धर्मनिरपेक्षता और पंथनिरपेक्षता में अंतर | DHARMPIRPAKSH AND PANTHNIRPAKSH IN HINDI
धर्मनिरपेक्षता और पंथनिरपेक्षता —
यह एक ऐसा मुद्दा है जो समय समय पर समाचारों या आम चर्चा में उठता ही रहता हैं ; और हर बार देश की बहुत बड़ी आबादी को यह सोचने में मजबूर कर देता है कि आख़िर धर्मनिरपेक्षता और पंथनिरपेक्षता में अंतर क्या हैं।
दोनो ही अंग्रेजी के (secularism) सेकुलरिज्म के हिंदी अनुवाद हैं। सबसे बड़ा confusion( असमंजस) तो यही होता है कि एक शब्द के अलग अलग अनुवाद कैसे ? और उनके अर्थ भी अलग अलग कैसे ?
इसको सही से समझने के लिए इसकी उत्पत्ति की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि को जानना अतिआवश्यक हो जाता हैं ।
शाब्दिक अर्थ –
धर्मनिरपेक्ष –
शासन सत्ता का धर्म से निरपेक्ष होना या शासन सत्ता का धर्म से अलग होना या शासन सत्ता का धर्म मे और धर्म का शासन सत्ता में कोई दख़ल न होना ।
पंथनिरपेक्षता –
शासन सत्ता के लिए सभी धर्मों का समान होना / किसी धर्म के साथ भेदभाव न करना मतलब सर्वधर्म समभाव की भावना ही पंथनिरपेक्षता हैं।
जहाँ धर्मनिरपेक्षता को नकारात्मक अवधारणा कहा जाता हैं, वही पंथनिरपेक्षता को सकारात्मक अवधारणा कहा जाता हैं।
ऐतिहासिक पृष्ठभूमि –
पश्चिम देशो में –
Secularism या धर्मनिरपेक्षता शब्द की उत्पत्ति पश्चिम के देशों में हुई थी । पश्चिम के देशों में एक समय मे चर्च (धर्म) का शासन सत्ता में दख़ल प्रत्यक्ष तौर पर अत्यधिक हुआ करता था। एक तरह से प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष तौर पर चर्च ही शासन करता हुआ प्रतीत होता था । चर्च के नियमों को न मानने पर दंड देने का भी प्रावधान था।
अतः पश्चिम देशों में secularism की उत्पत्ति धर्म को शासन सत्ता से अलग रखने के लिए की गई थी । मतलब secularism का अर्थ शासन सत्ता का धर्म मे और धर्म का शासन सत्ता में कोई दख़ल नही होगा। इसलिए ही इसे नकारात्मक अवधारणा कहा जाता हैं।
भारतीय आधार पर –
वही भारत में जब संविधान का अनुवाद हिंदी में किया जा रहा था तो अनुवादक मंडल के सामने ये सबसे बड़ा प्रश्न था कि secularism का अनुवाद क्या किया जाए ; क्योंकि अगर धर्मनिरपेक्षता करते है तो संविधान अनुवादक मंडल को एक confusion असमंजस नज़र आ रहा था। वो था कि भारत मे धर्म का एक विस्तृत अर्थ लिया जाता है जैसे सही कार्य करने को भी धर्म , सही आचरण करने को भी धर्म , सुनीति पर चलने को भी धर्म , उत्तम व्यवहार आदि को भी धर्म ही माना जाता हैं।आमतौर पर आम बोलचाल में भी धर्म शब्द का प्रयोग संकुचित रूप में न करके विस्तृत रूप में किया जाता हैं।
ऐसे में secularism का मतलब धर्म निरपेक्षता लेना आम जनता सोच सकती थी कि इन सभी कार्यो से शासन सत्ता का निरपेक्ष रहना । जिसके परिणाम अनुचित हो सकते थे।
विस्तृत रूप में समझे तो भारत मे पश्चिम की तरह कभी भी धर्म का शासन सत्ता में दख़ल नही रहा हैं । भारत मे प्राचीन काल से ही सत्ता पर धर्म का वर्चस्व न रहकर यहाँ सभी धर्मों को सम्मान की भावना से देखा गया हैं।
“सर्वधर्म समभाव” की भावना प्राचीन कल से ही भारतीय संस्कृति के मूल में रही हैं ।
एक तरह से पंथ निरपेक्षता का मूल अर्थ सर्वधर्म समभाव से ही हैं।
अर्थात भारत मे secularism का तात्पर्य शासन सत्ता का धर्म से निरपेक्ष न रहना नहीं हैं बल्कि शासन सत्ता द्वारा सभी धर्मों को समान समझने से है; मतलब सभी धर्मों को समान आदर सत्कार देना । इसलिए ही पंथ निरपेक्षता को सकारात्मक अवधारणा कहा जाता हैं।
इस प्रकार हम पूर्ण रूप से कह सकते है कि पश्चिम देशो का secularism और भारतीय संदर्भ में secularism समान नही हैं । इसीलिए भारतीय संविधान मंडल ने secularism का अनुवाद धर्मनिरपेक्ष न करके पंथ निरपेक्ष रखने की बात कही थी।
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