नंदा देवी मंदिर अल्मोड़ा | NANDA DEVI MANDIR ALMORA IN HINDI | ALMORA TEMPLE
NANDA DEVI MANDIR ALMORA
कुमाऊं क्षेत्र के पवित्र स्थलों में से एक नंदा देवी मंदिर अल्मोड़ा का विशेष धार्मिक महत्व है। इस मंदिर का इतिहास 1000 साल से भी ज्यादा पुराना है। कुमाऊंनी शिल्प शैली से निर्मित यह मंदिर चंद वंश की ईष्ट देवी को समर्पित है। इसका निर्माण शिव मंदिर के बाहरी दलान पर किया गया है। इस तीर्थ स्थान की दीवार पर पत्थरों पर उकेरी गई कलाकृतियां सभी का ध्यान अपनी ओर आकर्षित करती है। हर साल सितंबर के महीने में यहां नंदा देवी मेले का आयोजन किया जाता है और इस दौरान बड़ी संख्या में पर्यटक यहां पहुंचते हैं।
नंदा देवी मंदिर का इतिहास । History Of Nanda Devi Temple
कुमाऊं में मां नंदा की पूजा का क्रम चंद शासकों के जमाने से माना जाता है। इतिहास के मुताबिक सन् 1670 में कुमाऊं के चंद शासक राजा बाज बहादुर चंद ने बधाणकोट किले से मां नंदा देवी की स्वर्ण प्रतिमा लाए और उसे यहां मल्ला महल (वर्तमान का कलेक्ट्रेट परिसर अल्मोड़ा) में स्थापित किया। तब से उन्होंने मां नंदा का कुलदेवी के रूप में पूजन शुरू किया।
इसके बाद में राजा जगत चंद को जब बधानकोट विजय के दौरान नंदादेवी की मूर्ति नहीं मिली, तो उन्होंने खजाने से अशर्फियों को गलाकर मां नंदा की प्रतिमा तैयार कराई और प्रतिमाओं को भी मल्ला महल स्थित नंदादेवी मंदिर में स्थापित कर दिया। सन् 1690 में तत्कालीन राजा उद्योत चंद ने पार्वतीश्वर और उद्योत चंद्रेश्वर नामक दो शिव मंदिर मौजूदा नंदादेवी मंदिर में बनाए। आज भी ये मंदिर उद्योत चंद्रेश्वर व पार्वतीश्वर के नाम से प्रचलित हैं। मल्ला महल (वर्तमान कलक्ट्रेट परिसर) में स्थापित नंदादेवी की मूर्तियों को भी सन् 1815 में ब्रिटिश हुकुमत के दौरान तत्कालीन कमिश्नर ट्रेल ने उद्योत चंद्रेश्वर मंदिर में रखवा दिया।
प्रचलित मान्यताओं के अनुसार एक दिन कमिश्नर ट्रेल नंदादेवी चोटी की ओर जा रहे थे, तो राह में अचानक उनकी आंखों की रोशनी चली गई, लोगों की सलाह पर उन्होंने अल्मोड़ा में नंदादेवी का मंदिर बनवाकर वहां नंदादेवी की मूर्ति स्थापित करवाई, तो रहस्यमय ढंग से उनकी आंखों की रोशनी लौट आई। इसके अलावा कहा जाता है कि राजा बाज बहादुर प्रतापी थे, जब उनके पूर्वजों को गढ़वाल पर आक्रमणों के दौरान सफलता नहीं मिली, तो राजा बाज बहादुर ने प्रण किया कि अगर उन्हें युद्ध में विजय मिली, तो नंदादेवी की अपनी इष्ट देवी के रूप में पूजा करेंगे।
नंदादेवी मंदिर अल्मोड़ा की मंदिर की निर्माण शैली भी काफी पुरानी है। यहां उद्योत चंद्रेश्वर मंदिर की स्थापना 17वीं शताब्दी के अंत में मानी जाती है। उद्योत चंद्रेश्वर मंदिर के ऊपरी हिस्से में एक लकड़ी का छज्जा है, मंदिर में बनी कलाकृति खजुराहो मंदिरों की तर्ज पर है ये मंदिर संरक्षित श्रेणी में शामिल है।
अल्मोड़ा में मां नंदा की पूजा-अर्चना तारा शक्ति के रूप में तांत्रिक विधि से करने की परंपरा है। पहले से ही विशेष तांत्रिक पूजा चंद शासक व उनके परिवार के सदस्य करते आए हैं। वर्तमान में चंद वंशज नैनीताल के पूर्व सांसद केसी सिंह बाबा राजा के रूप में सपरिवार पूजा में बैठते हैं।
नंदा देवी मेला अल्मोड़ा । Nanda Devi Mela Almora
अल्मोड़ा नगर के मध्य में स्थित ऐतिहासिक नंदादेवी मंदिर में प्रतिवर्ष सितम्बर महीने में भाद्र मास की शुक्ल पक्ष की अष्टमी को लगने वाले मेले का अत्यंत महत्व हैं। यूं तो पूरे प्रदेश भर के लोगों में मां नंदा के प्रति अटूट आस्था है। हर बरस जगह-जगह लगने वाले नंदा देवी मेले में उमड़ने वाला सैलाब अटूट आस्था को प्रदर्शित करता है। मगर सांस्कृतिक नगरी अल्मोड़ा का नंदादेवी मेले का अपना खासा महत्व है। यहां नंदादेवी मंदिर स्थापना के पीछे एतिहासिक तथ्य जुड़े हैं और यहां मां नंदा को प्रतिष्ठित करने का श्रेय चंद शासकों को है।
माँ नंदा-सुनंदा की भव्य शोभायात्रा:-
यहाँ लगने वाले मेले का अत्यंत महत्व है। मेले की शुरुआत कदली (केले) के पेड़ लाने से होती है, जिससे पूर्व कदली वृक्षों की पूजा की जाती है। कदली वृक्ष लाने के लिए पारंपरिक वेशभूषा में लोग, चंद वंसज जाते है तत्पश्चात मूर्तियों का निर्माण प्रारम्भ होता है। नंदाष्टमी के दिन मंदिर में भक्तों की भीड़ इस मेले की आस्था का प्रतीक है। अंतिम दिवस में माँ नंदा-सुनंदा की भव्य शोभायात्रा भक्तों के विशाल हूजूम के साथ निकाली जाती है, जो आस्था का सैलाब बनकर इस मेले को भव्य और सुन्दर बनाता है ।
कैसे पहुंचे नंदा देवी मंदिर :-
नंदा देवी मंदिर उत्तराखंड राज्य के अल्मोड़ा जिले में स्थित है जोकि उत्तराखंड राज्य की सांस्कृतिक नगरी है। अल्मोड़ा जिला अन्य शहरों से सड़क मार्ग से जुड़ा है| बस, टैक्सियां एवं अन्य यातायात के स्थानीय साधन उपलब्ध है |
निकटतम रेलवे स्टेशन – काठगोदाम (90 किमी )
निकटतम हवाई अड्डा – पंतनगर (115 किमी )
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