Kaafal (काफल) : उत्तराखंड का जंगली फल 

उत्तराखंड जिसे देवों की भूमि कहा जाता है, जिस प्रकार की भूमि उसी प्रकार के गुण। यहाँ के कण-कण में देवी-देवताओं के आशीर्वाद से प्राकृतिक सुंदरता के साथ-साथ दिव्य एवं मनोरम दृश्य यहाँ की भूमि को और अधिक पुण्य बनाती है। यहाँ के फल-फूल पुरे भारत में अपने दैवीय गुणों के कारण प्रसिद्ध है। उत्तराखंड में वैसे तो बहुत से औषधीय एवं दैवीय गुणों वाले फल होते है पर आज हम बात करेंगे एक ऐसे फल की जिसमे अनेक प्रकार के दैवीय गुण समाहित है। और उस फल का नाम है – Kaafal (काफल)।

 

Kafal (काफल) 

Kaafal (काफल) का वैज्ञानिक नाम मिरिका एस्कुलेन्टा (Myrica Esculenta) है। अंग्रेजी भाषा  में इसे बे-बैरी (Bay Berry) या ब्लू-बैरी (Blue Berry) नाम से जाना जाता है। काफल एक प्राकृतिक पेड़ है, यह जंगलों में खुद ही हो जाता है या कहे यह प्रकृति की देन है।

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काफल में अनेक औषधीय गुण है जिनका पूरा व्यख्यान आयुर्वेद में मिलता है। यह फल अपने‌‌ आप में एक जड़ी-बूटी है। काफल शब्द का अर्थ ही है कफ और बात को हरने वाला। चरक संहिता में भी इसके अनेक गुणकारी लाभों के बारे में वर्णन है।

काफल के छाल, फल, बीज, फूल सभी का इस्तेमाल किसी न किसी रूप में औषधि के रुप में किया जाता है। काफल सांस संबंधी समस्याओं, डायबिटीज, पाइल्स, मोटापा, मुंह में छाले, बुखार, अपच, शुक्राणु के लिए फायदेमंद व दर्द निवारण में उत्तम औषधि का काम करता है।

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काफल के फायदे | Benefits of Kaafal

काफल के फल में अनेक औषधीय गुण होने के कारण इसके बहुत से फायदे है जो निम्नवत है :-

(1). सिरदर्द में असरकारक : – आजकल‌ के व्यस्त समय में सिरदर्द ऐसी बिमारी है जिससे हर‌ कोई ग्रसित है। आयुर्विज्ञान ने काफल के ऐसे गुणकारी इलाजों को खोजा है जिससे आप घरेलु उपायों से ही सिरदर्द से निजात पा सकते हैं। काफल‌ की छाल का चूर्ण बनाकर नाक से सांस लेने पर सिरदर्द से निजात मिलता है। वहीं इसके अलावा काफल के तेल को गर्म करके सूंघने से भी सिरदर्द में आराम मिलता है।

(2). आँखों के इलाज में असरकारक :- काफल आँख के इलाज में भी बहुत लाभकारी है। आए दिन हम आँख की विभिन्न समस्याओं से ग्रसित होते रहते हैं। जैंसे आँख का लाल होना, रतौंधी, आँख में दर्द आदि।‌ काफल से बना काजल इन परेशानियों को दूर करने में लाभकारी है।

(3). नाक  एवं कान की समस्याओं में असरकारक : नाक एवं कान संबंधी समस्याओं से निजात के लिए भी काफल का प्रयोग किया जाता है।

(4). दांत दर्द में असरकारक :- दांत के दर्द में काफल के तने की छाल को दाँतों में दबाने से दांत दर्द से  छुटकारा मिलता है।

(5). सांस सबंधित समस्याओं में असरकारक :– कफ जनित सांस की समस्याओं में काफल अत्यंत लाभकारी औषधि का कार्य करता है। काफल के चूर्ण में, शहद व अदरक मिलाकर सेवन करने से कफ जनित सांस की समस्या में लाभ मिलता है।

(६). खांसी , पेटदर्द  में असरकारक :- काफल‌ के छाल के काढ़े को पीने से खांसी‌ में लाभ प्राप्त होता है।काफल चूर्ण को एक चुटकी नमक के साथ सेवन करने से पेट दर्द में भी लाभ मिलता है।

(7). बुखार में असरकारक :- बुखार में राहत के लिए काफल चूर्ण में काली मिर्च का चूर्ण मिलाकर शहद के साथ खाने से बुखार में लाभ मिलता है।

(8). लकवा में भी असरकारक :- काफल के तेल को शरीर पर मलने से पक्षाघात (लकवा) में भी लाभ मिलता है।

आयुर्वेद की दृष्टि से काफल की छाल, फूल, बीज एवं फल का प्रयोग औषधि बनाने में किया जाता है जो बहुत सी व्याधियों को दूर करती है।

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प्रचलित कथा । Story of Kaafal

उत्तराखंड के एक गांव में एक गरीब महिला और उसकी बेटी रहती थी उनके परिवार में वो दोनों ही एक दूसरे का सहारा थी, उस महिला के पास थोड़ी-सी जमीन के अलावा कुछ नहीं था जिससे उनका गुजारा चलता था। गर्मियों में जैसे ही काफल पक जाते थे वह महिला और उसकी बेटी बेहद खुश हो जाया करते थे क्योंकि उससे उन्हें घर चलाने के लिए एक आय का जरिया मिल जाता था। इसलिए वह जंगल से काफल तोड़कर उन्हें बाजार में बेचा करती थी।
एक बार वह महिला जंगल से एक टोकरी भरकर काफल तोड़कर लाई। वह वक़्त सुबह का था उसे जानवरों के लिए चारा लेने जाना था इसलिए उसने काफल को शाम को बेचने का फैसला किया और अपनी बेटी को बुलाकर काफल की पहरेदारी करने को कहा, और हिदायत दी कि जब तक मैं जंगल से नहीं आती तब तक काफल मत खाना मैं खुद तुम्हें बाद में काफल खाने को दूंगी। माँ की बात मानकर बेटी काफलों की पहरेदारी करती रही, इसके बाद कई बार रसीले काफलों को देखकर उसके मन में लालच आया पर माँ की बात मानकर खुद पर काबू कर बैठे रही। दिन में जब माँ जंगल से वापस आयी तो देखा कि काफल का एक तिहाई भाग कम था और पास में ही उसकी बेटी सो रही थी।

सुबह से काम पर लगी माँ को ये देखकर गुस्सा आ गया और उसे लगा कि उसके मना करने के बावजूद भी उसकी बेटी ने काफल खा लिए है गुस्से में माँ सोती हुई अपनी बेटी की पीठ पर अपने हाथ से प्रहार किया बेटी सो रखी थी इसलिए वह उसी अवस्था मे बेसुध हो गई। जब उसकी बेटी नहीं उठी तोह उसने अपनी बेटी को खूब हिलाया लेकिन तक तक उसकी बेटी की मौत हो चुकी थी।

माँ अपनी बेटी की इस तरह मौत देखकर रोती रही। दूसरी तरफ शाम होते-होते काफल की टोकरी पूरी भर गई जब महिला की नजर टोकरी पर पड़ी तो उसे समझ में आया कि दिन की चटक धूप और गर्मी के कारण काफल मुरझा गए थे और शाम को ठंडी हवा लगते ही वह फिर ताजे हो जाते है अब मां को अपनी गलती पर बेहद पछतावा हुआ और वह भी उसी पल सदमें से गुजर गई।


चैत के महीने में चिड़िया कहती है – काफल पाको मैं नि चाख्यो |

कहा जाता है कि उस दिन के बाद से एक चिड़िया चैत के महीने में “ काफल पाको मैं नि चाख्यो ” कहती है जिसका अर्थ है कि ‘काफल पक गए, लेकिन मैंने नहीं चखें’। और दूसरी तरफ चिड़िया गाते हुए उड़ती है ‘पूरे है बेटी पूरे है’। यह कहानी उत्तराखंड में काफल की अहमियत को बयां करती है आज भी गर्मी के मौसम में कई परिवार इसे जंगल से तोड़कर उसके बाद उसे बेचकर अपनी रोजी-रोटी की व्यवस्था करते है।

 

उत्तराखंड का दैवीय गुणों वाला फल

देवभूमि उत्तराखंड में बहुत से ऐसे फल है जिनकी अपनी अलग-अलग विशेषता है। ऐसे ही फलों में एक बेहद लोकप्रिय फल है- काफल । काफल एक जंगली फल है इसे कहीं नहीं उगाया जा सकता,बल्कि यह अपने-आप उगता है और हमें मीठे फल खाने का सौभाग्य देता है। कुछ लोगों का कहना है कि काफल को अपने ऊपर बहुत नाज है और वह खुद को देवताओं के खाने योग्य समझता है, कुमाऊंनी भाषा में एक लोक गीत में काफल अपना दर्द बयां करते हुए कहता है-

“खाणा लायक इंद्र का, हम छियां भूलोक आई पणां”

इसका अर्थ है कि हम स्वर्ग लोक में इंद्र देवता के खाने योग्य थे और अब भू लोक में आ गए है।

यह फल पकने के बाद बेहद लाल हो जाता है तभी इससे खाया जाता है वहीं दूसरी ओर ये पेड़ अनेक प्राकृतिक औषधीय गुणों से भरपूर है।

आयुर्वेद में काफल को भूख की अचूक दवा बताया गया है, डायबिटीज के मरीजों के लिए काफल रामबाण औषधि कही गयी है। इसमें उपस्थित एंटी-ऑक्सीडेंट गुणों के कारन यह फल दैवीय गुणों वाला कहा जाता है।

 

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