Panchayati raj system history in Pre-independence India | भारत में स्वतंत्रता पूर्व स्थानीय स्वशासन और पंचायती राज संस्थानों का इतिहास।

 

Panchayati raj system

स्वतंत्रता पूर्व भारत में स्थानीय स्वशासन और पंचायत राज संस्थानों का इतिहास।

हमारे अनेक महापुरुषों जैसे कि महात्मा गांधी का सपना था कि देश में विकेंद्रीकृत शासन व्यवस्था लागू की जाए ।
महात्मा गांधी जैसे अनेक महापुरुषों का सपना था कि अगर भारत में स्थानीय स्वशासन स्थापित किया जाए तो देश विकास के पथ पर तेजी से अग्रसर होगा।

विकेंद्रीकृत शासन व्यवस्था से तात्पर्य है कि शासन सत्ता किसी एक केंद्र पर केंद्रित ना होकर विभिन्न स्तरों पर शासन को विभाजित किया जाए। जिससे की आम आदमी की भागीदारी शासन सत्ता में सुनिश्चित की जा सके। जिससे आम आदमी अपनी समस्याओं और आवश्यकताओं को ध्यान में रखकर शासन व्यवस्था में भागीदारी करके निर्णय प्रक्रिया में योगदान दे सकें।

पंचायती राज संस्थान (Panchayati raj system) स्थानीय स्वशासन की संकल्पना पर ही आधारित हैं।
स्थानीय स्वशासन से तात्पर्य है कि स्थानीय लोगों द्वारा निर्वाचित व्यक्तियों या निकायों द्वारा स्थानीय मामलों का प्रबंधन सुनिश्चित करना।
यही सब लक्ष्य को ध्यान में रखते हुए और स्थानीय स्वशासन की संकल्पना स्थापित करने के लिए ही संविधान संशोधन अधिनियम 1992 के द्वारा पंचायती राज संस्थान को संवैधानिक अधिकार प्रदान किए गए ।

इस लेख में हम भारत मे स्थानीय स्वशासन या पंचायती राज व्यवस्था (Panchayati raj system) के इतिहास को जानने का प्रयास करेंगे।

 

भारत में पंचायती राज व्यवस्था का इतिहास | History of Panchayati raj system 

 

वैदिक युग :-

वैदिक युग में स्थानीय शासन इकाइयों का उल्लेख मिलता है। ऋग्वेद में “सभा”, “समिति” और “विदथ” के रूप में स्थानीय समितियों को उल्लेखित किया गया है। ये स्थानीय स्तर पर मौजूद लोकतांत्रिक निकाय या संस्थाएं थी। राजा को कुछ कार्य करने करने के लिए इन संस्थाओं या निकायों की स्वीकृति प्राप्त करनी होती थी।

प्राचीन संस्कृत ग्रंथों में “पंचायतन” शब्द का उल्लेख मिलता है । जिसका तात्पर्य है कि एक आध्यात्मिक व्यक्ति को मिलाकर 5 व्यक्तियों का समूह। कुछ समय पश्चात इन समूहों में एक आध्यात्मिक व्यक्ति को स्थान देने की अवधारणा समाप्त हो गई।

 

महाकाव्य युग :-

रामायण और महाभारत युग में भी स्थानीय स्वशासन की संकल्पना के संकेत प्राप्त होते हैं। रामायण काल में प्रशासन दो भागों में विभाजित था : पुर और जनपद  (नगर और ग्राम)

राज्य में एक जाति पंचायत के अस्तित्व के संकेत भी मिले हैं । जिसमें जाति पंचायत द्वारा चुना गया व्यक्ति या निर्वाचित व्यक्ति राजा के मंत्री परिषद में सदस्य होता था।

महाभारत के “शांति पर्व” में भी ग्रामों के स्थानीय स्वशासन से संबंधित  पर्याप्त साक्ष्य मिले हैं। महाभारत के अनुसार ग्राम के ऊपर 10, 20, 100, 1000 ग्राम समूह की इकाइयां विद्यमान होती थी। ग्राम का मुख्य अधिकारी “ग्रामिक”  कहलाता था। 10 ग्रामों का प्रमुख “दशप” कहलाता था।

 

प्राचीन काल :-

कौटिल्य के अर्थशास्त्र में ग्राम पंचायतों या स्थानीय स्वशासन व्यवस्था का उल्लेख प्राप्त होता है । प्राचीन काल में संकेत मिलता है कि स्थानीय निकाय किसी भी तरह के राजश्री हस्तक्षेप से मुक्त होते थे।

मौर्य तथा मौर्योत्तर काल में भी  वृद्धों की एक परिषद (Council of Elders) की सहायता से ग्राम का मुखिया ग्राम के कार्यों में एक महत्त्वपूर्ण भूमिका का निर्वहन करता रहा।

Panchayati raj system

 

मध्यकाल :-

मध्यकाल में स्थानीय स्वशासन के अनेक साक्ष्य या संकेत प्राप्त होते हैं । जैसे कि सल्तनत काल के दौरान राज्यो को प्रांतों में विभाजित किया गया था। जिन्हें “विलायत” नाम से संबोधित किया जाता था। ग्राम स्तर पर शासन के लिए तीन महत्वपूर्ण अधिकारियों का उल्लेख मिलता है।

* मुकद्दम , अधिकारी प्रशासन के लिए।
* पटवारी , राजस्व संग्रह के लिए।
* चौधरी , पंचों की सहायता प्राप्त करके विवादों का समाधान करता था।

मध्यकाल में जब भारत में मुगल शासन स्थापित था तब जातिवाद और सामंतवादी व्यवस्था के कारण ग्रामीण स्वशासन को विशेष आघात लगा।
इनके कारण ग्रामीण स्वशासन प्रणाली धीरे-धीरे नष्ट होने की ओर अग्रसर होते हुए नष्ट हो गयी।

 

ब्रिटिश शासन :-

 

ब्रिटिश औपनिवेशिक नीतियों के कारण ग्राम पंचायतों की स्वायत्तता समाप्त हो गई और वह एक जर्जर स्थिति में पहुंच गई।

बाद में ब्रिटिश शासन के कुछ कानूनों ने स्थानीय स्वाशन को दुबारा आधार प्रदान किया।

1870 में “मेयो प्रस्ताव” ने स्थानीय संस्थाओं की शक्ति और उत्तरदायित्व में वृद्धि करने का कार्य किया। जिसने स्थानीय संस्था के विकास को गति प्रदान की। इसी वर्ष नगर पालिकाओं में निर्वाचित प्रतिनिधियों की संकल्पना को प्रस्तुत किया गया।

लार्ड रिपन द्वारा 1882 में स्थानीय संस्थाओं को लोकतांत्रिक ढांचा प्रदान किया गया। इसे ही भारत में स्थानीय स्वशासन का मैग्नाकार्टा कहा जाता है।

इसके द्वारा सभी बोर्डों में निर्वाचित गैर अधिकारियों के दो तिहाई बहुमत को अनिवार्य बना दिया गया और निकायों के अध्यक्ष का चयन भी गैर अधिकारियों में से ही होना था।

वर्ष 1919 में मांटेग्यू चेम्सफोर्ड सुधारों ने स्थानीय स्वशासन सरकार से संबंधित विषयों को प्रांतो के अधिकार क्षेत्र में स्थानांतरित कर दिया।

वर्ष 1925 तक 8 प्रांतों में पंचायत अधिनियम को पारित किया और वर्ष 1926 में 6 देशी रियासतों ने पंचायत कानून को पारित किया। Panchayati raj system

अतः हमने भारत की स्वतंत्रता से पूर्व की स्थानीय या पंचायत संस्थाओं के इतिहास की जानकारी ऊपरी तौर पर लेने का प्रयास किया। हमारा प्रयास रहेगा कि आगे स्वतंत्रता के बाद किस प्रकार पंचायत राज व्यव्यस्था को स्थापित किया गया । इसके बारे में लेख लेकर आएंगे।

 

SEARCH TERMS : Panchayati raj system | History of Panchayati raj system | भारत में पंचायती राज व्यवस्था का इतिहास | Panchayati raj system history in Pre-independence India

HKT BHARAT के सोशल मीडिया ( social media ) माध्यमों को like करके निरंतर ऐसे और लेख पढ़ने के लिए हमसे जुड़े रहे |

FACEBOOK PAGE

KOO APP

INSTAGRAM 

PINTEREST

TWITTER 

READ ALSO : Emergency in India | National Emergency in India | आपातकाल | भारत में आपातकाल

READ ALSO : 10 Habits Of Mentally Strong People In Hindi | मानसिक रूप से मजबूत व्यक्तियों की 10 पहचान |

READ ALSO : BOOK REVIEW AND SUMMARY – मुझे बनना है UPSC टॉपर