जाति व्यवस्था क्या हैं, इसके गुण व दोष / What is Caste system in India : Merits and Demerits in Hindi

Caste system in India

Caste शब्द पुर्तगाली भाषा के casta शब्द से निकला है। जिसका प्रयोग मत विभेद या जाति के संबंध में प्रयुक्त किया जाता है। ‘कास्ट’ शब्द पुर्तगाली शब्द कास्टा’ से आया है जिसका अर्थ नस्ल, नस्ल या समूह है। भारत में जाति का तात्पर्य एक ऐसे समूह से है जिनका पारंपरिक व्यवसाय, समान संस्कृति और समान सामाजिक पहचान होती है।

ये ऐसा सामाजिक समूह हैं जिसे भारत की राजनीति को प्रभावित करने वाला भी कहा जाता है।

इस सामाजिक समूह का नाम है – जाति (Caste)।
हिंदी का जाति शब्द अंग्रेजी भाषा के caste शब्द का हिंदी रूपांतरण हैं।

जाति से संबंधित अनेक धारणाओं जैसे जाति की उत्पत्ति के सिद्धांत , जाति के कार्य , जाति की विशेषताएं , जाति के दोष आदि के बारे में इस लेख में पढ़ेंगे। Caste system in India

 

जाति (Caste) के विषय मे अनेक परिभाषाएं / Caste system in India

 

अनेक समाज शास्त्रियों ने जाति के परिप्रेक्ष्य में अलग-अलग धारणाएं व्यक्त की हैं।

जाति एक ऐसा सामाजिक समूह है जिसकी सदस्यता जन्म पर आधारित होती है ।

 

जाति के विषय मे समाजशास्त्री जोड़ के विचार :

जाति-प्रथा अपने सर्वोत्कृष्ट रूप में इस विशाल देश में निवास करने वाले विभिन्न विचार , विभिन्न धार्मिक विश्वास, रीति रिवाज और परंपराएं रखने वाले विविध वर्गों को एक सूत्र में पिरोने का एक सफलतम प्रयास था।

वही कुले ने कहा है कि

जब एक वर्ग पूर्णतः अनुवांशिकता पर आधारित होता है तो उसे हम उसे जाति कहते हैं।

 

अन्य के अनुसार : 

जब किसी समूह की सदस्यता जन्मजात हो , उसके सदस्य वंशानुगत व्यवसाय करते हो, खानपान, विवाह और सामाजिक सेवा से संबंधित प्रतिबंधों का पालन करते हो तो उस समूह को जाति कहते हैं।

 

केतकर के अनुसार : 

जाति एक सामाजिक समूह है जिसकी दो विशेषताएं हैं -:

  1. सदस्यता केवल उन व्यक्तियों तक सीमित होती है जिन्होंने उसी जाति में जन्म लिया हो और इस प्रकार से पैदा हुए व्यक्ति ही इसमें सम्मिलित होते हैं।
  2. सदस्य एक कठोर सामाजिक नियम द्वारा अपने समूह से बाहर विवाह करने से रोक दिए जाते हैं।

 

जे एच हट्टन के अनुसार :

जाति एक ऐसी व्यवस्था है जिसके अंतर्गत एक समाज अनेक आत्म केंद्रित एवं एक दूसरे से पूर्णतः पृथक इकाइयों (जातियों) में विभाजित रहता है इन इकाइयों के बीच पारस्परिक संबंध ऊंच-नीच के आधार पर सांस्कारिक रूप से निर्धारित होते हैं।

 

हरबर्ट रिजले के अनुसार :

जाति परिवारों या परिवारों के समुहों का एक संकलन है जिसका की सामान्य नाम होता है। जो एक काल्पनिक पूर्वज – मानव या देवता से सामान्य उत्पत्ति का दावा करता है। एक ही परम्परात्मक व्यवसाय करने पर बल देता है और एक सजातीय समुदाय के रूप में उनके द्वारा मान्य होता है जो अपना ऐसा मत व्यक्त करने के योग्य हैं।

Caste system in India

 

 

जाति के कार्य

 

यहाँ कुछ समाज शास्त्रियों के मतों के अनुसार हम जाति के कार्यों को जानने का प्रयास करेंगे।

अनेक समाज शास्त्रियों ने जाति के कार्य से संबंधित मत पर अपने अलग-अलग मतों को रखा है तथा जाति के कार्यों को परिभाषित करने का प्रयास किया है।

हट्टन नामक समाजशास्त्री ने जाति द्वारा किए जाने वाले कार्यों को तीन भागों में विभाजित किया है –

  • व्यक्तिगत जीवन से संबंधित कार्य।
  • जातीय समुदाय के कार्य।
  • समाज और संपूर्ण राष्ट्र के लिए किए जाने वाले कार्य।

 

राजनीतिक एवम सांस्कृतिक रक्षा –

भारत में जाति का एक अहम योगदान यह माना जाता है कि जाति प्रथा ने भारत की राजनीतिक एवं सांस्कृतिक रक्षा की है।

 

समाजशास्त्री ‘अब्बे डुब्बाए’ का इस संबंध में यह मत है कि

मैं हिंदुओं की जाति प्रथा को उनके अधिनियम का सबसे अधिक सुख प्रयास समझता हूं। मुझे इस बात का पूरा विश्वास है कि यदि भारत की जनता उस समय भी बर्बरता के पंक में नहीं डूबी , जबकि सारा यूरोप डूबा हुआ था और यदि भारत ने सदैव सिर ऊंचा रखा , विविध विज्ञानों , कलाओं तथा सभ्यता का संरक्षण और विकास किया तो इसका पूर्ण श्रेय उसकी उस जाति प्रथा को है जिसके लिए वह बहुत प्रसिद्ध है।

 

श्रम विभाजन

जाति व्यवस्था में विभिन्न जातियों के बीच कार्य विभाजन किया गया था। जिसके कारण अनेक जातियां अपने कार्य में विशेष कौशल और दक्षता प्राप्त कर गई । जिससे कहीं ना कहीं उन जाति की कमाई के साधन उपलब्ध हुए।

हिन्दू समाज की रक्षा में सहायक –

भारत में जाति व्यवस्था को हिंदू समाज की रक्षा करने वाले के रूप में भी देखा जाता है । जहां भारत में अनेक आक्रांता द्वारा समय-समय पर हमले किए गए वहीं जाति व्यवस्था ने उन हमलों के खिलाफ दृढ़ता से खड़े रहने में भी सहायता प्रदान की ।

फरनीवाल द्वारा जाति के कारण भारत में एक बहू समाज स्थिर रह पाया।

वही समाजशास्त्री हट्टन की दृष्टि में जाति प्रथा का सबसे महत्वपूर्ण कार्य , जो कि उसे एक अद्वितीय संस्था बना देता है , यह है यह रहा है कि यह भारतीय समाज को अखंड बनाती है और विभिन्न प्रतिद्वंदी समूहों को एक समुदाय में जोड़ती है। Caste system in India

 

जाति व्यवस्था के दोष –

जाति व्यवस्था की जहां अनेक विशेषताएं बताई गई है । वहां जाति व्यवस्था के दोषों को भी नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है।
ऐसे ही अनेक दोष जाति व्यवस्था में विद्यमान हैं। जो निम्न प्रकार हैं-

  • जाति व्यवस्था को प्रजातंत्र विरोधी माना जाता है।
  • जाति व्यवस्था को कारण कहीं ना कहीं राष्ट्रीय एकता में बाधा उत्पन्न करने वाला भी माना जाता है।
  • वही जाति व्यवस्था के द्वारा कार्यों का विभाजन करने से श्रमिक की कुशलता में बाधक भी माना जाता है तथा इसी जाति व्यवस्था के श्रम विभाजन को श्रमिक की गतिशीलता में बाधक भी कहा जा सकता है।
  • जाति व्यवस्था पर समय-समय पर निम्न जातियों का शोषण करने के आरोप भी लगते रहे हैं ।जिन्हें किसी भी हाल में नकार नहीं जा सकता है।
  • जाति व्यवस्था को समाज का विभाजन करने वाले कारक के रूप में भी कहीं ना कहीं देखा जाता है ।
  • जाति व्यवस्था को सामाजिक समस्याओं को जन्म देने वाला भी कहा जाता है
  • वहीं अनेक मतों के अनुसार जाति व्यवस्था को समाज की प्रगति में बाधा लाने वाला भी माना जाता हैं।
  • जाति व्यवस्था का एक ऐसा दोष जिस पर समय-समय पर आवाज भी उठती रही है तथा अनेक महापुरुषों ने भी इसके विरुद्ध कार्य करने का काम किया है जो है अस्पृश्यता के उदभव में सहायक।
  • जाति व्यवस्था को कहीं ना कहीं स्त्रियों की निम्न स्थिति के लिए भी जिम्मेदार माना जाता है। Caste system in India

जाति व्यवस्था की उत्पत्ति के संबंध में प्रचलित सिद्धांत :-

1. परंपरागत सिद्धांत
2. प्रजातीय सिद्धांत
3. धार्मिक सिद्धांत
4. व्यावसायिक सिद्धांत
5. राजनीतिक सिद्धांत
6. बहु कारक सिद्धांत

Caste system in India

 

 

जाति व्यवस्था के स्वरूप में परिवर्तन लाने वाले कारक

 

1. औधोगिकरण एवम नगरीकरण :

औद्योगीकरण के कारण गांव से शहरों की ओर प्रवास हुआ । जिससे एक ही कंपनी में या फैक्ट्री में अलग-अलग जाति के लोग एक साथ मिलकर काम करते हैं तथा एक साथ मिलकर आस-पास में ही। रहते हैं। इससे उनके बीच व्याप्त जाति भेद भाव को कमजोर करने में भी सहायता मिली है । वहीं गांव से प्रवास कर के लोग जब शहरों में जाते हैं । तो वहाँ गांव की तरह किसी जमीदार यह साहूकार द्वारा उत्पन्न रोजगार के साधनों पर निर्भर नहीं रहते हैं। इससे भी जातीय व्यवस्था के द्वारा होने वाले उत्पीड़न को कम करने में सहायक माना जाता है ।

 

2. धन का बढ़ता महत्व :

वर्तमान समय में धन का महत्व बढ़ता जा रहा है। जिसने जाति व्यवस्था को भी कमजोर करने में सहायक किया है।

 

3. अनेक सामाजिक सुधार आंदोलन :

आधुनिक भारत से ही हमारे अनेक महापुरुषों ने जातीय भेदभाव के खिलाफ आवाज उठाने का कार्य किया है तथा अनेक ऐसे नियमों व कानूनों को बनाने में भी सहायता प्राप्त की है । जिससे जाति आधारित भेदभाव को कम किया जा सके।

 

4. स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद स्थिति :

स्वतंत्रता प्राप्त करने के बाद भारत में प्रजातंत्र हैं। संविधान में स्पष्ट लिखा है कि रंग , लिंग, जन्म, धर्म आदि के आधार पर कोई भेदभाव नहीं किया जाएगा।
जिससे सीधे तौर पर जाती आधारित भेदभाव पर चोट की हैं।

 

5. धार्मिक आंदोलन :

अनेक महापुरुषों द्वारा धार्मिक आंदोलन
चलाए गए जैसे ब्रह्म समाज, आर्य समाज , प्रार्थना समाज , रामकृष्ण मिशन, नानक , नामदेव, कबीर तुकाराम , बाबासाहेब आंबेडकर आदि महापुरुषों ने जाति के दोषों की कटु आलोचना की और जातीय उत्पीड़न का विरोध करते हुए इसे समाप्त करने के लिए अनेक धार्मिक आंदोलनों का आयोजन किया।

 

6. यातायात के साधनों का विकास :

आधुनिक भारत में यातायात के साधनों को भी जाति व्यवस्था की कठोरता को कम करने में सहायक माना जाता है । यातायात के साधनों के कारण व्यक्तियों में गतिशीलता बढी, जिससे एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाने लगे तथा सभी जाति के लोग एक साथ ही संचार या यातायात साधन में यात्रा करते थे । जिनके कारण ही उनमें आपसी भाई सारा बड़ा तथा समानता के भाव उत्पन्न हुई।

 

७. शिक्षा और जागरूकता का प्रसार :

स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद आधुनिक शिक्षा और आधुनिक मतों का आदान-प्रदान तथा प्रसार एक स्थान से दूसरे स्थान हुआ। जिससे समाज में जागरूकता का विकास हुआ । शिक्षा तथा जागरूकता के विकास में भी जाति व्यवस्था की कठोरता को कम करने का काम किया है।

 

८. जाति पंचायतो का अंत :

जाति व्यवस्था को कठोरता प्रदान करने में जाति पंचायतों का भी विशेष योगदान रहा हैं। परंतु स्वतंत्रता के बाद प्रजातंत्र, संविधान का शासन , कानून का शासन होने के बाद जाति पंचायतों का बहुत हद तक अंत हो गया है। इससे भी जाति व्यवस्था की कठोरता को कम करने में सहायता प्राप्त हुई है।

अनेक बार ये बात कही जाती हैं कि इस जाति व्यवस्था को समाप्त कर देना चाहिए । इस विषय मे
मजूमदार वह मतदान के अनुसार –

इस व्यवस्था की हानिकारक सहवर्ती प्रथाओं- अस्पृश्यता, एक जाति द्वारा दूसरी का शोषण और ऐसी ही अन्य को समाप्त कर देना चाहिए , ना की संपूर्ण व्यवस्था को टूटी हुई विषैली अंगुली को काटना चाहिए ना कि पूरे हाथ को।

वर्तमान में अनेक कारणों से जाति व्यवस्था की कठोरता में कमी आयी हैं। देश और समाज के विकास के लिए ये आवश्यक भी है कि देश के सभी वर्ग मिलकर सदभावना से रहे।

आधुनिक शिक्षा के प्रसार के कारण भी समाज मे जागरूकता में वृद्धि हुई हैं। जिससे जाति व्यवस्था की संरचना में भी परिवर्तन आये हैं। वर्तमान में विवाह के प्रतिबंधों में भी शिथिलता आयी हैं। जातियों के खान पान के नियमो में कठोरता समाप्त हुई हैं। अतः हम कह सकते है कि वर्तमान में जातीय संस्तरण में परिवर्तन हो रहा हैं। Caste system in India

जाति व्यवस्था में हालिया परिवर्तन

  1. ब्राह्मणों के वर्चस्व में गिरावट: वैज्ञानिक सोच, धर्मनिरपेक्षीकरण और आधुनिकीकरण के आगमन के साथ ब्राह्मणों के वर्चस्व में गिरावट आई है। अतीत में, ब्राह्मण जाति पदानुक्रम में सर्वोच्च स्थान पर था।
  2. अंतरजातीय विवाह: बढ़ती साक्षरता दर और शहरीकरण के साथ, अंतरजातीय विवाह में वृद्धि हुई है। केंद्र सरकार ने अंतरजातीय विवाह को प्रोत्साहित करके सामाजिक एकीकरण के लिए डॉ. अंबेडकर योजना शुरू की।
  3. अस्पृश्यता का उन्मूलन: भारतीय कानून अस्पृश्यता की प्रथा की अनुमति नहीं देता है। भारत के संविधान का अनुच्छेद 17 इस प्रथा पर प्रतिबंध लगाता है।
  4. सामाजिक गतिशीलता: संस्कृतिकरण की प्रक्रिया के परिणामस्वरूप कुछ जातियों की सामाजिक स्थिति में सुधार हुआ है। संस्कृतिकरण उच्च जातियों की जीवनशैली अपनाने की घटना है (जैसे, शाकाहार)
  5. शहरीकरण और औद्योगीकरण ने पारंपरिक व्यावसायिक संरचनाओं को बदल दिया है और विभिन्न जातियों के बीच परस्पर निर्भरता पैदा की है। डॉ. बी.आर. अम्बेडकर ने जाति-आधारित भेदभाव को कायम रखने के लिए पारंपरिक ग्रामीण संरचनाओं को जिम्मेदार ठहराया।
  6. जाति व्यवस्था को कमजोर करना: आधुनिक शिक्षा प्रणाली ने समानता, लोकतंत्र और धर्मनिरपेक्षता जैसे मूल्यों को प्रदान किया है, जिसने जाति व्यवस्था को और कमजोर कर दिया है।
  7. अन्य महत्वपूर्ण परिवर्तन
  • पवित्रता का विचार अव्यावहारिक हो गया हैं।  तकनीकी और वैश्वीकरण के दौर में ऐसे विचारों की मान्यताएं कमजोर हुई हैं।
  • भौगोलिक अलगाव में गिरावट – आवागमन के साधनों के समुचित विकास के कारन अलगाव कम हुआ है , जिसने प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से जातिवादी मानसिकता को भी कमजोर किया हैं।
  • जातिगत स्थिति का स्थान आर्थिक स्थिति ने ले लिया। अब समाज में आर्थिक रूप से संपन्न व्यक्तियों को   अलग ही सम्मान मिलता हैं।  अब एक नया वर्गीकरण आर्थिक आधार पर भी तैयार हुआ हैं।

 

जाति व्यवस्था को मजबूत करने वाले कारक –

  • संसाधनों की कमी और कौशल का अभाव – कुछ विशेष वर्ग ही गरीबी जैसे कारणों से सबसे ज़्यादा प्रभावित होते हैं जिस कारण उनकी संस्थागत गरीबी बानी रहती है और वो अब भी निम् स्तर के कार्य करने को मजबूर होते हैं जैसे – मैनुअल स्कैवेंजिंग का मुद्दा।
  • जाति आधारित आरक्षण – जाति आधारित आरक्षण की मांग बढ़ रही हैं। जाति आधारित आरक्षण की माँग अब बढ़ती ही जा रही है जैसे गुज्जर आंदोलन।
  • जाति आधारित राजनीति- आज राजनीती सबसे ज्यादा जाति आधारित केंद्रित हो गयी हैं। क्षेत्रीय दल जाति आधारित राजनीती का अधिक बढ़ावा  देते है जैसे सपा – यादव राजनीती , बसपा – दलित राजनीती , भीम आर्मी – दलित राजनीती।

 

कथित जाति आधारित भेदभाव की हालिया घटनाएं/डेटा:

  1. फरवरी 2023 में, भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, बॉम्बे (आईआईटी बॉम्बे) में एक दलित छात्र ने परिसर में जातिगत भेदभाव से पीड़ित होने के बाद कथित तौर पर आत्महत्या कर ली।
  2. हाल ही में तमिलनाडु में दलितों और वन्नियारों के बीच मंदिर में प्रवेश को लेकर तनाव पैदा हो गया।
  3. 2021 में अनुसूचित जाति (एससी) के खिलाफ अपराध के 50,000 से अधिक मामले दर्ज किए गए। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) के आंकड़ों के अनुसार, 2018 और 2020 के बीच 130,000 से अधिक दलित विरोधी अपराध दर्ज किए गए।

संवैधानिक प्रावधान:

अनुच्छेद 15(4) राज्य को समाज के सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़े वर्गों के हितों और कल्याण को बढ़ावा देने के लिए विशेष व्यवस्था बनाने की शक्ति देता है।

अनुच्छेद 16(4) राज्य को सरकारी नौकरियों में उनका प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करने के लिए एससीएस, एसटी और ओबीसी के लिए सार्वजनिक रोजगार में आरक्षण प्रदान करने का अधिकार देता है।

जाति आधारित भेदभाव से लड़ना:

जाति आधारित भेदभाव से लड़ने के उपाय

  • कानूनी उपचार के रूप में प्रभावी: अत्याचार निवारण आदि,  नागरिक अधिकार संरक्षण अधिनियम ,
  • अंतरजातीय विवाह को बढ़ावा देना
  • आर्थिक समानता को बढ़ावा देना,
  • सामाजिक-सांस्कृतिक असमानताओं को दूर करना

 

 

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