हिन्दी दिवस | HINDI DIWAS | National Hindi Day in Hindi

 

 

National Hindi Day in Hindi

प्रत्येक वर्ष 14 सितंबर को देशभर में हिंदी दिवस मनाया जाता है। प्रत्येक वर्ष हिंदी दिवस के मौके पर हिंदी के योगदान, ताजा हालात एवं संभावनाओं और चुनौतियों पर विचार किया जाता है। वैसे हिंदी की दुनिया बहुत बड़ी है, लाखों पाठक, हजारों प्रकाशक हैं। पूरी दुनिया में करोड़ों लोग हिंदी बोलने और समझने में सक्षम है।

हिंदी के बढ़ते दायरे के बावजूद भी अंग्रेजी को प्रतिष्ठा से जोड़कर देखा जाता है। तभी हिंदी आज भी चुनौतियों के गहरे समंदर में अपना मुकाम तलाश रही है। हालांकि इस भाषा की जद्दोजहद के बीच हिंदी प्रेमियों ने आज भी हिंदी को बचाए रखा है।

प्रत्येक वर्ष 14 सितंबर को हिन्दी दिवस मनाया जाता है और हर वर्ष 10 जनवरी को विश्व हिन्दी दिवस के रूप में मनाया जाता है। 14 सितम्बर को हिंदी दिवस के रूप में मनाने की शुरुआत वर्ष 1949 से हुई थी। 14 सितम्बर 1949 को भारत की संविधान सभा ने हिंदी भाषा को राजभाषा का दर्जा प्रदान किया था तभी से इस भाषा के प्रचार और प्रसार के लिए प्रतिवर्ष 14 सितम्बर को हिंदी दिवस मनाने की शुरुआत हुई थी।

आज इस लेख के माध्यम से हम हिंदी दिवस पर हिंदी भाषा के महत्व (Hindi ka Mahtva), हिंदी के इतिहास (Hindi ka Itihas), HINDI DIWAS AND ITS IMPORTANCE IN HINDI, Essay on Hindi Diwas In Hindi, National Hindi Day in Hindi, International Hindi Day in Hindi, Essay on Hindi Day in Hindi, National Hindi Day UPSC in Hindi और हिंदी भाषा की चुनौतियों के बारे में जानेंगे।

 

 

हिंदी दिवस और उसकी महत्ता | HINDI DIWAS AND ITS IMPORTANCE IN HINDI | Importance of National Hindi Day in Hindi

 

 

भारत की संविधान सभा ने 14 सितंबर 1949 को भारत गणराज्य की आधिकारिक राजभाषा के रूप में हिन्दी को अपनाया गया था हालांकि, इसे 26 जनवरी 1950 को देश के संविधान द्वारा आधिकारिक रूप में उपयोग करने का विचार स्वीकृत किया गया था। हिन्दी दिवस पर निबंध, स्पीच, लेख आदि भिन्न-भिन्न प्रतियोगिताओं का आयोजन भी किया जाता है।

यह भारतीयों के लिए गर्व का क्षण था जब भारत की संविधान सभा ने हिन्दी भाषा को देश की आधिकारिक राजभाषा के रूप में अपनाया था। संविधान सभा ने वही अनुमोदित किया और देवनागरी लिपि में लिखी गई हिन्दी आधिकारिक राजभाषा बन गई। 14 सितंबर, जिस दिन भारत की संविधान सभा ने हिंदी को अपनी आधिकारिक भाषा के रूप में अपनाया, उस दिन हिन्दी भाषा के महत्व को समझाने के लिए भिन्न-भिन्न गतिविधियों का आयोजन भी किया जाता है। सभी आयोजनों में लोग हिंदी भाषा और भारतीय संस्कृति के महत्व के बारे में बात करने के लिए आगे आते हैं। स्कूलों में कविता, कहानी, विचार गोष्ठी पर प्रतियोगिताओं और सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है।

भारत में प्रत्येक वर्ष 14 सितंबर को हिंदी दिवस के रूप में मनाया जाता है क्योंकि इसी दिन हिंदी को देश में राजभाषा होने का गौरव प्राप्त हुआ था, तब से सरकारी स्तर पर हिंदी के विकास के लिए तमाम कोशिशें हुई। 1975 में राजभाषा संबंधित संवैधानिक प्रावधानों के लिए गृह मंत्रालय ने एक स्वतंत्र राजभाषा विभाग बनाया। यह विभाग दूसरे मंत्रालयों के साथ हिंदी के विकास के लिए काम करता है। हिंदी के विकास के लिए कुछ और कदम उठाए गए हैं।

दरअसल 1946 में आजाद भारत के संविधान लिखने के लिए बनी समिति के सामने जब राष्ट्रभाषा का सवाल खड़ा हुआ, तब संविधान निर्माताओं के सामने हिंदी सबसे बेहतर विकल्प के रूप में नजर आई। हालांकि हिंदी को पूरे राष्ट्र की भाषा बनाए जाने को लेकर कुछ लोग इसके विरोध में भी थे। तब भाषा पर का काफी विचार-विमर्श के बाद हिंदी और अंग्रेजी को नए राष्ट्र की आधिकारिक भाषा चुना गया।

इसके बाद संविधान सभा ने 14 सितंबर 19४९ को हिंदी को राजभाषा के रूप में स्वीकार किया। राष्ट्रभाषा प्रचार समिति वर्धा की सिफारिश पर 1953 से पूरे देश में 14 सितंबर को हिंदी दिवस मनाया जाता है, हालांकि पूरी दुनिया में विश्व हिंदी दिवस 10 जनवरी को मनाया जाता है। और इसकी शुरुआत साल 2006 से हुई।

वैश्विक स्तर पर हिंदी के विस्तार को देखते हुए इसे राष्ट्रभाषा बनाने की मांग भी तेज होती जा रही है। भारत में हिंदी के प्रचार प्रसार के लिए सरकार ने कई कदम उठाए हैं। सरकार ने 14 सितंबर 19४९ को हिंदी को संघ की राजभाषा का दर्जा दिया। संविधान के अनुच्छेद 343 के तहत यह व्यवस्था की गई। 10 मई 1963 को देश में राजभाषा अधिनियम लागू हुआ। इसके बाद हिंदी राजभाषा और अंग्रेजी सहायक भाषा बनी। 1967 में केंद्रीय हिंदी समिति का गठन हुआ। 1971 में केंद्रीय अनुवाद ब्यूरो का गठन किया गया। 1976 में राजभाषा संसदीय समिति बनी और 1985 में केंद्रीय हिंदी प्रशिक्षण संस्थान का गठन किया गया।

फिर भी राजभाषा के रूप में हिंदी का प्रदर्शन संतोषजनक नहीं रहा। वर्तमान में भी हिंदी भाषा, अंग्रेजी की जगह नहीं ले पाई है। हाल ही के वर्षों में हिंदी का रूबरू बड़ा है, हिंदी में कामकाज जोर पकड़ रहा है। हिंदी भाषी इलाकों में साक्षरता बढ़ने के कारण, एक बड़ा पाठक वर्ग, दर्शक और श्रोता पैदा हुआ है। हिंदी का इलाका अब एक बड़ा बाजार बन गया है। हिंदी अखबारों का प्रसार बहुत तेजी से बढ़ रहा है। आजादी के पहले भारत में किसी भी हिंदी अखबार की प्रसार संख्या 30000 से ज्यादा नहीं थी। लेकिन वर्तमान में 15 सबसे बड़े हिंदी अखबार के पाठकों की संख्या लाखों में है।

भारत दुनिया की बड़ी ताकत बन रहा है। कारोबारी संभावनाओं के तहत तमाम कंपनियां अपने लोगों को हिंदी सिखा रही है। कई विदेशी विश्वविद्यालयों में हिंदी पढ़ाई जा रही है। सूचना प्रौद्योगिकी ने हिंदी को और अधिक समृद्ध किया है। इसके बावजूद हिंदी को लेकर हीन भावना से ग्रस्त लोगों की कमी नहीं है। हिंदी को  लेकर अभी भी कई तरह की दिक्कत बनी हुई है। अभी भी हिंदी में कई विषयों की मौलिक पुस्तकों का अभाव है।

हिंदी को लेकर काम तो होते हैं लेकिन अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उसे वह प्रतिष्ठा नहीं मिल पाई है, जिसकी उसको दरकार है। दुनिया की बड़ी आबादी में चीनी, स्पेनिश और अंग्रेजी का दबदबा साफ तौर पर देखा जा सकता है। हालांकि हिंदी भी पीछे नहीं है। यह देख कर अच्छा लगता है कि एक तरफ देश के भीतर हिंदी का संसार समृद्ध हो रहा है, उसकी स्वीकार्यता बढ़ रही है। साथ ही साथ विदेशों में भी हिंदी की जड़ मजबूत हो रही है और इस दिशा में बीते एक दशक में या उसके आसपास भी काफी काम हुआ है।

दुनिया के तकरीबन १५० से ज्यादा देशों में दो करोड़ से ज्यादा भारतीयों का बोलबाला है। अधिकांश प्रवासी भारतीय आर्थिक रूप से समृद्ध हैं। लिहाजा दुनिया भर में बढ़ती भारतीयों की संख्या हिंदी बोलने वालों की संख्या में भी इजाफा कर रही है। एक अनुमान के मुताबिक विश्व में चीनी, अंग्रेजी के बाद हिंदी तीसरी सबसे ज्यादा बोली जाने वाली भाषा है। दुनिया के 170 देशों में हिंदी किसी ना किसी रूप में पढ़ाई जा रही है। वही 90 से ज्यादा विदेशी विश्वविद्यालयों में हिंदी चेयर भी है। हिंदी भारत की राजभाषा होने के साथ-साथ फिजी की भी राजभाषा है, जबकि मोरिशियस, त्रिनिनाद, गुयाना में क्षेत्रीय भाषा के रूप में हिंदी को मान्यता मिली है। इसे देखते हुए हिंदी को संयुक्त राष्ट्र की आधिकारिक भाषा बनाने के लिए सरकार की ओर से प्रयास किए जा रहे हैं। वैसे यूनेस्को के साथ भाषा के रूप में हिंदी पहले से ही शामिल है।

इसके अलावा मॉस्को को दुनिया में हिंदी भाषा के अध्ययन और अध्यापन के प्रमुख केंद्र में माना जाता है। मॉस्को विश्वविद्यालय से हिंदी में स्नातक, स्नातकोत्तर और पीएचडी तक की जा सकती है। अमेरिका के भी कई राज्यों और स्कूलों में हिंदी भाषा का विकल्प दिया जा रहा है। इसी तरह चीन, ब्रिटेन, ऑस्ट्रेलिया समेत कई देशों में और विश्वविद्यालय में हिंदी पढ़ने की सुविधा है। विदेशों में हिंदी की बढ़ती लोकप्रियता और इसके और अधिक विकास के लिए मॉरिशस और भारत सरकार ने मिलकर मॉरीशस में विश्व हिंदी सचिवालय की स्थापना की है।

विदेशी नागरिकों के मन में हिंदी का प्रेम नया नहीं है। 1935 में बेल्जियम में जन्मे फादर बुल की ईसाई धर्म के प्रचार प्रसार के लिए भारत आए, लेकिन उन्होंने यहां हिंदी की दिव्यता को पहचाना और हिंदी और संस्कृत सीख कर यही रच और बस गए और रामायण के प्रकांड विद्वान कहलाये। इसी तरह श्रीमद्भगवद्गीता और अभिज्ञान शाकुंतलम् से प्रभावित होकर जे विल्किन्सन और जॉर्ज फास्टर ने हिंदी सीखी और फिर इन का अनुवाद अंग्रेजी में किया।

सन 18०० के दौरान स्कॉटलैंड के जॉन बोधानी गिलक्रिस्ट ने देवनागरी और उसके व्याकरण पर कई पुस्तकें लिखी। एल० एफ० रोनाल्ड ने १८७३ से १८७७ तक भारत प्रवास के दौरान हिंदी व्याकरण पर काफी महत्वपूर्ण काम किया और लंदन में इससे जुड़ी किताब प्रकाशित करवाई।

भारत की बात करें तो बहुभाषी भारत के हिंदी भाषी राज्यों की आबादी 46 करोड़ से ज्यादा है। 2011 की जनगणना के मुताबिक भारत की 1.2 अरब की आबादी में से ४० फ़ीसदी से ज्यादा लोगों की मातृभाषा हिंदी है। वही हिंदी को दूसरी भाषा के तौर पर इस्तेमाल करने वाले अन्य भारतीयों को मिला लिया जाए तो देश के लगभग 75% लोग हिंदी बोल एवं समझ सकते हैं। इसके अलावा हर साल सैकड़ों विदेशी छात्र हिंदी पढ़ने भारत के अलग-अलग संस्थानों और विश्वविद्यालय में आते हैं। हिंदी ना सिर्फ लोगों की जुबान पर है बल्कि इसका बाजार भी बहुत बड़ा है। दुनिया भर में फैलती हिंदी के प्रसार के पीछे बॉलीवुड भी अहम भूमिका निभा रहा है। देश की कई बॉलीवुड हस्तियों की दुनिया भर में लोकप्रियता है, उनकी फिल्में देखी जाती हैं उनके गाने सुने जाते हैं, यहां तक कि उनके हिंदी फिल्मों में बोले गए कई डायलॉग विदेशों में भी बेहद चर्चित है। National Hindi Day in Hindi

यह हिंदी भाषा के महत्व पर जोर देने का एक विशेष दिन है क्योंकि पूरे भारतवर्ष में हिन्दी भाषा का महत्व खोता जा रहा है, यहाँ अंग्रेजी बोलने वाली आबादी को समझदार माना जाता है। वर्तमान परिपेक्ष्य में परिस्थितियां दुखद एवं चिन्तनीय है क्योंकि सभी क्षेत्रों में चाहे वह शिक्षा, रोजगार, साक्षात्कार किसी भी क्षेत्र में हो अंग्रेजी बोलने वाले लोगों को दूसरों पर वरीयता दी जाती है। यह इस पक्षपातपूर्ण दृष्टिकोण को दूर करने का समय है, हम सभी को मिलकर इसके लिए संघर्ष करना होगा, एकजुट होना होगा।

 

 

हिंदी के समक्ष चुनौतियां | Challanges | National Hindi Day in Hindi

 

एक तरफ हिंदी को भारत में लोकप्रिय बनाने की कवायद चल रही है, विदेशों में भी लोकप्रिय बनाने की कवायद चल रही है वहीं दूसरी तरफ हिंदी बोलने वाले लोगों की हिचकिचाहट भी जगजाहिर है। भारत जैसे देश में जहां हिंदी समाचार माध्यम संचार माध्यमों की सबसे लोकप्रिय भाषा बन रही है, वहीं दूसरी ओर हिंदी गंभीर विचार-विमर्श का विषय भी बना हुआ है।

आज हिंदी पूरी दुनिया में सबसे ज्यादा बोली जाने वाली भाषाओं में से एक है। इसके बावजूद हिंदी बदलते समाज की संवाद की भाषा नहीं बन पाई है। हिंदी का रोजगार से ना जुड़ पाना, भूमंडलीकरण के दौर में चुनौतियों का सामना ना कर पाना हिंदी भाषियों के लिए चिंताए और मुश्किलें पैदा कर रहा है।

दुनिया के दूसरे कोने में पहुंच बनाने में हिंदी कामयाब हुई है। आज दुनिया भर में करोड़ों लोग हिंदी बोलने और समझने में सक्षम है। खासकर हिंदी फिल्मों के बाजार ने पूरी दुनिया में अपनी एक जगह बनाई है। लेकिन इसके बावजूद हिंदी की स्वीकारिता को लेकर अभी भी एक लंबी लड़ाई लड़ना जरूरी है। जानकार हिंदी के भविष्य को लेकर आज भी परेशान नजर आते हैं, खासकर भूमंडलीकरण के दौर में हिंदी, अंग्रेजी से काफी पिछड़ती दिख रही है। हिंदी के भविष्य और उसकी वर्तमान स्थिति को लेकर बहस का दौर 70 के दशक से चल रहा है।

वर्तमान में यह अकेली ऐसी भाषा होगी, जिसके लिए अलग राजभाषा विभाग, विश्व हिंदी सम्मेलन और विश्व हिंदी सचिवालय जैसी कई कवायदें चल रही है। जिस हिंदी ने भारत जैसे महान और बड़े देश को साहित्यिक एवं सामाजिक तौर पर दुनिया में एक अलग पहचान दिलाई उसी हिंदी को जिंदा रखने के लिए प्रत्येक वर्ष कई सम्मेलन एवं सेमिनार आयोजित किए जाते हैं।

जानकार मानते हैं की हिंदी के सामने सबसे बड़ी चुनौती इन सम्मेलनों की सफलता और असफलता भी है। आज दुनिया में 6000 से ज्यादा भाषा बोली जाती है। इनमें अकेले एशिया में 22०० से ज्यादा भाषाएं बोली जाती है। इन भाषाओं के बीच में खड़ी हिंदी को धारण करने में सबसे बड़ी चुनौती दे रहा है : करियर। आज बड़ी से बड़ी मल्टीनेशनल कंपनियां हिंदी को प्राथमिकता ना देते हुए अंग्रेजी को प्राथमिकता देती हैं। इस तरह आज का युवा रोजगार पाने के लिए हिंदी से दूर होता जा जा रहा है।

बीते कुछ वर्षों में यह समझ मजबूत हुई है कि हिंदी को अगर आम आदमी की जेब से जोड़ दिया जाए तो यह अपने आप लोगों के दिलों से जुड़ जाएगी। जानकार मानते हैं कि हिंदी को पुरानी और परंपरागत बेड़ियों में जकड़े रखने से भी इसे नुकसान हुआ है। जाहिर है मोबाइल, ऐप, इंटरनेट और गैजेट्स के जमाने में अगर हिंदी को भी उसी तरीके में ढाला जाए तो बात कुछ अलग हो सकती है, खासकर युवा पीढ़ी को यह जिम्मा उठाने की प्रेरणा देनी चाहिए। National Hindi Day in Hindi

भारत के ही कई राज्यों में हिंदी का विरोध किसी से छुपा नहीं है। इसके पीछे कई राजनीतिक, सामाजिक कारण हो सकते हैं। लेकिन यह भी सच है की इस खूबसूरत हर भाषा के पुरोधा हिंदी बेल्ट से आगे आम हिंदुस्तानी के दिल में स्वीकार्यता दिलाने में नाकामयाब रहे हैं। भारत के भीतर हिंदी को लेकर भाषाई विवाद समझ से बाहर है। इसके अलावा बुनियादी सुविधा से लेकर उच्च शिक्षण संस्थान में हिंदी की कमजोर हालत एक बड़ी चुनौती है। हिंदी चुनौतियों की भीड़ में अकेली खड़ी है। हिंदी को सिर्फ भावनात्मक समर्थन नहीं बल्कि एक ऐसे बदलाव की जरूरत है, जो इसकी  दिशा और दशा तय करने में कारगर साबित हो।

 

 

हिंदी का इतिहास | History of Hindi 

 

वैसे हिंदी पहले के मुकाबले काफी बदल चुकी है। पहले जमाने में जिस तरह के हिंदी बोली और लिखी जाती थी वह अब चलन से बाहर है। हिंदी भाषा १००० से अधिक वर्षों का इतिहास समेटे हुए है।

किसी भी देश की भाषा और साहित्य वहां की जनता और समाज का सबसे बड़ा आइना होता है। अगर समाज व परिवेश में बदलाव होता है, तो यह निश्चित है कि समय के साथ-साथ साहित्य और भाषा में भी बदलाव होता जाता है। शुरू से अंत तक इन परिवर्तनों को परखते हुए उसके साथ तालमेल दिखाना ही साहित्य और भाषा का इतिहास है।

इस लिहाज से देखे तो हिंदी का इतिहास लगभग 1000 साल पुराना है। भाषा वैज्ञानिकों के मुताबिक हिंदी साहित्य का इतिहास वैदिक काल से आरंभ हुआ। हालांकि समय-समय पर इसका नाम बदलता रहा। कभी वैदिक, कभी संस्कृत, कभी प्राकृत, कभी अपभ्रंश और अब हिंदी।

हिंदी भाषा के उद्भव और विकास की प्रचलित धारणाओं के मुताबिक प्राकृत की अंतिम अपभ्रंश अवस्था से ही हिंदी का उद्भव माना जाता है। हिंदी साहित्य का आरंभ आठवीं शताब्दी से माना जाता है। बौद्ध धर्म की एक शाखा वज्रयान के सिद्धों ने जनता के बीच उस समय की लोकभाषा में अपने मत का प्रचार किया। हिंदी का प्राचीन साहित्य इन्हीं सिद्धों ने पुरानी हिंदी में लिखा था। इसके बाद नाथपंथी साधुओं ने बौद्ध, शांकर, तंत्र, योग एवं शैव मतों को मिलाकर  एक नया पंथ चलाया। इन्होंने लोक प्रचलित पुरानी हिंदी में अनेक धार्मिक ग्रंथों की रचना की।

इसके बाद जैनियों की रचनाएं भी मिलती है। इसी काल में अब्दुल रहमान का काव्य संदेश रासक  भी लिखा गया। जिसमें परवर्ती बोलचाल के निकट की भाषा मिलती है। दरअसल हिंदी का निर्माण दो अपभ्रंशों से मिलकर हुआ है। इसमें एक है नागर अपभ्रंश, जिससे पश्चिमी हिंदी और पंजाबी निकली। और दूसरा है अर्धमागधीका अपभ्रंश है, जिससे पूर्वी हिंदी निकली है। इसके विकास को इस तरह से समझ सकते है।

  • प्राचीन संस्कृत से लौकिक संस्कृत पहली प्राकृत।
  • इसके बाद पहली प्राकृत से दूसरी प्राकृत या पाली।
  • फिर पाली से शौरसेनी अर्धमागधी मगधी।
  • उसके बाद शौरसैनी से नागर अपभ्रंश।
  • और अर्धमागधी से अपभ्रंश।
  • नागर अपभ्रंश से पश्चिमी हिंदी, पूर्वी हिंदी भी इसी धार से निकली।
  • अंत में पूर्वी हिंदी से वर्तमान हिंदी।

11 वीं सदी में देसी भाषा हिंदी का रूप साफ हुआ। इस काल में राजाओं के संरक्षण में चारणों और भाटों ने रासों के रूप में प्रचलित वीर गाथा लिखी। इसी दौरान मैथिल कोकिल विद्यापति हुए जिनकी पदावली में मानवीय सौंदर्य और प्रेम की अनुपम व्यंजना मिलती है। अमीर खुसरो का भी यही समय है, इन्होंने ठेठ खड़ी बोली में अनेक पहेलियां, मुकरियां और दो शकुन के रचना की। इनके गीतों, दोहों की भाषा ब्रज भाषा है।  तेरहवीं सदी में धर्म के क्षेत्र में फैले अंधविश्वास तोड़ने के लिए भक्ति आंदोलन के रूप में भारतव्यापी  सांस्कृतिक आंदोलन शुरू हुआ। जिसने सामाजिक और व्यक्तिक मूल्यों की स्थापना की।

इस तरह विभिन्न मतों का आधार लेकर हिंदी में निर्गुण और सगुण नाम से भक्ति काव्य की दो शाखाएं साथ चली। इसी दौरान कई बड़े ग्रंथों की रचना भी हुई। 18 वीं सदी के आसपास हिंदी कविता में नया मोड़ आया, जो रीतिकाल के नाम से मशहूर हुआ। इसे तात्कालिक दरबारी संस्कृति एवं संस्कृत साहित्य से बढ़ावा मिला। तो वहीं आधुनिक काल (१९वी सदी) में भारतीयों का यूरोपीय संस्कृति से संपर्क हुआ। नए युग के साहित्य की प्रमुख सम्भावनाए खड़ी बोली गद्य में भी थी। इसलिए इसे गद्य युग भी कहा गया।

आधुनिक काल में भारतेन्दु हरिश्चंद्र का प्रभाव हिंदी भाषा और साहित्य दोनों पर काफी गहरा पड़ा। उन्होंने गद्य की कठिन भाषा को सरल बनाकर बहुत ही मधुर और साफ रूप दिया। इसी तरह भारतेन्दु ने हिंदी  साहित्य को भी नए मार्ग पर लाकर खड़ा कर दिया। हिंदी में उनके योगदान को देखते हुए उन्हें आधुनिक हिंदी गद्य का प्रवर्तक माना गया है।  National Hindi Day in Hindi

 

 

हिंदी का महत्व | Hindi ka Mahatva |  Importance of Hindi Diwas 

 

हिन्दी भाषा हमारी राष्ट्रीय भाषा के साथ-साथ हमारी संस्कृति के महत्व पर प्रकाश डालने के लिए महत्वपूर्ण कदम है, यह युवाओं को उनकी सभ्यता एवं संस्कृति के बारे में स्मरण कराने का एक उचित माध्यम है। कोई फर्क नहीं पड़ता कि हम कहाँ पहुंचते हैं और हम क्या करते हैं, अगर हम अपनी सभ्यता एवं संस्कृति के साथ कदम से कदम नहीं मिला सकते, पहचान नहीं रख सकते, तो हम अचूक रहते हैं।

प्रत्येक वर्ष, ये दिन हमें हमारी वास्तविक पहचान की याद दिलाता है और हमें अपने देश के लोगों के साथ एकजुट करता है। हमें संस्कृति और मूल्यों को बरकरार रखना चाहिए और यह दिन इसके लिए एक अनुस्मारक के रूप में कार्य करता है। हिंदी दिवस एक ऐसा दिन है जो हमें देशभक्ति, संस्कृति एवं सभ्यता की भावना के साथ प्रेरित करता है।

हिन्दी भाषा को विभिन्न विदेशी भाषाओं के समक्ष तीव्रता से गिरावट का सामना करना पड़ रहा है और मातृभाषा की आवश्यकता को समझने के लिए और इसके महत्व को समझने के लिए ना सिर्फ हिन्दी दिवस मनाना जरूरी है, बल्कि हिन्दी भाषा को अपनाना भी उतना ही नितांत आवश्यक है इसी से हिन्दी भाषा और इसके महत्व की रक्षा हो सकती है। हिन्दी भाषा हमारी पहचान है, हमारे राष्ट्र की पहचान है और हमें अपनी पहचान, राष्ट्र की पहचान को एकजुट होकर शिखर पर पहुँचाना है। हिन्दी भाषा हमारी संभ्यता, संस्कृति की पहचान है। हिन्दी भाषा ही हमारी नींव है, हमारी धरोहर है, इसके महत्व को आगे बढ़ाने के लिए हमें दृढ़तापूर्वक एकजुट होकर कार्य करना है। National Hindi Day

 

 

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