धर्मनिरपेक्षता और पंथनिरपेक्षता में अंतर | DHARMNIRPAKSH AND PANTHNIRPAKSH IN HINDI

धर्मनिरपेक्षता और पंथनिरपेक्षता —

यह एक ऐसा मुद्दा है जो समय समय पर समाचारों या आम चर्चा में उठता ही रहता हैं ; और हर बार देश की बहुत बड़ी आबादी को यह सोचने में मजबूर कर देता है कि आख़िर धर्मनिरपेक्षता और पंथनिरपेक्षता में अंतर क्या हैं।

दोनो ही अंग्रेजी के (secularism) सेकुलरिज्म के हिंदी अनुवाद हैं। सबसे बड़ा  confusion( असमंजस) तो यही होता है कि एक शब्द के अलग अलग अनुवाद कैसे ? और उनके अर्थ भी अलग अलग कैसे ?
इसको सही से समझने के लिए इसकी उत्पत्ति की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि को जानना अतिआवश्यक हो जाता हैं ।

शाब्दिक अर्थ –

 पश्चिमी धर्मनिरपेक्षता या नकारात्मक धर्मनिरपेक्षता

शासन सत्ता का धर्म से निरपेक्ष होना या शासन सत्ता का धर्म से अलग होना या शासन सत्ता का धर्म मे और धर्म का शासन सत्ता में कोई दख़ल न होना ।

  • इस प्रकार की धर्मनिरपेक्षता धर्म को राज्य से पूर्णतः अलग करने पर जोर देती है। नकारात्मक धर्मनिरपेक्षता में, राज्य धार्मिक मामलों को न तो मान्यता देता है और न ही उनमें हस्तक्षेप करता है। धर्म को एक निजी मामला माना जाता है जिसका राज्य के मामलों पर कोई प्रभाव नहीं होना चाहिए।
  • उदाहरण: “लैसीटे” की फ्रांसीसी अवधारणा, अक्सर नकारात्मक धर्मनिरपेक्षता के अंतर्गत आती है। सार्वजनिक जीवन और सार्वजनिक संस्थानों को धर्मनिरपेक्ष बनाए रखने के उद्देश्य से, फ्रांसीसी राज्य , राज्य और धार्मिक मामलों के बीच सख्त अलगाव रखता है। यह सिद्धांत इतनी कठोरता से लागू किया जाता है कि यह अक्सर सार्वजनिक स्कूलों में धार्मिक प्रतीकों पर प्रतिबंध लगाने और सार्वजनिक कर्मचारियों को काम पर अपनी धार्मिक मान्यताओं को प्रदर्शित करने से रोकने जैसी नीतियों की ओर ले जाता है।
  • राज्य और धर्म का पृथक्करण: पश्चिमी धर्मनिरपेक्षता राज्य और धर्म के पारस्परिक बहिष्कार की वकालत करती है, प्रत्येक अलग-अलग क्षेत्रों में कार्य करता है।
  • व्यक्ति-केंद्रित दृष्टिकोण: यह मुख्य रूप से व्यक्तिगत अधिकारों के संदर्भ में स्वाधीनता , स्वतंत्रता और समानता की व्याख्या करता है, जिसमें समुदाय-आधारित या अल्पसंख्यक-आधारित अधिकारों पर कम जोर दिया जाता है।

पंथनिरपेक्षता  / भारतीय धर्मनिरपेक्षता / सकारात्मक धर्मनिरपेक्षता

शासन सत्ता के लिए सभी धर्मों का समान होना / किसी धर्म के साथ भेदभाव न करना मतलब सर्वधर्म समभाव की भावना ही पंथनिरपेक्षता हैं।
जहाँ धर्मनिरपेक्षता को नकारात्मक अवधारणा कहा जाता हैं, वही पंथनिरपेक्षता को सकारात्मक अवधारणा कहा जाता हैं।

  • धर्मनिरपेक्षता का यह दृष्टिकोण आम तौर पर अधिक सक्रिय और संवादात्मक है। सकारात्मक धर्मनिरपेक्षता में, राज्य धार्मिक सद्भाव और सभी धर्मों के प्रति सम्मान सुनिश्चित करने में सक्रिय भूमिका निभाता है। यह धर्म को राज्य से पूरी तरह अलग करने की वकालत नहीं करता है। इसके बजाय, राज्य एक दूसरे पर पक्षपात किए बिना सभी धर्मों को समान रूप से स्वीकार करता है और उनका सम्मान करता है।
  • उदाहरण: धर्मनिरपेक्षता के प्रति भारत का दृष्टिकोण अक्सर सकारात्मक धर्मनिरपेक्षता के अंतर्गत आता है। भारतीय संविधान प्रत्येक नागरिक को अपनी पसंद के किसी भी धर्म का अभ्यास करने, प्रचार करने और प्रसार करने का अधिकार प्रदान करता है। राज्य अक्सर धार्मिक सद्भाव बनाए रखने, अल्पसंख्यकों की रक्षा करने और यह सुनिश्चित करने के लिए हस्तक्षेप करता है कि धार्मिक संस्थान भेदभाव से मुक्त हों। भारत का सकारात्मक धर्मनिरपेक्षता का दृष्टिकोण अनेकता में एकता’ ओर सर्व धर्र्म संभाव  के आदर्श वाक्य में परिलक्षित होता है, जहां विविध धर्म सह-अस्तित्व में रहते हैं और उनका सम्मान किया जाता है।
  • भारतीय धर्मनिरपेक्षता सभी धर्मों को समान सुरक्षा प्रदान करने के सिद्धांत को कायम रखती है, बिना किसी एक को दूसरे पर तरजीह दिए या किसी भी धर्म को राज्य धर्म के रूप में अपनाए बिना।
  • भारतीय धर्मनिरपेक्षता व्यक्तियों के साथ-साथ अल्पसंख्यक समुदायों के लिए धार्मिक स्वतंत्रता को संबोधित करते हुए विभिन्न धर्मो के मध्य समानता  और धर्मों के अंदर भी समानता ,  दोनों तरह की समानताओं  पर जोर देती है।
  • राज्य-प्रायोजित सुधार: यह धार्मिक क्षेत्र के भीतर समान स्तर पर राज्य के नेतृत्व वाले सुधारों को बढ़ावा देता है, जिससे सभी धर्मों में सैद्धांतिक राज्य के हस्तक्षेप की अनुमति मिलती है। उदाहरण के लिए. अस्पृश्यता का उन्मूलन, तीन तलाक की प्रथा पर प्रतिबंध।

ऐतिहासिक पृष्ठभूमि –

पश्चिम देशो में –

Secularism या धर्मनिरपेक्षता शब्द की उत्पत्ति पश्चिम के देशों में हुई थी । पश्चिम के देशों में एक समय मे चर्च (धर्म) का शासन सत्ता में दख़ल प्रत्यक्ष तौर पर अत्यधिक हुआ करता था। एक तरह से प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष तौर पर चर्च ही शासन करता हुआ प्रतीत होता था । चर्च के नियमों को न मानने पर दंड देने का भी प्रावधान था।

अतः पश्चिम देशों में secularism की उत्पत्ति धर्म को शासन सत्ता से अलग रखने के लिए की गई थी । मतलब secularism का अर्थ  शासन सत्ता का धर्म मे और धर्म का शासन सत्ता में कोई दख़ल नही होगा। इसलिए ही इसे नकारात्मक अवधारणा कहा जाता हैं।

भारतीय आधार पर –

वही भारत में जब संविधान का अनुवाद हिंदी में किया जा रहा था तो अनुवादक मंडल के सामने ये सबसे बड़ा प्रश्न था कि secularism का अनुवाद क्या किया जाए ; क्योंकि अगर धर्मनिरपेक्षता करते है तो संविधान अनुवादक मंडल को एक confusion असमंजस नज़र आ रहा था। वो था कि भारत मे धर्म का एक विस्तृत अर्थ लिया जाता है जैसे सही कार्य करने को भी धर्म , सही आचरण करने को भी धर्म , सुनीति पर चलने को भी धर्म , उत्तम व्यवहार आदि को भी धर्म ही माना जाता हैं।आमतौर पर आम बोलचाल में भी धर्म शब्द का प्रयोग संकुचित रूप में न करके विस्तृत रूप में किया जाता हैं।

ऐसे में secularism का मतलब धर्म निरपेक्षता लेना आम जनता सोच सकती थी कि इन सभी कार्यो से शासन सत्ता का निरपेक्ष रहना । जिसके परिणाम अनुचित हो सकते थे।

विस्तृत रूप में समझे तो भारत मे पश्चिम की तरह कभी भी धर्म का शासन सत्ता में दख़ल नही रहा हैं । भारत मे प्राचीन काल से ही सत्ता पर धर्म का वर्चस्व न रहकर यहाँ सभी धर्मों को सम्मान की भावना से देखा गया हैं।

“सर्वधर्म समभाव” की भावना प्राचीन कल से ही भारतीय संस्कृति  के मूल में रही हैं ।

एक तरह से पंथ निरपेक्षता का मूल अर्थ सर्वधर्म समभाव से ही हैं।

अर्थात भारत मे secularism का तात्पर्य शासन सत्ता  का धर्म से  निरपेक्ष न रहना नहीं हैं बल्कि शासन सत्ता द्वारा सभी धर्मों को समान समझने से है;  मतलब सभी धर्मों को समान आदर सत्कार देना । इसलिए ही पंथ निरपेक्षता को सकारात्मक अवधारणा कहा जाता हैं।

इस प्रकार हम पूर्ण रूप से कह सकते है कि पश्चिम देशो का secularism और भारतीय संदर्भ में secularism समान नही हैं । इसीलिए भारतीय संविधान मंडल ने secularism का अनुवाद धर्मनिरपेक्ष न करके पंथ निरपेक्ष रखने की बात कही थी।

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