कविता :- मेरे पिताजी | My father : Poem On Father in Hindi

पारिवारिक बगिया पनपाते हो,

नन्हे पोंधों में फूल खिलाते हो,

कई दुख तुम्हारे अपने जीवन में,

पर कभी भी नहीं दिखलाते हो।

तुमसे ही घर की हर अभिलाषा,

पूरी कर देते मन की हर आशा,

चलते चलते पग कठोर कर लिए,

कि घर ना रह जाए भूखा प्यासा ।

अपनी इच्छाएं सब दबा दी तुमने,

अपनों की आशाएं जगा दी तुमने,

रात दिन भागते रहे काम के पीछे,

बच्चों की पीड़ाएं सब भगा दी तुमने ।

कैसी भी भय बाधा डरते नहीं तुम,

झूठा कोई भी वादा करते नहीं तुम,

अपनों को सब न्योछावर कर देते,

कभी आंखों में आंसू भरते नहीं तुम ।

कोई सुख तुमने कभी भोगा नहीं,

अपने मन की व्यथा को बोला नहीं,

जीवन पर्यन्त तपस्या करते रहते,

तुमसा त्यागी कोई होगा नहीं।

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