निजी क्षेत्र से संबंधित रोजगार में स्थानीय आरक्षण का मुद्दा / Issue of local reservation in Private Sector Jobs/ Private Sector Reservation

Private Sector Reservation

चर्चा में क्यों – 

 

पिछले साल हरियाणा मंत्रिमंडल द्वारा स्थानीय निवासियों के लिए निजी क्षेत्र में 75% नौकरियों के आरक्षण से संबंधित एक अध्यादेश प्रारूप को स्वीकृति दी गई है। इसके तहत प्रावधान है कि स्थानीय निवासियों को निजी क्षेत्र में 75% आरक्षण प्रदान किया जाएगा । यह अध्यादेश स्थानीय आबादी में उत्पन्न बेरोजगारी के मुद्दे के समाधान के तौर पर लाया गया है ।

इस लेख में ऐसे अध्यादेशों की आवश्यकता क्यों हो रही हैं ?
ऐसे अध्यादेशों के कार्यान्वयन में क्या क्या समस्याएं उत्पन्न हो सकती है ?

इन्ही सब मुद्दों पर चर्चा की गई हैं।

 

स्थानीय स्तर पर लोगो द्वारा निजी क्षेत्र में माँग के प्रमुख कारण 

 

बेरोजगारी की बढ़ती दर –

 

पिछले कुछ सालों से देश में बेरोजगारी की दर में वृद्धि हुई हैं। जिसके अनेक कारण हो सकते हैं ।
वहीं पिछले साल कोरोना महामारी से भी बेरोजगारी दर में वृद्धि हुई हैं। कौशल के अभाव को भी बेरोजगारी बढ़ने के लिए कारण माना जा सकता है। अतः बढ़ती बेरोजगारी के कारण भी स्थानीय स्तर पर यह मांग उठती रही है कि राज्य में मूल निवास के आधार पर निजी क्षेत्र में आरक्षण का प्रावधान किया जाए।

 

 

भारत में बड़े स्तर पर प्रवास का मुद्दा –

 

कुछ आंकड़ों के अनुसार यह अनुमान लगाया जाता है कि 65 मिलियन लोग एक राज्य से दूसरे राज्यों में प्रवास करते हैं। जिनमें से 31 प्रतिशत प्रवासी, श्रमिक वर्ग के होते हैं। यह प्रवासी एक राज्य से दूसरे राज्य में जाकर रोजगार क्षेत्र में प्रतिस्पर्धा में वृद्धि करते हैं। जिस कारण कहीं ना कहीं स्थानीय लोगों में असंतोष उत्पन्न होता है। स्थानीय स्तर पर लोगों का निजी क्षेत्र में आरक्षण की मांग के लिए भारत में प्रवास की दर को भी को भी एक कारण माना जा सकता है।

 

 

देश में राज्यों को लेकर मुद्दे –

 

दक्षिण भारत के राज्य के अनुसार आमतौर पर यह अवधारणा है कि वित्त आयोग हमेशा से निर्धनता और जनसंख्या को उच्च भारंश प्रदान करता है ।

जिस कारण वित्त का अधिकांश हिस्सा उतरी भारत को प्राप्त होता है। इस तरह दक्षिण राज्यो में एक धारणा ये है कि स्थानीय आरक्षण उनको लाभ प्राप्त करने का एक साधन है।

 

 

असमान प्रतिनिधित्व – 

 

कुछ रिपोर्टों के अनुसार जैसे कि स्टेट आफ वर्किंग इंडिया 2018 में उल्लेख किया गया था कि कॉर्पोरेट क्षेत्र में दलितों और मुसलमानों का प्रतिनिधित्व अत्यंत कम है । इसलिए यह माना जाता हैं कि आरक्षण निजी क्षेत्रों में इन वर्गों के प्रतिनिधित्व में वृद्धि करने का कार्य कर सकता है।

 

 

कृषि क्षेत्र में संकट का दौर –

 

कृषि क्षेत्र पर कार्य बल का दबाव बढ़ता ही जा रहा है, जिससे ग्रामीण क्षेत्र में कृषि पर निर्भर करने वाली जनसंख्या अनेक अभाव से ग्रस्त हो रही है। जिस कारण वह रोजगार प्राप्त करने के लिए प्रयास कर रहे हैं। जिससे अन्य राज्यों में स्थानीय जनता में असंतोष उत्पन्न होता है। जिस कारण वह निजी क्षेत्र में आरक्षण के मुद्दे को बार-बार उठाते रहते हैं। अतः कृषि संकट को भी स्थानीय स्तर पर निजी क्षेत्र में आरक्षण को बढ़ावा देने का कारण माना जा सकता है।

 

 

कृषि भूमि का अधिग्रहण-

 

विकास के नाम पर अनेक कार्यों के लिए भूमि की आवश्यकता होती हैं। भूमि आवश्यकता पूर्ति भूमि का अधिग्रहण करके किया जाता है। जिससे कृषि भूमि का अधिग्रहण भी कुछ मामलों में हो रहा है। जिस कारण कृषि क्षेत्र पर निर्भर जनसंख्या का एक भाग बेरोजगार हो रहा हैं या कहे की कमाई के साधनों से वंचित हो रहा है। जिस कारण विस्थापन में वृद्धि हो रही है और इसको भी इन सभी मुद्दों के लिए जिम्मेदार माना जाना चाहिए या माना जा सकता है।

Private Sector Reservation

 

 

निजी क्षेत्र में स्थानीय आरक्षण से संबंधित मुद्दे के कार्यान्वयन में आने वाली समस्याएं / Private Sector Reservation

संविधान में प्रावधान –

संविधान के अनुसार यह अध्यादेश मूल अधिकार के अनुच्छेद 14 और अनुच्छेद 16 का उल्लंघन करता है। अनुच्छेद 14 समता का अधिकार से संबंधित है वही अनुच्छेद 16 अवसर की समता का अधिकार से संबंधित है।
अनुच्छेद 16 के अनुसार नियोजन में आरक्षण प्रदान करने या देने का अधिकार केवल संसद को प्राप्त है ना कि राज्य सरकार को वही संविधान में आरक्षण से संबंधित  जो अधिकार संसद को प्राप्त हैं  वह भी केवल सार्वजनिक क्षेत्र से संबंधित हैं ना कि निजी क्षेत्र से।

 

 

देश की एकता से संबंधित मुद्दे-

 

कुछ विशेषज्ञों का अनुमान है कि निजी क्षेत्र में स्थानीय स्तर पर आरक्षण के मुद्दे से कुछ नई समस्याएं उत्पन्न हो सकती हैं जिन्हें अप्रत्याशित नवीन समस्याएं भी कहा गया है । ऐसी समस्याओं को बढ़ावा मिल सकता है क्योंकि एक राज्य को देखकर अन्य राज्य भी ऐसे अध्यादेश ला सकते हैं। या इस ओर कदम बढ़ाने का प्रयास कर सकते हैं। जिससे देश की एकता को आघात पहुंचने के अवसर उत्पन्न हो सकते हैं।

 

 

निवेश में कमी की संभावनाएं –

 

इस प्रकार के अध्यादेश निवेशकों को चिंतित कर सकते हैं तथा उन्हें हतोत्साहित करने का कार्य कर सकते हैं। जिससे निवेशक किसी विशेष क्षेत्र में निवेश करने से पीछे हट सकते हैं । जिससे रोजगार सृजन में गिरावट आ सकती है

 

 

स्टार्ट अप में कमी आने की संभावनाएं –

 

ऐसे अध्यादेश द्वारा नए व्यापार करने के अवसरों को भी आघात लग सकता है । कह सकते हैं कि ऐसे मुद्दे व्यवसाय करने में सुगमता में एक अवरोध का कार्य कर सकते हैं।

Private Sector Reservation

 

कुछ क्षेत्रों में कार्य करने के लिए विशेष कौशल की मांग होती हैं।
निवेशकों के सामने कौशल प्राप्त श्रमिकों की उपलब्धता से संबंधित मुद्दे भी आ सकते हैं। अगर स्थानीय स्तर पर आवश्यक कौशल श्रमिक प्राप्त नहीं होते है तो उन्हें अन्य राज्यों से कौशल युक्त श्रमिक रखने के लिए बाध्य होना पड़ेगा।

 

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