Human Evolution and Development in Hindi

हमारे मस्तिष्क में या आम चर्चा में अनेक प्रश्न जन्म लेते रहते हैं । जिसमे कुछ के उत्तर परीक्षणों या साक्ष्यों के आधार पर सिद्ध होते हैं। वही कुछ प्रश्न ऐसे होते हैं जिनका अनेक मतों या धारणाओं के आधार पर उत्तर देने का प्रयास किया जाता हैं। Human Evolution and Development

मानव क्या है? वह इस धरती पर कब आया? उसके पीछे का इतिहास क्या है? क्या प्राचीन मानव सच में बंदर था? क्या वह बंदर की तरह ही रहता था? ऐसे कई सवाल हम सभी के मन मे कभी न कभी आते ही है ।
ये ऐसे ही सवाल है जिनके विषय मे कोई एक निर्धारित उत्तर मौजूद नहीं हैं।

ये कहा जाता हैं कि जिन सवालों का उत्तर विज्ञान के पास नहीं होता हैं तो उन सवालों का उत्तर दर्शन के आधार पर भी देने का प्रयास किया जाता हैं।

ऐसे में इन सवालों का न तो विज्ञान और न ही धर्म के पास कोई निश्चित जवाब हैं क्योंकि इन सवालों की अनेक व्याख्याओं में मतभेद बना ही रहता हैं ।
विज्ञान अपना तर्क देता है और धर्म का अपना तर्क है पर अनेक तर्कों और व्याख्याओं के बाद भी बार बार इन सवालों का सटीक उत्तर ढूंढने के प्रयास जारी हैं।

ऐसे ही कुछ सवालों से संबंधित वैज्ञानिकों और धर्म के तर्कों और व्याख्याओं को जानेंगे।
हम पहले ही स्पष्ट कर दे कि यहाँ हम वैज्ञानिक दृष्टिकोण या दार्शनिक दृष्टिकोण जो अभी तक प्रचलित हैं, उनको आपके सामने रखना चाहते है। हमारा मकसद किसी दृष्टिकोण को सही बताना या किसी को गलत बताना नहीं हैं। Human Evolution and Development

Evolution (क्रम विकास) क्या हैं –

जैविक आबादी (Biological Population) के आनुवंशिक लक्षण (hereditary characters) में पीढ़ी दर पीढ़ी कुछ न कुछ परिवर्तन आते रहते है । पीढी दर पीढ़ी होने वाले इन परिवर्तनों को क्रम विकास या क्रम उन्नति (Evolution) कहते है।

धरती पर जीवन की उत्पत्ति कब हुई ?
मानव धरती पर कब आए ?

बचपन से आज तक हमने एक बात अनेक बार सुनी है और वह यह है कि हमारे पूर्वज बंदर थे। इस धारणा  में आगे कहा जाता हैं कि हमने खुद को समय के अनुसार विकसित किया हैं।
हमारे पूर्वज बंदर थे ?

चार्ल्स डार्विन ने इसकी व्याख्या करने का प्रयास किया हैं।

चार्ल्स डार्विन की एक किताब जिसका नाम ” On The Origin Of Species by Means Of Natural Selection”  हैं, 26 नवंबर 1859 को प्रकाशित की गई थी।
इस किताब में ” Theory Of Evolution” नामक एक अध्याय ( chapter) हैं। इस अध्याय के अंतर्गत ही ये समझाने का प्रयास किया गया है कि हमारे पूर्वज बंदर थे ।
इसमे ये बताया गया है कि समय के अनुसार बंदरो के व्यवहार में परिवर्तन आने लगा। अर्थात समय के साथ साथ बंदर भिन्न भिन्न स्थानों पर रहने लगे और भिन्न भिन्न तरीकों से जीवन यापन करने लगे। इस कारण बंदरो की आवश्यकतओं में भी परिवर्तन आना शुरू हो गया।
इस किताब में बताया गया हैं कि बंदरो का एक समूह पेड़ पर रहता था । और एक समूह जमीन पर भी रहने लगा। जमीन पर रहने वाले बंदरो के समूह में समय के साथ अनेक परिवर्तन आए जैसे वो दो पैरों पर चलने लगे, अपने दोनों हाथों का उपयोग करना सीखने लगे । ऐसे ही समय के अनुसार खाने की पूर्ति करने हेतु शिकार करने लगे। फिर समय के साथ ही आग जलाना भी सीख गए। परंतु ये सब परिवर्तन कुछ समय मे ही नही हुए थे। इन परिवर्तनों को होने में हज़ारों वर्षों का समय लगा।

Human Evolution and Development

 

Human Evolution( मानव विकास)

मानव विकास वह प्रक्रिया हैं जिसके अनुसार मानव ऐसे प्राइमेट से विकसित हुआ हैं, जो प्राइमेट अब विलुप्त (Extinct) हो चुका हैं।

प्राणीशास्त्र (Zoological) के तथ्यों के अनुसार हम होमो सेपियन्स (Homo Sapiens) यानी मनुष्य दो पैरों पर चलने वाली प्रजाति है जो पृथ्वी पर लगभग 3,15,000 वर्ष पहले सर्वप्रथम अफ्रीका में विकसित हुई थी । मनुष्य जमीन पर सीधे चलने वाली प्रजाति हैं।

अब हम एकमात्र जीवित सदस्य है , जिन्हें अनेक जूलॉजिस्ट्स, होमिनिनी( Hominini) के रूप में निर्देशित या संदर्भित करते है।

Ardipithecus , Australopithecus जैसे अनेक जीवाश्म मौजूद है जो ये सिद्ध करते है कि हम अन्य होमिनिनी( Hominini) से लाखों वर्षो पहले से थे।

ये सिद्ध करने के प्रमाण है कि हम और हमारे पूर्वजों ने गोरिल्ला से लेकर विलुप्त हो चुके Dryopithecus के साथ मिलकर पृथ्वी पर रहे है या कहे कि मिलकर पृथ्वी को साझा किया हैं।

अतः इन तथ्यों के अनुसार कह सकते है कि हम और बंदर जो अभी इस समय मे मौजूद है और जो कुछ विलुप्त हो चुके हैं, किसी न किसी रूप में एक दूसरे से जुड़े हुए रहे है। मानवविज्ञानी और प्राणीविज्ञानी दोनों ने ही इन तथ्यों को समय समय पर स्वीकार किया है कि हम और विलुप्त हो चुके होमिनिनी( Hominini) , और हम व वानर (जीवित और विलुप्त हो चुके) दोनों किसी न किसी रूप में एक दूसरे से संबंधित हैं।

चार्ल्स डार्विन ने कभी ये दावा नहीं किया कि मनुष्य बंदरो से बना हैं। हालांकि उनके समय मे कुछ ने ये बात दबाव या जोर देकर कही है कि मानव बंदरो से बना हैं।

 

मानव उत्पत्ति की इस जटिल प्रक्रिया को किसी एक सिद्धांत के द्वारा समझना बहुत मुश्किल है। मनुष्य प्राइमेट के क्रम के सदस्य है , जिसमे १८० प्रजातियां हैं।  माना जाता है कि मानव hominids परिवार का सदस्य हैं जिसके बारे मे प्रचलित है कि वह प्राचीन बन्दर के अन्य सदस्यों से वर्तमान (mybp) से लगभग ५ मिलियन साल पहले अलग हो चूका था। अफ्रीकन बन्दर जैसे चिम्पैंजी और गोरिल्ला के डीएनए से ये ज्ञात होता है की बन्दर मनुष्य का सबसे करीबी है मॉलिक्युलर और एपिजेनेटिक क्लॉक के अनुसार मानव को चिम्पांजी से पृथक करने की रेखा ५ मिलियन साल पहले ही अलग हो चुकी थी। मानव जीन्स होमो की सबसे पुराणी प्रजाति की हड़िया लगभग २.४ मिलियन साल पुरानी  रॉक स्ट्रेटा की हैं।
फिजिसिस्ट इन बातो को स्वीकार करते है कि होमो का विकास ऑस्ट्रलोपिथेकस से हुआ हैं।

 

धार्मिक दृष्टिकोण

हिन्दू धर्म मे मानव विकास क्रम से सम्बंधित अनेक मत मौजूद हैं। हिन्दू धर्म एक उदारवादी धर्म है जो समय के साथ साथ अनेक मान्यताओं और परंपराओं को ग्रहण करता आया हैं। यही कारण है हिन्दू धर्म में मानव विकास से संबंधित अनेक अवधारणाएं मौजूद है जिनमे कुछ वेदों से ली गयी है, तो कुछ ब्राह्मण ग्रन्थ से, कुछ पुराणों से तो कुछ दार्शनिक तथ्यों पर आधारित हैं।

हिन्दू धर्म की मान्यता के अनुसार मानव की उत्पत्ति स्वयं भगवान ब्रह्मा के द्वारा की गई हैं। हिन्दू धर्म कुछ ग्रंथो में उत्पत्ति और विनाश के क्रम को समझाया गया हैं।
हिन्दू धर्म की मान्यता के अनुसार ब्रह्मा, विष्णु, महेश । ये त्रिमूर्ति जीवन के चक्र को निर्धारित करते हैं।
मत्स्य पुराण के अनुसार ब्रह्मा ने सबसे पहले ऋषि, मुनियों को बनाया। अतः ऋषि मुनि ब्रह्मा द्वारा बनाए गए पहले मानव थे।
पुराणों में उल्लेख किया गया है कि ब्रह्मा ने अपनी शक्तियों से देवी शतरूपा (माता सरस्वती) को बनाया था। आगे ब्रम्हा और शतरूपा के मिलन से एक मानव का जन्म हुआ जिसे मनु नाम से जाना जाता हैं।
मनु ने कठोर तपस्या की जिससे उसे अपनी पत्नी अनंत की प्राप्ति होती हैं। ये मान्यता है कि शेष मानव जाति की उत्पत्ति मनु और अनंत से हुई है।

भागवत पुराण में भी मनु और अनंत की संतानों के जन्म का उल्लेख मिलता है। प्राचीन संस्कृत संहिता का लेखक मनु को माना जाता है।

ऋग्वेद मानव उत्पत्ति से संबंधित एक अलग मत प्रस्तुत करता हैं। इसमे ब्रह्मा के पांच पुत्रो से मानव उत्पत्ति के विषय में बताया गया हैं।

ईसाई मान्यता के अनुसार भी मानव जाति की उत्पत्ति भगवान द्वारा की गई हैं।
बाइबल के अनुसार भगवान के शरीर से एक परछाई ने जन्म लिया जिसे “एडम” नाम दे दिया गया।
अतः धार्मिक मान्यताओं के अनुसार यही कहा गया है कि मानव जाति की उत्पत्ति ईश्वर द्वारा ही की गई हैं।

मानव उत्पत्ति अत्यंत जटिल प्रक्रिया हैं , इसे ऐसी एक धारणा के द्वारा समझना आसान नही हैं।

अतः अंत मे यही कह सकते है कि ये ऐसे सवाल है जिनका उत्तर देने का प्रयास तो अनेक वैज्ञानिकों और धर्म शास्त्रों ने किया हैं। इन सवालों के जवाब में अनेक सिद्धात, मत, कथाएं प्रचलित हैं।
परंतु ऐसे प्रश्नों पर किसी एक वैज्ञानिक की मान्यता को मानकर उसे सही होने का टैग दे देना भी सही नही होगा । कुल मिलाकर इन सवालों के अभी तक तो कोई ऐसा सटीक उत्तर मिला नहीं जो सबको मान्य हो।

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