माता-पिता ने फ़ोन के लिए बच्चे को बेचा ( Couple sold their baby) -समाज के लिए एक गंभीर चेतावनी, कमजोर होते सामाजिक संबंधों और नैतिक मूल्यों की चेतावनी ! | 

Couple sold their baby
Couple sold their baby

माँ की महानता को देख कर ही कहाँ जाता है कि ऊपर यदि ईश्वर है तो ईश्वर ने धरती पर अपने प्रतिनिधि के तौर पर माँ को बनाया हैं।
बच्चे अक़्सर एक कविता गुनगुनाया करते है ऐ ईश्वर मुझे फिर वही माँ देना , वही गोद और वही आँचल देना
पर शायद अब बच्चे ये भी कहेंगे कि ऐ ईश्वर मुझे वो माँ कभी मत देना जिसने अपनी चंद  इच्छओं को पूरा करने के लिए अपने बच्चे को ही बेच दिया ( Couple sold their baby) ।

यहाँ कहना चाहेंगे –

कि वो माँ अपनी इच्छाओ को पूरा करने में तो भले ही सफ़ल हो गयी हो , परंतु आज वो खुद भी हार गयी और दूसरों को भी हरा गयी।
हार हुई है माँ और बेटे के रिश्तों में मौजूद प्रगाढ़ विश्वास की।
हार हुई है माँ पर बेटे के उन 9 महीनो के विश्वास की ।
हार हुई है  मोबाइल और तकनीक को मानव भलाई के लिए बनाने वाले इंसान की।
हार हुई हैं उस ईश्वर के विश्वास की जिसकी प्रतिनिधि माँ थी।
हार हुई है आज हम सबकी और हमारे राष्ट्र की।

और जब उसका बच्चा बड़ा होकर उससे यह पूछेगा कि –

ऐ माँ तू इतनी क्यों गिर गयी।
कि अपने बच्चे को ही बेच गयी।
एक बार मुझे सही से पालती और पोषती तो सही।
बड़ा होकर मैं ही तेरी सभी इच्छाओं को पूरा करता ,
इतना विश्वास मुझ पर करती तो सही।

ये सवाल सुनने के बाद उस माँ की हर दिन , और हर पल हार होगी।
हम इस न्यूज़ में कुछ मुद्दों को देख सकते हैं सबसे पहला मुद्दा कमजोर होते सामाजिक संबंधों का स्तर।
हमने बचपन से पढ़ा है और इतिहास में भी ऐसे अनेक उदाहरण देखने को मिलते है , यहाँ तक कि अपने आस पास ऐसा देखने और सुनने को मिल ही जाता है , जहाँ माँ अपने बच्चे के लिए कुछ भी कर गुजरती हैं।

जहां बेटे और मां के रिश्तो को सबसे प्रगाढ़ और मजबूत पारिवारिक और सामाजिक संबंधों में से एक माना जाता है।

अनेक ऐसे उदाहरण हैं जब मां ने अपने बच्चे को बचाने के लिए अपने जीवन तक को कुर्बान कर दिया परंतु आप यहां पर देखोगे कि आज समाज में कुछ उल्टा ही हो रहा है ।
आज समाज में मां अपनी विलासिता को पूर्ण करने के लिए अपने बेटे को बेच दे रही है । इससे गिरता हुआ सामाजिक स्तर ही शायद ही कोई हो।
बच्चा सबसे ज्यादा सुरक्षित खुद को माँ के आँचल में ही समझता हैं। जब भी उसको कोई समस्या आती है तो वो सबसे पहले माँ को ही जाकर बताता है। उसे विपत्ति में सबसे पहला जो रक्षक दिखाई देता है वो है माँ।
माँ ही बच्चे को 9 महीने पेट में रखती है इसलिए उसके बच्चे से सम्बन्ध बाप से भी बढ़कर होते है।
परंतु यदि यह रिश्ता इतने निचले स्तर तक गिरता है तो शायद हम अपने समाज को कमजोर होने से न बचा पाये।
इसमें गलती केवल माँ की ही नहीं पिता भी इसमें शामिल था। जिस पिता को बच्चा दुनिया का सबसे शक्तिशाली व्यक्ति समझता है वह अपनी विलाषिता और तुझ इच्छाओं के सामने विश्व का सबसे कमजोर व्यक्ति निकला।
आज समाज को देखा देखी में और बिना सोचे समझे हम कैसे विलासिता की वस्तुओं को अपने जीवन में शामिल करने के लिए उतावले है यही उपभोक्तावाद कहलाता हैं।
इस खबर को केवल एक खबर मानकर छोड़ देने से शायद काम नहीं चलेगा क्योंकि यदि हमारे सामाजिक संबंध और सामाजिक संस्थाएं कमजोर हो जाएंगे तो समझो कि  राष्ट्र निर्माण का हमारा पूरा ताना-बाना ही छिन्न-भिन्न हो जाएगा ; क्योंकि एक सशक्त राष्ट्र, सशक्त समाज पर निर्भर करता है
और सामाजिक सम्बन्ध सीधे ऐसे ही कमजोर नहीं हो गए इनके पीछे हाथ है कमज़ोर होते नैतिक मूल्यों का । क्योंकि  नैतिक मूल्य ही सामाजिक संबंधों को गति प्रदान करते है।
हमारे जितने उच्च और मजबूत नैतिक मूल्य होंगे उतने ही मजबूती से हम सामाजिक संबंधों को निभा पाएंगे।

यदि हमने अपने समाज के नैतिक मूल्यों और सामाजिक संबंधों पर ध्यान नहीं दिया बस अंधी दौड़ में ही दौड़ते रहे तो कुछ फायदा नहीं होगा ।

क्या करोगे इस कागज़ के महल का । एक दिन एक माचिस की तिल्ली मात्र कुछ सेकंड में इसको भस्म कर देगी। और साथ में भस्म कर देगी उसमें रहने वाले लोगो को भी।
कोई लाभ नहीं ऐसे शीशे के महल बनाने से जिसकी नीव ही इतनी कमजोर हो कि जो चंद कुछ झटकों से गिर जाए और उसका कांच छलनी करदे इंसान के जिस्म को।
इससे अच्छा तो वो मिट्टी का घर ही था जिसमें सुविधाएं कम होती थी परंतु अपनों का साथ ज्यादा होता था। जिसमें हो सकता है कि बारिश में थोड़ा कीचड़ हो जाएं, परंतु माँ बेटो और परिवार के संबंधों में कीचड़ नहीं होता था। वहां संबंधों में मूल्य होते थे।
आज हम तकनीक के इतने गुलाम बन गए है कि उसे पाने के लिए अपने संबंधों को ही बेच दे रहे हैं।
ये हम सबके लिए शिक्षा है कि केवल भौतिक वस्तुओं को इकट्ठा करने तक ही न रह जाए । बल्कि जितना समय और धन हम भौतिक वस्तुओं और विलासिता की वस्तु को इकट्ठा करने में लगाते हैं । शायद उससे आधा समय और आधा धन मूल्यों को बचाने में लगाए तो हम अपने मूल्यों के आधार पर भविष्य में अपनी पीढ़ी का भविष्य भी बना सकते हैं और उससे अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति भी कर सकते हैं।

समाज के लिए यह एक चेतावनी हैं कि यदि आज समज की नीव में लगी इस दीमक को गंभीरता से नहीं लिया गया और इसके समाधान के विषय में नहीं सोचा गया तो ये पुरे सामाजिक ताने बाने को ख़त्म कर देगा।

 

लेखक के बारे में

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शिवेंद्र सिंह चौहान – { HKT Bharat के संस्थापक , स्नातक में B.Tech और स्नातकोत्तर में MA (समाजशास्त्र )  }

 

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