बाल गंगाधर तिलक – एक निर्भीक , उग्र राष्ट्रवादी नेता और समाज सेवक। BAL GANGADHAR TILAK In Hindi

बाल गंगाधर तिलक ( BAL GANGADHAR TILAK ) एक उग्र राष्ट्रवादी, समाज सेवक , वकील और स्वतंत्रता सेनानी थे।  बाल गंगाधर तिलक भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में एक अहम भूमिका रखते हैं तथा वह स्वतंत्रता संग्राम के एक लोकप्रिय नेता थे।  बाल गंगाधर तिलक के स्वतंत्रता आंदोलन में उनके  योगदान को भुलाया नहीं जा सकता है।
बाल गंगा तिलक ( BAL GANGADHAR TILAK ) ने ब्रिटिश सरकार के खिलाफ दमदार तरीके से आवाज उठाने का कार्य किया था।  इसी कारण से ब्रिटिश अधिकारियों द्वारा उन्हें भारतीय अशांति के पिता कहा जाता था।  बाल गंगा तिलक लोगों के मध्य अत्यधिक लोकप्रिय थे इसीलिए उन्हें लोकमान्य” की उपाधि भी मिली हुई थी। तिलक को हिन्दू राष्ट्रवाद का पिता भी कहा जाता हैं।

तिलक ने शिक्षा के क्षेत्र मेभी अपना योगदान दिया। इन्होने सावरकर मिलकर ऐसी शिक्षण संस्थान बनाने का प्रयास किया जो मूल्य में शिक्षा उपलब्ध करा सके। पूना में न्यू इंग्लिश स्कूल स्थापित करने में भी इनका अहम् योगदान था।

बाल गंगाधर तिलक ( BAL GANGADHAR TILAK )  जीवन परिचय –

बाल गंगाधर तिलक ( BAL GANGADHAR TILAK ) का जन्म 23 जनवरी 1856 को वर्तमान महाराष्ट्र निश्चित रत्नागिरी जिले के गांव चिखली में हुआ था।  बाल गंगाधर तिलक पेशे से एक वकील थे।
लोकमान्य तिलक की मृत्यु 1 अगस्त 1920 को हो गयी थी।

स्वतंत्रता आंदोलन में बाल गंगाधर लोकमान्य तिलक जी (BAL GANGADHAR TILAK) का  योगदान

बाल गंगाधर तिलक का नारा

स्वराज मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है और मैं इसे लेकर ही रहूंगा

उनके इसी नारे से उनके व्यक्तित्व की एक स्पष्ट उग्र राष्ट्रवादी की छवि नजर आ जाती हैं।  बाल गंगाधर तिलक अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ अपनी आवाज को जोरदार और तीर्व तरीके से रखने के लिए जाने जाते है।  प्रारंभिक राष्ट्रवादियों में उन्हें उग्रवादियों की श्रेणी में रखा जाता है। अपनी इसी निर्भीकता और स्वाभिमान के कारण उन्हें तीन बार जेल भी जाना पड़ा।   1897, 1909 और 1916 में जेल गए थे।

जनता में स्वतंत्रता प्राप्ति हेतु जागरूकता फैलाने के लिए और उन को एकजुट करने के लिए ही बाल गंगाधर तिलक ने  होमरूल लीग की स्थापना की थी । बाल गंगाधर तिलक ने स्वतंत्रता प्राप्ति के लिए जनता में एकजुटता फैलाने के लिए ही गणेश महोत्सव और शिवाजी उत्सव जैसे कार्यक्रमों का आयोजन बड़े पैमाने पर करने का कार्य किया था। गणेश महोत्सव और शिवाजी उत्सव  महाराष्ट्र और बंगाल में स्वदेशी अभियान का एक माध्यम बन गया था। बंगाल विभाजन के विरोध में हुए बंग भांग आंदोलन में तिलक ने अहम् भूमिका निभाई थी।  पूना व बम्बई में इस आंदोलन का नेतृत्व बाल गंगाधर तिलक ने ही किया था। स्वदेशी व बहिष्कार आंदोलन आंदोलन के दौरान इनको देश में प्रसारित करने में भी तिलक का अहम् योगदान व भूमिका थी।

वर्तमान में भी अनेक बार स्वदेशी कार्यक्रम या स्वदेशी अभियान के बारे में सुनने को मिल जाता है। स्वदेशी कार्यक्रम भी तिलक की दूरदृष्टि की एक संकल्पना थी। तिलक ने ही अंग्रेजी सरकार का विरोध करने के लिए और भारतीय जनता में स्वाभिमान की भावना उत्पन्न करने के लिए स्वदेशी कार्यक्रम शुरू किया था।

गरम दल में लोकमान्य तिलक के साथ-साथ लाला लाजपत राय और श्री विपिन चंद्र पाल भी शामिल थे इन तीनों को ही लाल पाल पाल के नाम से जाना जाता है।

प्रारंभिक कांग्रेसी आंदोलनकारी जिनको नरम दल के सदस्य कहा जाता है। बाल गंगाधर तिलक नरम दाल की स्वतंत्रता आंदोलन की गतिविधियों से संतुष्ट नहीं थे तथा समय-समय पर उनकी आलोचना भी करते रहते थे। गरम दल और नरम दल के बीच व्याप्त मनमुटाव के कारण ही एक बार कांग्रेस का विभाजन भी हो गया था।

तिलक दल के सदस्य कांग्रेस की बैठको में अपनी मातृभाषा  में बोलने की वकालत करते थे।  तिलक डेक्कन एजुकेशन सोसाइटी के संस्थापक (1884) थे।

लोकमान्य तिलक केसरी और मराठा नाम से दो पत्रों का भी प्रकाशन करते थे। अपने पत्रों के माध्यम से वे जनता में स्वतंत्रता के लिए जागरूकता और स्वतंत्रता प्राप्ति के लिए उनके हृदय में एक अग्नि प्रज्वलित करने का कार्य करते थे। इन पत्रों में उनके लेख के कारण उनको जेल भी जाना पड़ा था। एक बार लोकमान्य तिलक ने अपने पत्र केसरी में देश का दुर्भाग्य नामक  लेख लिखा था । जिस लेख में उन्होंने ब्रिटिश सरकार की नीतियों का विरोध किया था। इसके तहत उनको ब्रिटिश सरकार ने राजद्रोह केस लगा लगा कर जेल भेज दिया था। इस दौरान 6 वर्ष के कठोर कारावास के तहत बर्मा जेल में बंद किया गया था।  लोकमान्य तिलक ने जेल में एक किताब भी लिखी थी जब लोकमान्य तिलक जेल में थे।  उसी दौरान उनकी पत्नी का स्वर्गवास हो गया था।

तिलक निःसंदेह एक महान् स्वतंत्रता सेनानी एवं निर्भीक व्यक्तित्व थे।  उनके मरणोपरांत गांधीजी ने उन्हें ‘आधुनिक भारत का निर्माता’ तथा नेहरूजी ने उन्हें ‘भारतीय क्रान्ति का जनक’ कहा।

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