First World War : Treaty of Versailles | प्रथम विश्व युद्ध : वर्साय की संधि
First World War : Treaty of Versailles
साम्राज्यवाद की लड़ाई में कई बार इस धरती पर खून की होली खेली जा चुकी है। जिसमें लाखों लोग अपनी जान दे चुके हैं। 1914 में एशिया अफ्रीका और यूरोप के बीच समुद्र, धरती और आकाश में एक ऐसा ही महायुद्ध हुआ। जिसमें करीब 1 करोड़ लोगों की जान चली गई और लाखों लोग घायल हो गए इस युद्ध को हम सभी प्रथम विश्वयुद्ध के नाम से जानते हैं। First World War
इस युद्ध ने दुनिया का नक्शा और इतिहास बदल कर रख दिया। 4 साल से ज्यादा चले इस युद्ध का अंत नवंबर 1918 को हुआ इसके बाद युद्ध में जीती ताकतों ने अपने फायदे और युद्ध में नुकसान की भरपाई के लिए हारे हुए देशों खासकर जर्मनी के खिलाफ एक संधि की जिसे वर्साय की संधि (Treaty of Versailles) के नाम से जाना जाता है।
इस संधि के तहत जर्मनी पर आर्थिक, सामाजिक, सैनिक और सामरिक तमाम तरह के प्रतिबंध लगा दिए गए, एक तरह से उसे पंगु बनाने की कोशिश की गई। आज के इस लेख के माध्यम से हम जानेंगे वर्साय की संधि, प्रथम विश्व युद्ध से जुड़े तमाम घटनाक्रम के बारे में।
4 साल 3 महीने और 11 दिनों तक चले प्रथम विश्व युद्ध मैं करीब 30 देशों के 6 करोड़ पचास लाख सैनिकों ने भाग लिया और दुनिया के अधिकांश स्त्री पुरुष किसी ना किसी रूप में इस युद्ध में शामिल या प्रभावित थे। इस युद्ध की समाप्ति और वर्साय की संधि (Treaty of Versailles) पर समझौता होने तक अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कई राजनीतिक घटनाएं घटी जो इस प्रकार है-:
28 जून 1914 को ऑस्ट्रिया के आर्चड्यूक फर्डिनेंड की हत्या से ऑस्ट्रिया और सर्बिया के बीच शुरू हुआ युद्ध धीरे-धीरे विश्व युद्ध में बदल गया। यह युद्ध 4 साल 3 महीने और 11 दिन तक चला और आखिरकार 11 नवंबर 1918 को जर्मनी एवं मित्र राष्ट्र के बीच युद्ध विराम संधि पर हस्ताक्षर हुए और उसके बाद युद्ध समाप्त हुआ।
इस युद्ध विराम संधि के बाद विजेता देशों ने पराजित देशों के साथ स्थाई समझौता करने के लिए साल 1919 में पेरिस में शांति सम्मेलन का आयोजन किया। इस सम्मेलन की मुख्य शर्तों में राष्ट्रीयता के सिद्धांत के आधार पर राज्यों की सीमा निर्धारण करने, विजयी देशों को क्षति पूर्ति दिलवाने और स्थाई शांति स्थापित करने के उपाय पर विचार करना शामिल था। Treaty of Versailles
पेरिस की शांति संधि 1919 | Paris Peace Conference 1919
- इस सम्मेलन में भाग लेने के लिए 32 देशों को आमंत्रित किया गया था।
- इसमें रूस और पराजित राष्ट्र जर्मनी, ऑस्ट्रिया, तुर्की और बुल्गारिया को आमंत्रित नहीं किया गया था
- अलग-अलग देशों के 70 प्रतिनिधि इसमें शामिल हुए थे। अमेरिका के राष्ट्रपति वुड्रो विल्सन के अलावा 11 देशों के प्रधानमंत्री, 12 विदेश मंत्री और कई राज्यों के राजनीतिज्ञ इसमें शामिल हुए।
- इसके अलावा बड़ी संख्या में आम लोग, सैनिक, राजनेता और मजदूर नेता भी पेरिस पहुंचे थे।
- 18 जनवरी 1919 को सम्मेलन का पहला पूर्ण अधिवेशन का उद्घाटन किया गया।
पेरिस शांति सम्मेलन में पहुंचे राष्ट्र अध्यक्षों ने अपनी-अपनी राय रखी। जिसमें अमेरिकी राष्ट्रपति वुड्रो विल्सन का 14 सूत्री सिद्धांत काफी महत्वपूर्ण था। विल्सन ने विश्व में शांति स्थापित करने के लिए राष्ट्र संघ की स्थापना की बात गई और उसके बाद ही राष्ट्र संघ अर्थात लीग ऑफ नेशन्स (League of Nations) अस्तित्व में आया।
पेरिस की शांति सम्मेलन में पांच पराजित देश थे और उनके साथ पांच अलग-अलग संधिया की गई। यह सभी संधि पेरिस की शांति संधिया कहलाई। इनमें जर्मनी के साथ वर्साय की संधि, ऑस्ट्रिया के साथ सेंट जर्मन की संधि, बुल्गारिया के साथ न्यूइली की संधि, हंगरी के साथ ट्रियनों की संधि और तुर्की के साथ सेव्रे की संधि की।
दरअसल पेरिस के शांति सम्मेलन में अलग-अलग संधियों के जरिए शांति स्थापित करने का प्रयास किया गया। पेरिस शांति सम्मेलन के दौरान मित्र राष्ट्रों ने उन बाधाओं और समस्याओं का हल ढूंढने का प्रयास किया, जिससे दोबारा युद्ध जैसी परिस्थिति न झेलनी पड़े। इस सम्मेलन में कई महत्वपूर्ण बातों पर चर्चा हुई:-
- ऐसी व्यवस्था करना, जिससे भविष्य में युद्ध की संभावना ना हो।
- विश्व में शांति बनाए रखने के लिए एक अंतरराष्ट्रीय संगठन की स्थापना की गयी।
- फ्रांस की सुरक्षा का सवाल भी शांति परिषद के सामने प्रमुख मुद्दा था। अपनी रक्षा के लिए फ्रांस चाहता था की राइन नदी के पश्चिमी प्रदेश को जर्मनी से अलग कर ऐसे राज्य के रूप में बदल दिया जाए जो राजनीतिक रूप से फ्रांस के प्रभाव में रहे।
इन मुद्दों के अलावा अनेक ऐसे मुद्दे थे जिनका पेरिस के शांति सम्मेलन में हल ढूंढने की कोशिश की गई। प्रथम विश्व युद्ध के दौरान जर्मनी ने कई राष्ट्रों के इलाकों को जीत कर उन पर कब्जा जमा लिया। पेरिस सम्मेलन के दौरान जर्मनी से वे राष्ट्र अपने जीते इलाको को वापस चाहते थे। उनकी कोशिश थी कि उनकी राष्ट्रीयता बनी रहे। इसके साथ ही युद्ध के दौरान अफ़्रीका और एशिया में अनेक जर्मन उपनिवेशको पर मित्र राष्ट्रों ने कब्जा कर दिया था। उनके साथ क्या किया जाए, पहले सम्मेलन में यह भी महत्वपूर्ण मुद्दा था।
इसके अलावा पेरिस सम्मेलन में शामिल हुए देशों के सामने सबसे बड़ी चुनौती थी की एक ऐसी व्यवस्था की जाए ताकि जर्मनी दोबारा इतना प्रभावशाली ना हो ताकि यूरोप की शांति को खत्म कर दे। इसके लिए वे जर्मनी की सामरिक और सैनिक शक्ति को कम करना चाहते थे। इसके साथ ही मित्र राष्ट्र युद्ध की क्षतिपूर्ति भी जर्मनी से कराना चाहते थे। इन सभी मुद्दों को ध्यान में रखकर वर्साय की संधि को अंजाम दिया गया। करीब 4 महीने तब चले लम्बे चर्चा के बाद आखिरकार 6 मई 1919 को संधि का अंतिम मसौदा तैयार हुआ और 7 मई में 1919 इसे जर्मन के प्रतिनिधियों को सौंप दिया गया। Treaty of Versailles
वर्साय की संधि (Treaty of Versailles)के प्रावधान एवं व्यवस्था
वर्साय की संधि ने जर्मनी की अर्थव्यवस्था को पूरी तरह बर्बाद कर दिया। राजनीतिक और कूटनीतिक तौर पर पूरी दुनिया के सामने उसकी बेइज्जती हुई और यही वजह थी, जिसके कारण आगे चलकर जर्मनी में नाजीवाद और उसकी क्रूरता को पनपने की जमीन मिल गई। इस संधि के जरिए वैश्विक मानचित्र का ढांचा और जर्मनी का मानचित्र पूरी तरह से बदल गया
पेरिस के शांति सम्मेलन में अनेक संधियों और समझौतों के प्रारूप तैयार किए गए थे। इन सभी संधियों में जर्मनी के साथ की गई वर्साय की संधि सबसे महत्वपूर्ण थी। 230 पन्नों में छपा हुआ यह संधि पत्र 15 भागों में विभाजित था, और इसमें 439 धाराएं थी। मित्र राष्ट्रों ने सबसे पहले जर्मनी को प्रथम विश्वयुद्ध के लिए जिम्मेदार और अपराधी बताकर उसके प्रतिनिधियों की गैरमौजूदगी में वर्साय की संधि का मसौदा तैयार किया।
मई 1919 में संधि का मसौदा जर्मन प्रतिनिधियों को सौंप दिया गया। और उन्हें धमकी दी गई कि अगर जर्मनी इस पर हस्ताक्षर नहीं करेगा तो उसे युद्ध करना पड़ेगा। प्रथम विश्व युद्ध में पराजित जर्मनी ने 28 जून 1919 को वर्साय की संधि पर हस्ताक्षर किए। संधि के माध्यम से उसके अधिकारों को सीमित कर दिया गया था। वर्साय की संधि के तहत कई व्यवस्थाएं की गई जिनमें प्रादेशिक व्यवस्थाएं, सैनिक व्यवस्थाएं और आर्थिक व्यवस्थाएं प्रमुख थी। Treaty of Versailles
वर्साय संधि (Treaty of Versailles) की प्रादेशिक व्यवस्थाएं :-
- जर्मनी को अल्सास-लॉरेन के प्रांत फ्रांस को देने पड़े।
- नवनिर्मित राष्ट्र बेल्जियम, पोलैंड और चेकोस्लोवाकिया की स्वतंत्रता और प्रभुसत्ता को को जर्मनी ने मान्यता दी।
- जर्मनी को अपने उपनिवेश के ऊपर सारे अधिकार मित्र राष्ट्र को सौंपने के लिए मजबूर किया गया।
- इन उपनिवेश ओं को मित्र राष्ट्र में बांट दिया गया।
- चीन के शांतुंग क्षेत्र में जर्मनी द्वारा सभी अधिकार जापान को सौंप दिए गए।
- राइन नदी के बाएं तट पर और 50 किलोमीटर दाएं तट पर पूरी तरह निशस्त्रीकरण कर दिया गया कि ताकि इस क्षेत्र में जर्मनी किसी भी तरह की किलाबंदी ना कर सके।
- पोलैंड का समुद्र तट से संबंध स्थापित करने के लिए जर्मनी को डेजिंग बंदरगाह राष्ट्र संघ के संरक्षण में छोड़ना पड़ा।
- जर्मनी का मेमल बंदरगाह लिथुआनिया को दे दिया गया।
- राइनलैंड प्रदेश में अगले 15 साल तक मित्र राष्ट्र की सेनाएं रखने का फैसला किया गया।
- जर्मनी के सारे प्रदेश पर राजनीतिक सत्ता को जर्मनी की ही मानी गई लेकिन उसके शासन व्यवस्था राष्ट्र संघ के एक आयोग को सौंपी गई।
- सार घाटी दोहन के लिए फ्रांस को दे दी गई।
- उत्तरी श्लेसविंग डेनमार्क को दे दिया गया।
- जर्मनी से बेल्जियम को मालमेड़ी, यूपेन और मार्सनेट मिले।
- जर्मनी ने रूस से पहले एक बड़ा भाग छीन कर अपने में मिला लिया था लेकिन वर्साय की संधि इस बड़े हिस्से पर लातविया, ऐस्टोविया और लिथुआनिया की स्थापना की गई।
वर्साय संधि (Treaty of Versailles) की सैनिक व्यवस्थाएं :-
- सैनिक व्यवस्था के तहत जर्मनी में अनिवार्य सैनिक सेवा समाप्त कर दी गई और यह व्यवस्था की गई कि जर्मनी में 12 साल तक थल सेना एक लाख से अधिक नहीं होगी।
- जर्मनी की ओर से युद्ध सामग्री के निर्माण और आयात पर प्रतिबंध लगा दिया गया।
- जर्मन नौसेना में 15000 अधिकतम सैनिक रखना निश्चित किया गया।
- कील नहर को अंतरराष्ट्रीय घोषित किया गया।
- जर्मन वायु सेना को भंग कर दिया गया।
- राइन क्षेत्र का असैन्यकरण कर दिया गया।
वर्साय संधि (Treaty of Versailles) की आर्थिक व्यवस्था :-
- आर्थिक व्यवस्था के तहत प्रथम विश्व युद्ध का उत्तरदायित्व जर्मनी पर थोपा गया।
- जर्मनी पर क्षति पूर्ति के लिए 5 अरब डॉलर मित्र राष्ट्रों को देने का बोझ डाला गया।
- उपनिवेशों में लगी जर्मनी की सारी पूंजी जब्त कर ली गई।
- जर्मनी को एक निश्चित मात्रा में फ्रांस, इटली और बेल्जियम को कोयले की आपूर्ति करने को कहा गया।
- जर्मनी के 1600 से अधिक 10000 टन क्षमता वाले सभी व्यापारिक जहाज मित्र राष्ट्रों को सौपे गए।
- जर्मनी के सम्राट विलियम द्वितीय को युद्ध के लिए दोषी करार दिया गया और उस पर मुकदमा चलाने का फैसला किया गया। हालांकि ऐसा हो नहीं पाया।
- जर्मनी के प्रमुख नदियों को अंतरराष्ट्रीय घोषित कर दिया गया।
- वर्साय की संधि के जरिए जर्मनी को राजनीतिक, आर्थिक और सैन्य दृष्टि से पंगु राष्ट्र बना दिया गया।
- इस संधि से जर्मनी के कुल क्षेत्रफल का आठवां हिस्सा कम हो गया और 70 लाख जनसंख्या भी कम हुई।
- उसके सारे उपनिवेश, 15% भूमि, 15% मवेशी और 10% कारखाने छीन लिए गए।
वर्साय की संधि को जर्मनी पर जबरदस्ती थोपा गया था इस कारण बाद में हिटलर और अन्य जर्मनी लोगों ने इसको अपमानजनक माना यही कारण था कि यह संधि द्वितीय विश्व युद्ध के कारणों में से एक बन गई। Treaty of Versailles
प्रथम विश्व युद्ध से जुड़े कुछ घटनाक्रम | Some events related to First World War
प्रथम विश्वयुद्ध 28 जुलाई 1914 से 11 नवंबर 1918 के बीच लड़ा गया। जिससे दुनिया का नक्शा, इतिहास पूरी तरह से बदल गया। यह युद्ध दुनिया के 3 महाद्वीप यूरोप, एशिया और अफ्रीका के बीच जल, थल और आकाश में लड़ा गया। इस युद्ध की भीषणता का अंदाजा इस बात से ही लगाया जा सकता है की युद्ध के दौरान करीब एक करोड़ लोगों की जान चली गई और इससे दोगुनी संख्या में लोग घायल हुए।बीमारी और कुपोषण जैसी घटनाओं से भी लाखों लोग मरे 8 लाख सैनिक लापता हो गए।
4 साल से ज्यादा चले इस युद्ध में करीब आधी दुनिया हिंसा की चपेट में चली गई। इसमें भाग लेने वाले देशों की संख्या, इसका क्षेत्र और इससे हुई क्षति के व्यापक आंकड़ों के कारण ही इसे विश्वयुद्ध का नाम दिया गया। 30 से ज्यादा देशों ने प्रथम विश्व युद्ध में हिस्सा लिया। Treaty of Versailles
प्रथम विश्व युद्ध किस किसके बीच लड़ा गया | Between whom was the first world war fought?
प्रथम विश्व युद्ध में एक तरफ मित्र राष्ट्र थे तो दूसरी तरफ धुरी राष्ट्र।
मित्र राष्ट्र में रूस, फ्रांस, ब्रिटेन, अमेरिका और जापान शामिल थे। अमेरिका इस युद्ध में 1917 में शामिल हुआ। धुरी राष्ट्र में ऑस्ट्रिया, हंगरी, जर्मनी और ऑटोमन साम्राज्य के देश शामिल थे। 28 जून 1914 को ऑस्ट्रिया के उत्तराधिकारी और राजकुमार आर्चड्यूक फर्डिनेंड और उनकी पत्नी की हत्या बोस्निया की राजधानी साराजेवो में कर दी गई। ऑस्ट्रिया ने हत्या के लिए सरबिया को दोषी ठहराया। इसका बदला लेने के लिए ऑस्ट्रेलिया ने ठीक 1 महीने बाद 28 जुलाई 1914 को सर्बिया के खिलाफ युद्ध का ऐलान कर दिया।
बाद में इस मसले को लेकर विश्वयुद्ध की शुरुआत हो गई और अन्य देश भी धीरे-धीरे दोनों गुटों में शामिल होते गए। प्रथम विश्व युद्ध के दौरान जर्मनी ने रूस के खिलाफ 1 अगस्त 1914 को युद्ध की घोषणा की। जर्मनी ने अपनी सेनाओं को लामबंद करना शुरू कर दिया। हालांकि तत्काल जर्मन आक्रमण रुस पर नहीं बल्कि बेल्जियम और फ्रांस पर हुआ। फ्रांस सरकार ने खतरे को भांपते हुए अपनी सेनाओ को पहले ही लामबंद का आदेश दे दिया गया था। Treaty of Versailles
3 अगस्त 1914 को जर्मनी ने फ्रांस के खिलाफ़ युद्ध की घोषणा कर दी। जर्मनी की सेना 4 अगस्त को फ्रांस पर हमला बोलने के लिए बेल्जियम में घुस गई और उसी दिन ब्रिटेन ने जर्मनी के साथ युद्ध की घोषणा कर दी। धीरे-धीरे युद्ध का विस्तार होने लगा इंग्लैंड प्रथम विश्व युद्ध में 8 अगस्त 1914 को शामिल हुआ। कई और अन्य देश युद्ध में जल्द ही शामिल हो गए।
जापान ने जर्मनी के खिलाफ़ युद्ध की घोषणा कर दी। वह ब्रिटेन के साथ एक समझौते में शामिल हो गया। जापान का मुख्य लक्ष्य सुदूर पूर्व में जर्मनी के इलाकों पर कब्जा करना था। ब्रिटेन का पुराना सहयोगी पुर्तगाल भी युद्ध में शामिल हो गया था।
1915 में इटली ने ऑस्ट्रिया के खिलाफ़ युद्ध की घोषणा कर दी। ब्रिटेन और फ्रांस ने इटली को ऑस्ट्रिया और तुर्की के क्षेत्रों को देने का वादा किया था। बाद में रोमानिया और यूनान भी ब्रिटेन, फ्रांस और रूस के साथ आ गए। बुल्गारिया ने जर्मनी और ऑस्ट्रिया का साथ दिया। बुल्गारिया को सर्बिया और यूनान के क्षेत्रों को देने का वादा किया गया था। तुर्की ने नवंबर में रूस के खिलाफ़ युद्ध की घोषणा कर दी थी। तुर्की ने जर्मनी और ऑस्ट्रिया का साथ दिया।
अमेरिका इस युद्ध में करीब 3 साल बाद शामिल हुआ। जर्मनी के यू वोट के जरिए इंग्लैंड के लुसितानिया नामक जहाज को दबाने के बाद 6 अगस्त 1917 को अमेरिका प्रथम विश्व युद्ध में शामिल हुआ। लुसितानिया जहाज पर मरने वाले 1153 लोगों में 128 लोग अमेरिकी थे।
प्रथम विश्व युद्ध की शुरुआत में पहले जर्मनी की विजय हुई। परंतु बाद में हालात बदलने लगे जर्मनी ने कई व्यापारी जहाजो को डुबो दिया। हालांकि बाद में ब्रिटेन, फ्रांस और अमेरिका की ताकत के आगे जर्मनी कमजोर होता गया। जुलाई 1918 के बाद मित्र देशों की सेनाओं ने जर्मनी को कई जगहों पर परास्त किया। इसके बाद जर्मनी और ऑस्ट्रिया की गुजारिश पर 11 नवंबर 1918 तो युद्ध समाप्ति की घोषणा की गई। Treaty of Versailles
प्रथम विश्व युद्ध के हालात और कारण | Circumstances & Causes of World War
प्रथम विश्व युद्ध की औपचारिक शुरुआत बाल्कन क्षेत्र से हुई थी। बीसवीं सदी की शुरुआत में पूरी दुनिया में साम्राज्यवाद की नीति चरम पर पहुंच गई थी। प्रथम विश्व युद्ध के लिए साम्राज्यवाद से उपजे हालात को सबसे बड़ा कारण माना जा सकता है। भारत के सभी प्रमुख देश साम्राज्यवाद की इस दौड़ में शामिल हो गए थे। ब्रिटेन इसकी अगुवाई कर रहा था।
ब्रिटेन का दुनिया के कई देशों पर आधिपत्य स्थापित हो गया था। साम्राज्यवाद की यह आग एशिया और लैटिन अमेरिकी देशों में भी फैल चुकी थी। यूरोप के जितने भी देश थे, वह चाहते थे कि अफ्रीका और एशिया में उपनिवेश ज्यादा से ज्यादा फैले।
प्रथम विश्व युद्ध के जिम्मेदार कारणों में से एक है – राष्ट्रवाद की भावना। खासकर बाल्कन देशों में उभरे राष्ट्रवाद ने प्रथम विश्व युद्ध के लिए चिंगारी का काम किया। ऑटोमन साम्राज्य और ऑस्ट्रिया-हंगरी साम्राज्य में रहने वाले बाल्कन देशों ने आजादी के लिए कोशिशें शुरू कर दी थी। गुप्त संधियों को भी प्रथम विश्व युद्ध का बहुत बड़ा कारण माना जाता है। यह गुप्त संधिया देशों के बीच शक्ति संतुलन के लिए होती थी।
इस तरह की पहली प्रमुख संधि 1882 में हुई यह संधि ऑस्ट्रो हंगेरियन साम्राज्य जर्मनी और इटली के बीच हुई थी। जबकि दूसरी प्रमुख संधि 1904 में फ्रांस और ब्रिटेन के बीच हुई थी। 1907 में इस संधि में रूस भी जुड़ गया था। गुप्त संधियों के जरिए अलग-अलग देशों का गठबंधन बनने लगा। संधिकरण और हथियारों की होड़ ने दुनिया को दो खेमों में बांट दिया।
ब्रिटेन और जर्मनी में औद्योगिक क्रांति से तेजी से विकास का रास्ता साफ हुआ। इन देशों ने अपनी सैनिक शक्ति को चरम तक पहुंचाने की भरपूर कोशिश की। मशीनगन का आविष्कार भी इसी समय हुआ था। और पहली बार प्रथम विश्व युद्ध में ही मशीनगन का उपयोग किया गया था। इसके अलावा बड़े बड़े जहाज बनाए गए। जिन पर अत्याधुनिक किस्म की बंदूके लगाई गई थी। इसी विश्वयुद्ध में पहली बार ब्रिटेन ने टैंक का इस्तेमाल किया था।
यूरोप ही नहीं दुनिया भर में सैन्य शक्ति विकास का एक नया दौर चल पड़ा था। बिस्मार्क ने 1871 में 39 छोटे-छोटे जर्मन वासियों के राज्य मिलाकर जर्मनी नाम के एक बड़े देश राज्य का गठन किया। फ्रांस को हराकर बिस्मार्क ने फ्रांस के ही प्रदेशों एल्सास और लॉरेन पर जर्मनी का अधिकार स्थापित किया था।
फ्रांस जर्मनी से अपनी इस पराजय का प्रतिरोध लेना चाहता था। 1882 में फ्रांस पर आक्रमण करने के लिए बिस्मार्क ने ऑस्ट्रिया और इटली से संधि कर ली। इस संधि से जर्मनी की स्थिति काफी मजबूत हुई और फ्रांस को हर समय जर्मनी के आक्रमण का भय बना रहा।
1890 में बिस्मार्क के पतन के बाद वहां के सम्राट विलियम कैसर द्वितीय ने जर्मनी को संसार के श्रेष्ठतम शक्ति बनाने की इच्छा पाली। उसमें साम्राज्य विस्तार की भावना का उदय हुआ। जर्मनी की इस बढ़ते प्रभाव को कम करने और शक्ति संतुलन साधने के लिए ब्रिटेन ने रूस और फ्रांस से संधि की। जर्मनी का ने अपने साम्राज्य विस्तार करने के लिए पूर्व की और ध्यान आकर्षित हुआ। जर्मनी ने तुर्की से मित्रता की और वहां अपने प्रभाव का विस्तार किया। उसने बाल्कन प्रायद्वीप और ऑस्ट्रिया में ऑस्ट्रिया की नीति का समर्थन किया। और रूस की नीति और बाल्कन राज्यों की राष्ट्रीयता की भावना का विरोध किया इन सब कारणों से जो हालात बने उसे दुनिया के तमाम देश 1914 के आते-आते प्रथम विश्व युद्ध की दहलीज पर खड़े थे। बस अब एक चिंगारी की जरूरत थी।
1914 में सारायोवो में ऑस्ट्रिया के उत्तराधिकारी आर्चड्यूक फर्डिनेंड की हत्या ने इस चिंगारी का काम किया। इस घटना को प्रथम विश्व युद्ध का तत्कालीन कारण भी कहा जाता है। जब नवंबर 1918 में प्रथम विश्व युद्ध खत्म हुआ, दुनिया के सामने तबाही और नुकसान का वह मंजर था, जिसे अब तक कभी नहीं देखा।
चार बड़े साम्राज्य रूस, जर्मनी, ऑस्ट्रिया-हंगरी और ऑटोमन साम्राज्य का अंत हो गया। अमेरिका सुपर पावर बनकर उभरा। यूरोपीय महाद्वीप में प्रचलित एकता और राजतंत्र खत्म हो गया। जनवरी 1919 से जनवरी 1920 के बीच कई दौर में पेरिस में विजय देशों का सम्मान हुआ। इसमें पराजित देशो पर लागू की जाने वाली शांति की शर्तों को तैयार किया गया। इससे ही लीग ऑफ़ नेशन्स के निर्माण का रास्ता साफ हुआ।
जर्मनी को 28 जून 1919 के दिन वर्साय की संधि पर हस्ताक्षर करने के लिए मजबूर किया गया। इस संधि से जर्मनी को अपनी भूमि के बड़े हिस्से से हाथ धोना पड़ा। दूसरे राज्यों पर जर्मनी के अधिकार करने पर पाबंदी लगा दी गई थी। उनकी सेना का आकर सीमित कर दिया गया था और भारी क्षतिपूर्ति थोप दी गई। 1921 तक जर्मनी के मित्र राष्ट्र राष्ट्रों को 5 अरब डॉलर देने का वह कहा गया।
Treaty of Versailles
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