प्रोटीन आधारित वैक्सीन को मंजूरी | Protein Based Corana Vaccine in Hindi

 

भारत में कोरोनावायरस के दो नए टीके या वैक्सीन को मंजूरी दी गई है। यह दोनों वैक्सीन प्रोटीन आधारित हैं (Protein Based Corana  Vaccine in Hindi)। जिसमें एक कोवोवैक्स है; जिसका निर्माण अमेरिकी कंपनी नोवावैक्स किया है।

वहीं दूसरी वैक्सीन का नाम कोर्बिवैक्स है; इसका निर्माण भारत की बायोलॉजिकल इ ने  किया है।

कोरोना के लिए प्रयोग होने वाली अन्य वैक्सीन किस प्रकार की तकनीक पर आधारित हैं – 

दुनियाभर में कोरोना के लिए अलग-अलग वैक्सीन बनाई जा रही है। जिन की तकनीक अलग-अलग है; जैसे कि अमेरिका की फाइजर एमआरएनए ( mRNA )  वैक्सीन है, ऑक्सफोर्ड एस्ट्रेजनेका की कोविशील्ड वेक्टर आधारित  वैक्सीन है, भारत बायोटेक द्वारा बनाई गई को-वैक्सीन,  डेड वायरस पर आधारित वैक्सीन है।

Protein Based Corana Vaccine in Hindi
Protein Based Corana Vaccine in Hindi

प्रोटीन आधारित वैक्सीन (Protein Based Corana Vaccine in Hindi) बनाने में तकनीक – 

प्रोटीन आधारित वैक्सीन में स्पाइक प्रोटीन का अंश या उसके समान ही नैनो पार्टिकल का प्रयोग किया जाता है। जैसे कि प्रोटीन आधारित कोरोनावायरस में कोविड-19 वायरस के स्पाइक प्रोटीन का भाग मौजूद रहता है या इसके स्थान पर इस प्रोटीन के समान ही नैनो पार्टिकल का प्रयोग किया जाता है।

प्रोटीन आधारित वैक्सीन ( Protein Based Corana Vaccine in Hindi ) कैसे कार्य करती हैं?

प्रोटीन आधारित वैक्सीन को जब किसी व्यक्ति को दिया जाता है; तो इसमें मौजूद प्रोटीन या नैनो पार्टिकल्स इंसान के शरीर में जाने के पश्चात प्रतिरोधक क्षमता को तैयार करता है। इसके बाद जब भी कोरोनावायरस का स्पाइक प्रोटीन व्यक्ति के शरीर में प्रवेश करता है, और उसको अपने संक्रमण में लेने का प्रयास करता है; तो प्रतिरोधक प्रणाली उसे पहचानने के बाद एंटीबॉडी तैयार कर देती है। वह वायरस को फैलने से रोकती है।

कैसे असरदार है प्रोटीन आधारित वैक्सीन?

इंसानी प्रतिरोधक क्षमता प्रणाली प्रोटीन आधारित टीके के माध्यम से शीघ्र ही की क्रियाशील हो जाती है। वायरस का बाहरी भाग मुख्यतः प्रोटीन के द्वारा ही बना होता है।

अन्य तकनीकों से तैयार वैक्सीन में व्यक्ति के प्रतिरोधक प्रणाली को प्रोटीन को पहचान कर उसके खिलाफ उसको रोकने के लिए प्रोटीन तैयार करना होता है। वहीं दूसरी ओर प्रोटीन आधारित वैक्सीन प्रोटीन से बनी होने के कारण किसी वायरस की बाहरी हिस्से की तरह ही कार्य करती है। और व्यक्ति के प्रतिरोधक क्षमता को अन्य वैक्सीन की अपेक्षा जल्दी सक्रिय कर देती है इसलिए प्रोटीन आधारित वैक्सीन को ज्यादा कारगर माना जाता है या होती है।

 

प्रोटीन आधारित वैक्सीन अन्य वैक्सीन की अपेक्षा क्यों ज्यादा प्रमुखता से प्रयोग में लाई जाती हैं:- 

प्रोटीन आधारित वैक्सीन लंबे समय से अन्य घातक बीमारियों के इलाज में भी प्रयोग में लाई जाती आ रही है। अनेक रिपोर्ट के अनुसार प्रोटीन आधारित वैक्सीन के साइड इफेक्ट भी अन्य तकनीक से बनी वैक्सीन की अपेक्षा कम होते हैं। वहीं दूसरी ओर प्रोटीन आधारित वैक्सीन में असली वायरस का डीएनए मौजूद नहीं होता है। जिससे यह कोई साइड इफेक्ट नहीं करती है।

प्रोटीन आधारित वैक्सीन को 2  से 8 डिग्री सेल्सियस तक के तापमान पर भी सुरक्षित रूप से रखा जा सकता है।  कम तापमान पर भी सुरक्षित रखे जाने के कारण इसकी उपयोगिता और अधिक हो जाती है क्योंकि क्योंकि इसे दूसरे स्थानों पर पहुंचाने में भी सरलता  होगी और वही इसके लिए ज्यादा अवसंरचनात्मक खर्च भी नहीं करना पड़ेगा।

वही कुछ वैज्ञानिकों के अनुसार प्रोटीन आधारित वैक्सीन को बनाने का खर्च अन्य व्यक्ति वैक्सीन की अपेक्षा कम है।

अन्य वैक्सीन के विषय में कुछ जानकारी –

को-वैक्सीन और कोवीशिल्ड (Covishield and Covaxin)-

 

निर्माणकर्ता:-

 

कोवैक्सीन को हैदराबाद में स्थित भारत बायोटेक इंटरनेशनल लिमिटेड ने काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च तथा नेशनल इंस्टीट्यूट आफ वायरोलॉजी के सहयोग से विकसित किया है। वही कोविशिल्ड को ऑक्सफोर्ड एस्ट्रेजनेका द्वारा विकसित किया गया है और भारत में इसका निर्माण सिरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया द्वारा किया जा रहा है।

 

कोवैक्सीन एक निष्क्रिय वायरल टीका हैं। इसे Whole-virion Inactivated vero cell derived Technology द्वारा विकसित किया गया हैं।
इसमें निष्क्रिय वायरस का प्रयोग किया जाता है। जो किसी व्यक्ति को संक्रमित नहीं कर सकते हैं। परंतु फिर भी यह निष्क्रिय वायरस प्रतिरक्षा प्रणाली को सक्रिय वायरस के खिलाफ रक्षा तंत्र तैयार करना सीखा देते हैं या रक्षा तंत्र तैयार करने में सहायक होते हैं।

 

इस तकनीक से प्रयोग करके बनाए गए कुछ अन्य टीके इस प्रकार हैं:-
* पोलियो
* रेबीज
* मौसमी इनफ्लुएंजा आदि

 

कोविशिल्ड को इस तकनीक से भिन्न तकनीक के माध्यम से विकसित किया गया है । जो पूरी तरह से एक अलग तकनीक है।

इबोला वायरस के टीके विकसित करने में भी उसी तकनीक का प्रयोग किया जाता है जिस तकनीक से कोविशिल्ड वैक्सीन को विकसित किया गया है|

 

इस तकनीक में एक चिंपैंजी एंडिनोवायरस ChAdOx1 संशोधित किया गया हैं। इस वायरस को संशोधित इसलिए किया गया हैं जिससे ये मानव कोशिकाओं में कोविड-19 स्पाइक प्रोटीन ले जाने में सक्षम हो सकें। यह वायरस संक्रमित नहीं कर सकता परंतु यह वायरस प्रतिरक्षा तंत्र को किसी वायरस के खिलाफ प्रतिरक्षा प्रणाली को मजबूत करने में सहायक होता है।

 

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