोई प्रशासन का व्यक्ति किसी लालच में ऐसे व्यक्तियों का साथ देने का कार्य करता है, तो उसके खिलाफ सख्त कार्रवाही की जानी चाहिए।

व्यक्तिगत स्तर पर प्रयास :

व्यक्तियों को जैसे भी हो सके व्यक्तिगत स्तर पर भी इन कुप्रथाओं के खिलाफ आवाज़ उठानी चाहिए। आज सूचना प्रौद्योगिकी का समय हैं। अनेक ऑनलाइन माध्यमों से जैसे कि You Tube , Facebook , Twitter आदि से प्रत्येक व्यक्ति इन कुप्रथाओं के खिलाफ़ आवाज उठा सकता हैं। 

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