Indian Independence Act 1947 In Hind
आधुनिक भारत के इतिहास में 1947 ( Indian Independence Act 1947 In Hind ) ने भारत में एक नवीन युग की शुरुआत की। इसलिए भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम का भारतीयों के लिए विशेष महत्व है। इस अधिनियम के बाद भारत का अपना संवैधानिक सफर शुरू हो जाता है। यह ब्रिटिश संसद द्वारा भारत के विषय में पारित अंतिम अधिनियम था।
वास्तव में भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम, 1947 ( Indian Independence Act 1947 In Hind ) द्वारा माउंटबैटन की योजना को ही प्रभावी बनाया गया था। प्रधानमंत्री एटली ने माउंटबैटन योजना को विधेयक के रूप में 15 जुलाई, 1947 ई. को कामन्स सभा में तथा 16 जुलाई को लॉर्ड्स सभा में प्रस्तुत किया। शीघ्र ही 18 जुलाई 1947 ई. को इसके पारित होने के बाद इस पर शाही हस्ताक्षर हो गये। यही विधेयक भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम के नाम से जाना गया।
भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम, 1947 ( Indian Independence Act 1947 In Hind ) के प्रावधान –
- भारतीय उपमहाद्वीप को भारतीय संघ तथा पाकिस्तान के रूप में दो उपनिवेशों में बांट दिया गया।
- जो प्रदेश पाकिस्तान में सम्मिलित होंगे उन्हें छोड़कर अन्य सभी प्रदेश भारतीय संघ या हिंदुस्तान में आएंगे।
- पाकिस्तान के प्रदेश में सिंध , ब्रिटिश ब्लूचिस्तान, उ. प. सीमांत प्रांत, पश्चिमी पंजाब तथा पूर्वी बंगाल । इसमें पश्चिम पंजाब व पूर्वी बंगाल की सीमाओं का निर्धारण एक सीमा आयोग, जनमत संग्रह व निर्वाचन द्वारा किया जाना सुनश्चित किया गया।
- महामहिम द्वारा प्रत्येक राज्य के लिये एक-एक गवर्नर-जनरल नियुक्ति किया जाएगा। यदि दोनों राज्य चाहें तो वही व्यक्ति इन दोनों राज्यों का गवर्नर-जनरल रह सकता है।
- शाही उपाधि से ‘भारत का सम्राट’ शब्द समाप्त हो जायेगा। महामहिम की सरकार तथा भारतीय नरेशों के मध्य हुए समस्त संधियों की समाप्ति की जायेगी व अनुबंध रद्द समझे जायेंगे।
- 15 अगस्त 1947 के बाद भारत तथा पाकिस्तान पर अंग्रेजी संसद के क्षेत्राधिकार की समाप्ति हो जायेगी ।
- गवर्नर जनरल को आवश्यक शक्तियां दी गयीं जिससे वह भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम को क्रियान्वित कर सके।
- जब तक कि प्रत्येक राज्य द्वारा नये संविधान अपना नहीं लिये जाते। भारत सरकार अधिनियम 1935 तब तक यथासंभव इन दोनों राज्यों का शासन चलाने में सहायता देगा।
- गवर्नर-जनरल की अनुमति के आधार पर आवश्यकता पड़ने पर अधिनियम परिवर्तित भी किया जा सकता है। इसके लिए गवर्नर-जनरल की अनुमति की अनुमति आवश्यक होगी।
- गवर्नर-जनरल इस बात की आज्ञा दे सकता था कि महामहिम की भारतीय सेना का दोनों राज्यों में बंटवारा होगा।
- जब तक विभाजन कार्य की पूर्ण नहीं हो जाता तब तक गवर्नर-जनरल ही सेना की कमान तथा प्रशासन के लिये उत्तरदायी होगा। दोनों ही राज्य अपनी-अपनी सीमा में आई सेना के शासन के लिये पूर्णरूपेण उत्तरदायी होंगे।
- अंततः 15 अगस्त 1947 को भारत को दो स्वतंत्र डोमिनियनों-भारत तथा पाकिस्तान में बांट दिया गया।
- पाकिस्तान के प्रथम गवर्नर जनरल मु. अली जिन्ना बने किंतु भारत के लिये माउंटबैटन को ही साग्रह गवर्नर जनरल बने रहने को कहा गया।
- आधुनिक भारत के इतिहास में 1947 ( Indian Independence Act 1947 In Hind ) ने भारत राज्य सचिव द्वारा सिविल सेवा में नियुक्तियां ककरने और पदों में आरक्षण करने की प्रणाली समाप्त कर दी।
- 15 अगस्त 1947 से पूर्व के सिविल सेवा कर्मचारियों को वही सुविधाएं मिलती रही जो उन्हें पहले से प्राप्त थी।
भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम 1947 Indian Independence Act 1947 In Hind ने विभाजन के साथ भारत की स्वतंत्रता घोषित कर दी।
भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम, 1947 ( Indian Independence Act 1947 In Hind ) का मूल्यांकन
इस अधिनयम के सुखद पहलू थे तो कुछ प्रावधानों के दुष्परिणाम आज भी नज़र आते है। जैसे विभाजन के परिणाम आज भी यह महाद्वीप दशकों से झेल रहा है। विभाजन का ही परिणाम है की भारत और पाकिस्तान के रिश्ते आज तक सौहार्दपूर्ण नहीं हो पाए है। वास्तव में विभाजन का आधार धर्म नहीं था; भारत में अब भी कई करोड़ मुसलमान थे।
इसे सुखद पहलू की बात करे तो अंग्रेजी सत्ता समाप्त हो गयी। भारत तथा पाकिस्तान को अपने-अपने संविधान के निर्माण का अधिकार देकर भारतीय उपमहाद्वीप में साम्राज्यवादी युग का अंत कर दिया गया।
Indian Independence Act 1947 In Hind
Read Also –
- 1773 का रेगुलेटिंग एक्ट
- पिट्स इंडिया एक्ट 1784 |
- 1786 अधिनियम व 1793 का चार्टर एक्ट
- चार्टर अधिनियम, 1813