दसलक्षण पर्व :- Dashlakshan Parva 2021 / Paryushan Parva in Hindi

“पर्युषण पर्व” / “दसलक्षण” पर्व / जैन धर्म

भारत भूमि का एक समृद्ध आध्यात्मिक और पौराणिक  इतिहास रहा है तथा भारतीय भूमि को अनेक विविधताओं के कारण केवल अपने देश में ही नहीं बल्कि पूरे विश्व में सम्मान की नजरों से देखा जाता है ।

“विविधता में एकता ही भारत भूमि की वर्षों से विशेषता रही है । “

यहां अनेक महापुरुषों ने तप के द्वारा ज्ञान प्राप्त कर मानव कल्याण के लिए नई नई शिक्षाओं को जन जन तक पहुँचाया हैं  जैन धर्म भी एक ऐसे ही धर्म है जिसने हमेशा मानव कल्याण के लिए ही नहीं बल्कि समस्त जीव प्रजाति के अधिकार और कल्याण के लिए मत प्रस्तुत किए हैं  तथा लोगों को समस्त जीवो जीवो के प्रति प्रेम स्नेह सिखाया हैं।

भारतीय भूमि में हिंदू , बौद्ध , जैन आदि धर्मों से संबंधित त्योहारों का एक वैज्ञानिक कारण तो रहा ही है साथ ही उनका लक्ष्य मानव कल्याण का भी रहा है ।

ऐसे ही जैन धर्म में “पर्युषण पर्व” है। जिसे आम प्रचलित भाषा में  दशलक्षण पर्व ( Dashlakshan Parva ) के नाम से भी संबोधित किया जाना जाता है या जाना जाता है।
यह जैन समाज का एक महत्वपूर्ण पर्व है जैन धर्म के अनुयाई भाद्रपद मास में पर्युषण पर्व को धूमधाम से मनाते हैं तथा इसके उद्देश्यों को अपने जीवन में उतार कर मानव कल्याण की राह प्रशस्त करते हैं ।

श्वेतांबर संप्रदाय में पर्यूषण 8 दिन चलते हैं तथा दिगंबर संप्रदाय वाले 10 दिन तक पर्यूषण पर्व को मनाते  हैं ।

जैन धर्म के / दशलक्षण  ( Dashlakshan ) निम्न प्रकार से हैं :-

 

१) उत्तम क्षमा,
२) उत्तम मार्दव,
३) उत्तम आर्जव,
४) उत्तम शौच,
५) उत्तम सत्य,
६) उत्तम संयम,
७) उत्तम तप,
८) उत्तम त्याग,
९) उत्तम अकिंचन्य,
१०) उत्तम ब्रहमचर्य

इस पर्व का प्रमुख उद्देश्य  मांगों को ऐसे गुणों से सुसज्जित करना है ; जिनको ग्रहण करके मानव अपना कल्याण तो कर ही सकता है। साथ ही समस्त संसार समस्त जीव जंतु आदि का कल्याण भी करता हैं।

यह मान्यता है कि जो भी इन 10 लक्षणों को अच्छी तरह से पालन करता है।
उसे इस संसार इस मोह माया से मोक्ष प्राप्त होता है।

पर्युषण पर्व / दशलक्षण पर्व ( Dashlakshan Parva ) कब मनाया जाता हैं :-

इन दशलक्षण लक्षणों को अपने जीवन में अच्छी तरह उतारने या इनको पालन करने के लिए जैन धर्म में साल में तीन बार 10 लक्षण पर्व मनाया जाता हैं।
चैत्र शुक्ल 5 से 14 तक
भाद्र शुक्ल 5 से 14 तक
माघ शुक्ल 5 से 14 तक

इन तीनों  में भाद्रपद महीने में आने वाले  दसलक्षण पर्व को लोगों के द्वारा अन्य दो पर्व की अपेक्षा बड़ी धूमधाम और उत्साह से मनाया जाता है।

पर्युषण पर्व / दशलक्षण पर्व ( Dashlakshan Parva ) के 10 दिनों का महत्व :-

  1. उत्तम क्षमा-                                                                                                                                                                                                                                                        दसलक्षण पर का पहला दिन उत्तम क्षमा का होता हैं। हमारे शास्त्रों में कहा भी गया है कि क्षमा करना या क्षमा माँगना एक बहादुर व्यक्ति की निशानी होता है। आमतौर पर कहा जाता है कि क्षमा मांगना कमजोरी हैं जो यह समझते हैं वह वास्तव में अंधकार में जीवन जी रहे हैं क्योंकि हमारे शास्त्रों , हमारे ग्रंथों में भी कहा गया है कि क्षमा मांगना या क्षमा करना एक महान चरित के लक्षण हैं।

उत्तम क्षमा के तहत हम उन सब से क्षमा मांगते हैं जिनसे हमने कभी भी जाने अनजाने  में गलत व्यवहार किया है और उन्हें क्षमा करते हैं जिन्होंने हमारे साथ कभी ना कभी बुरा व्यवहार किया है और हम उनके प्रति कुछ द्वेष भावना लिए हुए हैं ।

इस दिन बोला जाता है कि —

“सबको क्षमा सबसे क्षमा”

  1. उत्तम मार्दव

दूसरा दिन उत्तम मार्दव

वर्तमान भौतिकवादी और उपभोक्तावादी युग में इंसान अनेक मोह माया में फस कर धर्म को ना महत्व देते हुए अनेक भौतिक वस्तुओं को महत्व देने लगा है।

जैसे धन-दौलत  ,शानो- शौकत , अहंकार आदि इंसान इन चीजों के मोह माया में पड़कर अहंकार वादी हो जाता है।

वह दूसरों को खुद से छोटा समझने लगता है । यह सर्वविदित है कि इस संसार में जो आया है ; उसे जाना ही है तथा सब नश्वर  है ।
अतः इंसान को इन भौतिकवादी वस्तुओं में ना उलझते हुए अहंकार का त्याग करके सबसे मैत्री भाव रखना चाहिए और यह ध्यान रखना चाहिए कि सभी जीवो को जीने का अधिकार है। जीवन उनका मूलभूत अधिकार है ।

अतः यह आवश्यक हैं कि खुद को पहचाने और सभी मोह माया का नाश करके ईश्वर की उपासना में ध्यान लगाएं

  1. उत्तम आर्जव

पर्व का तीसरा दिन

आमतौर पर कहा जाता है कि सादा जीवन उच्च विचार ही जीवन जीने की सर्वोत्तम कला है ।
उत्तम आर्जव के तहत धर्म हमें बताता है कि इंसान को सभी प्राणियों के प्रति सरल स्वभाव रखना चाहिए तथा अनेक कपट अंधविश्वास को त्याग कर, भ्रम को त्याग कर, भ्रम में जीना छोड़ कर , वास्तविकता में जीने का प्रयास करना चाहिए तथा खुद को ऊपर उठाने का निरंतर प्रयास करते रहना चाहिए।

आत्मा अनेक गुणों से सुसज्जित होती है जैसे ज्ञान खुशी  विश्वास सहजता सरलता।
अतः हमें बनावटीपन को छोड़कर सरलता में जीना चाहिए।

4 . उत्तम शौच

– यह 10 लक्षण पर्व का  चौथा दिन होता है।  आमतौर पर कहा जाता है कि संतोष ही परम धर्म है।  संतोष ही सुखी जीवन का आधार है। आमतौर पर इस भौतिकवादी युग में इंसान का लालच दिन प्रतिदिन बढ़ता ही जाता है तथा वह ऐसी वस्तुओं में लिप्त  हो जाता है ; जिसको प्राप्त करने की इच्छा उसको दिन प्रतिदिन एक अंधकार में जीवन में धकेल देती है ।

अतः सभी धर्मों तथा शास्त्रों में कहा गया है कि हमारे पास जो भी है हमें उसमें संतोष रखकर सुख प्राप्त करने का प्रयास करना चाहिए।

भौतिक  संसाधनों जैसे धन दौलत में खुशी खोजना ऐसे ही है। जैसे एक लंबे रेगिस्तान में समुंद्र को खोजना ।
भौतिक संसाधनों से मोह कभी भी इंसान को सुख संतोष नहीं दे सकती है

  1. उत्तम सत्य:-

दसलक्षण पर्व का पांचवा दिन  उत्तम सत्य का दिन होता है ।
सत्य शब्द की उत्पत्ति ” सत” शब्द से हुई हैं।  जिसका शाब्दिक अर्थ है वास्तविक होना है इंसान को वास्तविकता में जीवन जीने का प्रयास करना चाहिए।

आमतौर पर कहा जाता है कि इंसान अगर झूठ बोलता है तो दिन-ब-दिन उसकी आत्मा की हानि होती  जाती है तथा वह समाज में अपनी मानहानि तो करता ही है साथ ही दूसरों के सहयोग , स्नेह से भी वंचित हो जाता है ।

सत्य ग्रहण करने से आत्मा की शुद्धता , पवित्रता तो प्राप्त होती ही है साथ  ही आत्मा महानतम लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए भी प्रयासरत रहती है।

यह कहा भी गया कि सत्य से ही धर्म को प्राप्त किया जा सकता है ; सत्य से ही परम आनंद मोक्ष को प्राप्त किया जा सकता है

अतः इंसान को प्रतिदिन सत्य को ग्रहण करने प्रयास करना चाहिए।

  1. उत्तम संयम :-

दसलक्षण पर्व का छठा दिन उत्तम संयम का होता है। शास्त्रो में संयम को सफलता की कुंजी कहा गया है। अनेक शास्त्रों ग्रंथों में कहा गया है कि ससंयम ही सफलता की सर्वप्रथम या उत्तम कुंजी है ।

धर्म हमें सिखाता है कि हमें सदैव संयम का पालन करना चाहिए । अतः क्रोध को त्याग कर सबके साथ संयमित जीवन जीने का प्रयास करना चाहिए।

सत्य की तरह ही संयम पर चलकर ही हम परम आनंद मोक्ष को प्राप्त कर सकते हैं

  1. उत्तम तप :-

दसलक्षण पर्व का सातवां दिन उत्तम तप  है ।

सभी धर्मों के ग्रंथों में शास्त्रों में तप को जीवन का अहम भाग तो आना ही है साथ ही तप को ज्ञान प्राप्ति व मोक्ष प्राप्ति का मार्ग भी माना है । तप का मतलब सिर्फ उपवास या भोजन का त्याग नहीं है बल्कि गलत कार्यों से खुद को बचाए रखना तथा समाज हित के कार्यों को ग्रहण करना और उनका और समाज के भलाई से संबंधित गुणों से संबंधित गुणों को वीरता से पकड़े रहना भी तप का ही भाग है ।

अनेक महापुरुषों के जीवन में तप का अहम  योगदान रहा है । भारत भूमि पर वे अनेक महापुरषों जैसे भगवान आदिनाथ  , महावीर जैन आदि ने तप से ही ज्ञान प्राप्त किया है तथा खुद को तथा अपने अनुयायियों को मोक्ष प्राप्ति मार्ग  से परिचित कराया हैं ।

  1. उत्तम त्याग :-

दस लक्षण पर्व का आठवां दिन उत्तम त्याग का दिन होता है।
इच्छाओं का त्याग ।

जैन धर्म मे त्याग की भावना को सर्वोत्तम माना गया हैं । जैन संतो को त्याग की मूर्ति के तौर पर देखा ही होगा जैन धर्म अनुयायी केवल मोह माया,  घर बार ही नहीं बल्कि यहां तक कि उन्होंने अपने वस्त्रों का भी त्याग किया है।

  1. उत्तम अकिंचन्य :-

यह हमें मोह का त्याग करना सिखाता हैं।
हमारी आत्मा अनेक मोह माया में लिप्त रहती हैं जैसे क्रोध, ईर्ष्या , लालच , डर , वासना आदि ।
इन सब के त्याग से ही हम आत्मा को पवित्र कर सकते हैं तथा मोक्ष की प्राप्ति कर सकते हैं।

  1.  उत्तम ब्रह्मचर्य :-‘ब्रह्म’ का शाब्दिक अर्थ “आत्मा” , और ‘चर्या’ का शाब्दिक अर्थ “रखना” या “रहना” ॥
    ब्रह्मचर्य को अनेक धर्मों और शास्त्रो में साधना मार्ग पर चलने के लिए अति आवश्यक बताया हैं।
    ब्रह्मचर्य में कुछ विशेष कार्यो को किया जाता हैं तथा भौतिक वस्तुओं को त्याग करने का आग्रह किया जाता हैं।

जैन संत शरीर, वाणी और मन से ब्रह्मचर्य का पालन करते हैं।
ब्रह्मचर्य का पालन करने वाले को अत्यंत शक्ति और ज्ञान की प्राप्ति होती हैं ।  तथा  मोह माया काम वासना  से मुक्ति प्राप्त होती है।

पर्युषण पर्व / दशलक्षण पर्व ( Dashlakshan Parva ) के उद्देश्य :-

सभी धर्मों में आत्मा की शुद्धता को सर्वोत्तम कार्य माना गया हैं। दसलक्षण पर्व का मुख्य उद्देश्य आत्मा की शुद्धि हेतु कुछ विशेष कार्यो पर ध्यान केंद्रित करने से हैं।

इस पर्व के दौरान भौतिक वस्तुओं की मोह माया को छोड़ कर संतो के सानिध्य में पूजा अर्चना , तपस्या आदि धार्मिक कार्यो में समय व्यतीत किया जाता हैं।

इस पर्व के दौरान संकल्प लेते हैं कि पर्यावरण में कोई
हस्तक्षेप नही करेंगे ; मन , वाणी, शरीर से अहिंसा को धारण करेंगे ।

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