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1. स्वतंत्रता सेनानी ठाकुर अर्जुन सिंह :- नमक कानून तोड़ने पर सहारनपुर से पहली गिरफ़्तारी ,फिर आजाद भारत में सहारनपुर के पहले चेयरमैन भी बने । Freedom Fighter Thakur Arjun Singh

 स्वतंत्रता सेनानी ठाकुर अर्जुन सिंह :- नमक कानून तोड़ने पर सहारनपुर से पहली गिरफ़्तारी ,फिर आजाद भारत में सहारनपुर के पहले चेयरमैन भी बने । Freedom Fighter Thakur Arjun Singh

Freedom Fighter Thakur Arjun Singh

भारत में जब ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन मौजूद था तो उनके अत्याचार दिन-प्रतिदिन भारतवासियों को सहने पड़ते थे। अंग्रेजी शासन ने भारतीयों पर अत्यंत क्रूरता से शासन किया था। किसान से लेकर मजदूर , बच्चे से लेकर बुजुर्ग, महिला से लेकर पुरूष सभी उनके अत्याचारों से परेशान हो चुके थे। जिससे भारतीयों के अंदर एक ज्वाला भड़क रही थी , जो सिर्फ एक ही माँग करती थी – ” भारत की आजादी “
जहाँ एक तरफ अंग्रेजों का शासन अत्याचारों की हदें पार कर चुका था वही दूसरी तरफ अनेक महापुरुष  जैसे कि स्वामी विवेकांनद, स्वामी दयानन्द, दादा भाई नौराजी, अनेक कवि , भारतीयों में आजादी की ज्वाला जगाने में लगे हुए थे। आजादी की चाह में अनेक महापुरुषो ने अपना सर्वश्व न्यौछावर कर दिया था। गाँव से लेकर शहर तक अनेक स्वतंत्रता सेनानियों ने भारत की आजादी में अपना-अपना योगदान दिया था।
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जहाँ राष्ट्रीय स्तर के नेताओं को इतिहास ने स्वतंत्रता आंदोलन में प्रथम पंक्ति में स्थान दिया हैं जैसे महात्मा गांधी, दादाभाई नौरोजी, सुभाष चंद्र बोस, भगत सिंह आदि। वही अनेक स्वतंत्रता सेनानी ऐसे भी थे जिनका स्वतंत्रता संग्राम में योगदान कहीं से भी कम नही था। परंतु शासन प्रशासन की उदासीनता के कारण या अन्य कुछ कारणों से हम उनके योगदान को भारत के कोने-कोने तक ले जाने में पूरी तरह से सफल नहीं हो पाए हैं ।
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उन स्वतंत्रता सेनानियों के व्यक्तित्व का तेज ही ऐसा था कि उनके विषय में लंबे समय तक भारत की जनता को अनजान रखना इतना आसान नहीं था। ऐसे ही उत्तर प्रदेश राज्य के सहारनपुर जिले के गांव भावसी रायपुर के एक स्वतंत्रता सेनानी थे – ठाकुर अर्जुन सिंह (Freedom Fighter Thakur Arjun Singh)। 
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सहारनपुर जिले के एक छोटे से गाँव के किसान परिवार में जन्मे ठाकुर अर्जुन सिंह (Thakur Arjun Singh) का व्यक्तित्व इतना प्रभावशाली था कि वो आजाद भारत में सहारनपुर जिला पंचायत बोर्ड के प्रथम अध्यक्ष भी बने ( First Chairman Of Saharanpur District Board) और 10 साल तक अपनी सेवा प्रदान की। ये सम्पूर्ण जिले के लिए एक गौरवशाली बात है कि सहारनपुर जिला पंचायत बोर्ड को ऐसे महापुरुष की सेवा प्राप्त करने का अवसर मिला था।

स्वतंत्रता आंदोलन में स्वतंत्रता सेनानी ठाकुर अर्जुन सिंह (Freedom Fighter Thakur Arjun Singh)  का योगदान 

 

 

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आप सभी ने इतिहास में पढ़ा होगा कि स्वतंत्रता प्राप्ति के लिए महात्मा गाँधी के नेतृत्व में अनेक आंदोलन हुए थे। उन्ही में से एक था सविनय अवज्ञा आंदोलन।  जिसमें नमक के मुद्दे को केंद्रीय मुद्दा बनाया गया था तथा जगह-जगह नमक कानून तोड़ने  की योजना बनायीं गयी थी।
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इसी क्रम में गाँधी जी द्वारा 1930 में जब सविनय अवज्ञा आंदोलन शुरू हुआ तो, गाँधीजी दांडी मार्च पर निकल गए थे।  इस आंदोलन के समर्थन में जगह जगह जन जागरण के लिए सम्मेलनों का आयोजन किया गया था।
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सहारनपुर जिले में भी इस प्रकार के आयोजन किये गए थे।  8 मार्च 1930 को सहारनपुर के गांव मोरा में कांग्रेस की एक कॉन्फ्रेंस हुई थी। जिसमे स्वतंत्रता सेनानी ठाकुर अर्जुन सिंह (Freedom Fighter Thakur Arjun Singh) के आह्वाहन पर क्षेत्र के लोगो द्वारा नमक कानून तोड़ा गया था। जिसके विरोध में ब्रिटिश हुकूमत द्वारा सहारनपुर जिले में पहली गिरफ़्तारी स्वतंत्रता सेनानी ठाकुर अर्जुन सिंह (Freedom Fighter Thakur Arjun Singh) की हुई थी साथ ही उन पर राजद्रोह का आरोप लगा दिया गया था।
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उनकी गिरफ़्तारी की खबर पुरे क्षेत्र में फ़ैल गयी थी। जिसके परिणाम-स्वरूप जिले के अलग-अलग हिस्सों में जैसे कि देवबंद, नानौता, रूड़की, सरसावा आदि में आम सभाओ का आयोजन किया गया था। कौमी सप्ताह मनाते हुए विदेशी कपड़ो के बहिष्कार स्वरुप विदेशी कपड़ो की होली जलाई गयी थी। इस दौरान जन समूह में ब्रिटिश सत्ता के खिलाफ बड़े स्तर पर आक्रोश व्याप्त था। जिससे हुकूमत में इस कदर डर था कि मुक़दमे की सुनवाई जेल में ही करनी पड़ी थी। जिसमे स्वतंत्रता सेनानी ठाकुर अर्जुन सिंह (Freedom Fighter Thakur Arjun Singh)  को एक वर्ष के कठोर कारावास की सजा सुनाई गयी।
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4 मार्च  १९३१ , गाँधी – इरविन समझोते की शर्तो  के तहत उनकी रिहाई हुई थी।  1932 में जब आंदोलन पुनः शुरू हुआ तो फिर ६ माह के लिए उन्हें जेल में डाल दिया गया। स्वतंत्रता सेनानी ठाकुर अर्जुन सिंह (Freedom Fighter Thakur Arjun Singh) अंग्रेजो के अत्याचारों से न कभी डरे और न ही कभी झुके। ठाकुर अर्जुन सिंह का देश के प्रसिद्ध क्रांतिकारियों से परिचय था। वो दृढ़ इच्छाशक्ति और बहादुरी से स्वतंत्रता प्राप्ति के लिए अंग्रेजो के खिलाफ लड़ते रहे। ठाकुर साहब का मातृभूमि के प्रति समर्पण इसी से समझ सकते है कि उन्होंने अंग्रेजो की नाक में इस प्रकार दम कर दिया था कि अंग्रेजी हुकूमत को उनके पीछे ख़ुफ़िया विभाग लगाना पड़ा था ।
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 उस समय के प्रसिद्ध निबंधकार, पत्रकार कन्हैया मिश्र प्रभाकर की पत्रिकाओं में भी ठाकुर अर्जुन सिंह की स्वतंत्रता आंदोलन की गतिविधियों के बारे में पढ़ने को मिलता हैं ।

एक प्रचारक के रूप में स्वतंत्रता सेनानी ठाकुर अर्जुन सिंह (Freedom Fighter Thakur Arjun Singh) का योगदान 

ठाकुर अर्जुन सिंह एक निडर स्वतंत्रता सेनानी के साथ-साथ आर्य समाज के प्रचारक भी थे। ये सभी जानते है कि स्वामी दयानन्द और आर्य समाज का स्वतंत्रता के आंदोलन में विशेष योगदान रहा है। यहाँ तक कि  उस समय अधिकतर स्वतंत्रता सेनानी आर्य समाज के अनुयायी थे। ठाकुर अर्जुन सिंह ने भी जगह-जगह जाकर आर्य समाज के प्रचारक के रूप में अपना योगदान दिया था। उस समय आर्य समाज के प्रसिद्ध व्यक्तित्व और आर्य नेता महात्मा नारायण स्वामी जी के साथ ठाकुर अर्जुन सिंह उनके आश्रम में भी रहे और आर्य समाज की गतिविधियों में अपना योगदान दिया।  वही सहारनपुर के तीतरो क्षेत्र के प्रसिद्ध व्यक्ति वेदमित्र जी, ठाकुर साहब के अच्छे मित्र थे।
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ठाकुर अर्जुन सिंह 24 साल की उम्र में ही बिरालसी स्तिथ गुरुकुल के अधिष्ठाता बन गए थे।

पूर्व प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गाँधी द्वारा ताम्रपत्र देकर किये गए थे सम्मानित  

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स्वतंत्रता के पच्चीसवें वर्ष के अवसर पर स्वतंत्रता संग्राम में स्मरणीय  योगदान के लिए राष्ट्र की ओर से तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा  गाँधी ने ताम्रपत्र भेंट किया था।

स्वतंत्रता सेनानी ठाकुर अर्जुन सिंह (Freedom Fighter Thakur Arjun Singh)  सहारनपुर के पहले चेयरमैन भी रहे  ( First Chairman Of Saharanpur District Board)

 

ये ठाकुर अर्जुन सिंह के व्यक्तित्व विशेषताओं का ही परिणाम था कि जिस जिले में अंग्रेज हुकूमत ने उन्हें गिरफ्तार किया था। आजाद भारत में उसी जिले में वो जिला पंचायत बोर्ड के डिस्ट्रिक्ट चेयरमैन भी बने। 10 साल तक ठाकुर अर्जुन सिंह ने इस पद को सुशोभित किया। उनके चेयरमैन बनने का किस्सा भी बड़ा ही दिलचस्प है। जिसके बारे में उस समय के लेखक कन्हैया मिश्र प्रभाकर ने अपनी पत्रिका में वर्णित किया था। जो इस प्रकार है:-

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अपने लिए किसी से कुछ कहना उनके स्वभाव के विरुद्ध है,  फिर जोड़तोड़ के इस युग में वे डिस्ट्रिक्ट-बोर्ड के चेयरमैन कैसे चुने गए ?  उनके जीवन विकास का यह एक अहम सवाल है और मैं कहना चाहता हूं कि हंसी-हंसी में यह हो गया ।

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गांव के कुछ  लोगों ने उनसे पिछले चुनाव में डिस्ट्रिक्ट बोर्ड की मेम्बरी के लिए खड़े होने को कहा ;  कहा क्या, वे पीछे पड़ गए, पर कहाँ वे, कहा मेम्बरी-सेम्बरी ? वे बहुत बचे, बहुत कतराएं, कनियाँ काटी और झांसे दिए,  पर कहने वालों ने एक न सुनी, तो उन्होंने एक टालू मिक्सचर उन्हें दिया –  ” मेम्बरी क्या,  लड़ेंगे,  तो चेयरमैनी के लिए लड़ेंगे ?”  लोग मान गए ।

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मेम्बरी निपटी तो चैयरमैनी आई , तो लोगों ने आ घेरा। बचने की कोई गली ना थी, उनके साथ उठे, वे एक दिन सहारनपुर आ गए।  कांग्रेस की दोनों पार्टियों के उम्मीदवार मैदान में थे।  सोचा – जगह ही ना होगी, तो ये कहाँ के लिए जिद करेंगे ।
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आए दोनों दलों के नेताओं से मिले और यह क्या कि दोनों दलों ने आप मे अपनी-अपनी जीत समझी— आप चेयरमैन चुने गए ।

एक व्यक्तित्व में अनेक विशेषताओं को समाहित किये – स्वतंत्रता सेनानी ठाकुर अर्जुन सिंह (Freedom Fighter Thakur Arjun Singh )

 

ठाकुर अर्जुन सिंह बहुँमुखी व्यक्तित्व के धनी थे। ठाकुर साहब अपने व्यक्तित्व में अनेक विशेषताओं को समाहित किये हुए थे। उनके व्यक्तित्व की प्रभावशीलता का अनुमान आप यही से लगा सकते है कि मात्र 24 साल की उम्र में वो सहारनपुर क्षेत्र के बिरालसी स्तिथ गुरुकुल के अधिष्ठाता बन गए थे।  वो एक स्वतंत्रता  सेनानी, एक  लेखक, एक प्रचारक, सहारनपुर जिले के प्रथम चेयरमैन, अनेक भाषाओ  के जानकार थे।

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उनके व्यक्तित्व का वर्णन लेखक कन्हैया मिश्र प्रभाकर ने बहुत अच्छे से किया है। जिसको हम पूर्ण रूप से यहाँ उपलब्ध करा रहे है। आभार सहित श्री कन्हैया लाल प्रभाकर द्वारा ठाकुर अर्जुन सिंह के विषय मे लिखित एक लेख का विवरण यहाँ प्रस्तुत कर रहे हैं। जिससे आप ठाकुर अर्जुन सिंह के विशाल व्यक्तित्व, उनका मातृ भूमि से प्रे , उनके व्यवहार कुशल व्यक्तित्व के बारे में आप देख पाएंगे ।

 

ठाकुर अर्जुन सिंह :  हमारे चेयरमैन ———— श्री कन्हैयालाल मिश्र प्रभाकर 

 

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 ठाकुर अर्जुन सिंह : हमारे चेयरमैन 
      श्री कन्हैयालाल मिश्र प्रभाकर
” लो ठाकुर अर्जुन सिंह भी पकड़े गए।  बस धर-पकड़ शुरू है, आप भी बिस्तर बांध कर तैयार रहिए !”
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उस दिन शाम को एक साथी ने यह खबर दी, तो हंसकर मैंने कहा-जो पकड़ कर ले जाएगा, वह बिस्तर भी देगा। आखिर हम सरकार के मेहमान होंगे, किसी गरीब-गुर्बा के नहीं। “
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गांधीजी का दांडी मार्च शुरू होने वाला था और गिरिफ्तारियों  की गर्मी अभी आई ना थी , पर सहारनपुर जिले के सोना-मोरा में एक राजनैतिक कान्फ्रेंस हो चुकी थी। यह भारत की नहीं, तो इस प्रांत की- नए युग में- पहली राजनैतिक कॉन्फ्रेंस अवश्य थी।
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इसके सभापति थे श्री हीरा वल्लभ त्रिपाठी और स्वागताध्यक्ष श्री ठाकुर अर्जुन सिंह।
त्रिपाठी जी तो कई दिन पहले गिरफ्तार हो ही चुके थे , यह आज ठाकुर अर्जुन सिंह भी पकड़े गए, तो हम कांग्रेसियों ने अपनी अपनी ओर एक तांक-झाँक की कि जाने कब, किसके हाथों 52 तोले का सरकारी कंगन पड़ जाए ! जब हम हथकड़ी को इसी तरह याद क्या करते थे- कैसे मस्ती के दिन थे वे!
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1930 में पहले-पहले मैंने ठाकुर अर्जुन सिंह का नाम सुना और इसके कुछ महीने बाद जब मैं भी जेल पहुंचा, तो वहां पहली बार उन्हें देखा। 
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जेल का लाल पटिया, सफेद नीकर और लाल पटिया ही बनियाननुमा कुरता, पर दोनों बेहद उजले-धुले, 
भरा मघरा कद, होठ की कमान के किनारे तक लगी डॉक्टर अंसारी जैसी मूछें,  ठुके से घुटने, सधे से कंधे और चिकनी-चमकती पेशानी, वे एक में एक कमर के पीछे हाथ लिए एक नपी सी चाल में घूम रहे थे।
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उन्हें देखते ही उनकी सुरुचि की छाप मुझ पर पड़ी, पर साथियों से यह सुनकर कि उनके कपड़ों की चमक किसी साबुन की मोहताज नहीं होती और पेशानी की चिकनाई किसी तेल की,  वे मेरे लिए “जेल की एक विशेषता” हो गए।
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उसी दिन वे  ‘ए’ क्लास के एक कैदी से हंसकर कह रहे थे –   
“आपके कपड़ों में भी चमक हैं और मेरे कपड़ों में भी,  पर आप की चमक आपके धोबी की है और मेरी चमक,  मेरे हाथों के परिश्रम की; बस इतना ही फर्क है । “
यह सुना तो सोचा कि ठाकुर अर्जुन सिंह में सुरुचि ही नहीं,  जीवन का एक दर्शन भी है और उसके बाद तो मैं उनके निकट आता गया और उन्हें पाता गया।
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 वे देहात में जन्मे पले और देहात में ही रहे-जीए , पर जीवन का रहन-सहन हो या बातचीत की शालीनता,  उन्हें भारत के श्रेष्ठतम नागरिकों में बैठाया जा सकता है । बरसों के साथ में मैंने उनके व्यवहार में ही न कभी ढ़ील देखी न बातचीत में –  सच यह है कि अपनी देह की तरह ही वे अपने मानसिक व्यक्तित्व में भी भरे पूरे हैं।
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 उर्दू फारसी के वे पण्डित हैं और कई पुस्तकों के लेखक भी । उनकी कलम फ़ारसी का सहारा लिए ही नही,  फ़ारसी को अपने में समाये और समोये चलती है ; जैसे उनके जीवन की सरलता साहित्य में आकर बगावत कर बैठी हो !
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मैंने कहा कि वे बातचीत और व्यवहार;  दोनों में कभी ढीले नहीं होते, निश्चय ही उनका स्वभाव गंभीर है,  पर उनकी गंभीरता में गुमसुम है, ना फूं-फॉ । वे बातचीत में पूरी तरह रस लेते हैं और खिलखिलाकर इस तरह हंसते हैं कि पास पड़ोस तक उसकी खबर पहुंचे ।
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उनका मजाक कभी कभी तो सुई की नोक-सा भी हो जाता है कि चुभन तो हो पर खून ना निकले । जेल में दीवानी के कैदी यंग से उनकी दोस्ती हो गई । यंग की बीवी जेल में उससे मिलने आई,  तो उसने अपने दोस्त ठाकुर साहब की बहुत बहुत सारी तारीफें की और यह भी कहा कि वे बहुत अच्छे चित्रकार हैं। 
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 इस बातचीत में यंग की बीवी ने बहुत दिलचस्पी ली,  तो यंग ने ठाकुर साहब को संदेश भेजा कि मेरी बीवी के लिए अपना कोई पेंटिंग भेंट करो।  ठाकुर साहब ने हाथों-हाथ एक कागज पर स्केच करके , उस कागज को गोल मोड़कर धागे से बांध दिया और अंग्रेजी में उस पर लिख दिया –यंग ।
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यंग ने मुडा , बंधा ही यह अपनी बीवी को दे दिया कि– ” देखो,  हमारे दोस्त ने इतनी जल्दी हमारा ही पेंसिल स्केच बना दिया है । ”  बीवी ने उसे उत्साह से खोला,   तो लोटपोट । वह हंसते-हंसते दोहरी हुई जा रही है और यंग भौंचक देख रहा है ,पर समझ कुछ नहीं पा रहा । अंत में जब बीवी ने वह तस्वीर उस पर फेंकते हुए कहा — ” तो जेल में आकर जनाब ने यह तरक्की की है। “  तो वह झेंपा कि समोसा हो गया ।  बात यह थी कि कागज पर एक गधे की तस्वीर थी और वह गधा भी यंग (जवान ) था और यंग भी यंग !  लौटकर वह ठाकुर साहब को इस तरह लिपटा कि हम सब लोटपोट हो गए।
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अपने लिए किसी से कुछ कहना उनके स्वभाव के विरुद्ध है,  फिर जोड़तोड़ के इस युग में वे डिस्ट्रिक्ट- बोर्ड के चेयरमैन कैसे चुने गए ?  उनके जीवन विकास का यह एक अहम सवाल है और मैं कहना चाहता हूं कि हंसी हंसी में यह हो गया ।
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गांव के कुछ  लोगों ने उनसे पिछले चुनाव में डिस्ट्रिक्ट बोर्ड की मेम्बरी के लिए खड़े होने को कहां;  कहा क्या , वे पीछे पड़ गए , पर कहां वे , कहा मेम्बरी-सेम्बरी ? वे बहुत बचे , बहुत कतराएं , कनियाँ काटी और झांसे दिए ,  पर कहने वालों ने एक न सुनी , तो उन्होंने एक टालू मिक्सचर उन्हें दिया –  ” मेम्बरी क्या,  लड़ेंगे,  तो चेयरमैनी के लिए लड़ेंगे ?”  लोग मान गए ।
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मेम्बरी निमटी तो चैयरमैनी आई , तो लोगों ने आ घेरा । बचने की कोई गली ना थी , उनके साथ उठे, वे एक दिन सहारनपुर आ गए।  कांग्रेस की दोनों पार्टियों के उम्मीदवार मैदान में थे।  सोचा – जगह ही ना होगी , तो ये कहां के लिए जिद करेंगे ।
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आए दोनों दलों के नेताओं से मिले और यह क्या कि दोनों दलों ने आप मे अपनी-अपनी जीत समझी— आप चेयरमैन चुने गए ।
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अब आप साधक से शासक हो गए।  आपकी शासन नीति क्या है ? मेल मोहब्बत और काम चलाना; अपने मातहतों को वे धमकाते हैं,  पुचकराते है और काम में लगा देते हैं,  अपराध होने पर भी उखड़ते नहीं।  तभी उनके बोर्ड में क्रांति भले ही ना हो,  शांति अवश्य हैं,  जैसा कि उनके जीवन में।
 सच्चाई यह है कि वह चिर अतीत के बांके राजपूती जीवन में सांस लेते सोचते और जीते हैं। 
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हर युग की अपनी खूबियां- खामियां होती है।  अब यह आपकी मर्जी है कि आप इस वक्त के कहां तक प्रशंसक हो और कहां तक न हो। 
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.स्वतंत्रता सेनानी ठाकुर अर्जुन सिंह (Freedom Fighter Thakur Arjun Singh) ( First Chairman Of Saharanpur District Board)

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