शिव का धाम : जागेश्वर धाम | JAGESHWAR DHAM IN HINDI

 

JAGESHWAR DHAM

उत्तराखंड जिसे देवों की भूमि देवभूमि कहा जाता है, जिसके कण-कण में देवता निवास करते है। यहाँ की पावन भूमि और प्रकृति प्रेम यहाँ की विशेषता है। आज का हमारा लेख उत्तराखंड राज्य के अल्मोड़ा जिले में स्थित ऐसे ही एक पावन धाम भगवान शिव के पवित्र धाम जागेश्वर धाम के बारे में है। JAGESHWAR DHAM

जागेश्वर धाम भारत का एक पवित्र एवं प्रसिद्ध तीर्थ स्थल हैं। जागेश्वर धाम आस्था के साथ-साथ सामाजिक और सांस्कृतिक महत्त्व रखता है। उत्तराखंड के पांचवे धाम के रूप में विश्व प्रसिद्ध जागेश्वर धाम भगवान शिव का पवित्र धाम है, जिसके प्रति लोगों की अनन्य श्रद्धा है। JAGESHWAR DHAM

 

 

 

JAGESHWAR DHAM ।  जागेश्वर धाम | JAGESHWAR MANDIR 

 

 

JAGESHWAR DHAM I

देवभूमि उत्तराखंड के अल्मोड़ा जिले में नगर से 35 किलोमीटर दूर जागेश्वर धाम स्थित है। यहाँ के प्राचीन मंदिर प्राकृतिक सौंदर्य से भरपूर है और इस क्षेत्र को सदियों से आध्यात्मिक जीवंतता प्रदान कर रहे हैं। यहां लगभग 125 मंदिर समूह हैं। JAGESHWAR DHAM

उत्तर भारत में गुप्त साम्राज्य के दौरान हिमालय की पहाडियों के कुमाऊं क्षेत्र में कत्यूरी राजाओं का राज था। जागेश्वर मंदिर समूह का निर्माण भी उसी काल में हुआ, इसी कारण मंदिरों में गुप्त साम्राज्य की झलक भी दिखायी देती है।

भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग के अनुसार इन मंदिरों के निर्माण की अवधि को तीन कालों में बांटा गया है:- ” कत्यूरीकाल, उत्तर कत्यूरीकाल एवं चंद्र काल ” बर्फानी आंचल पर बसे हुए कुमाऊं के इन साहसी राजाओं ने अपनी अनूठी कृतियों से देवदार के घने जंगल के मध्य बसे जागेश्वर में ही नहीं वरन् पूरे अल्मोडा़ जिले में चार सौ से अधिक मंदिरों का निर्माण किया। JAGESHWAR DHAM

 

 

 

शिव का धाम : जागेश्वर धाम

 

 

जागेश्वर के इन मंदिरों का निर्माण पत्थर की बड़ी-बड़ी शिलाओं से किया गया है। दरवाजों की चौखटें देवी देवताओं की प्रतिमाओं से अलंकृत हैं। मंदिरों के निर्माण में तांबे की चादरों और देवदार की लकडी़ का भी बखूबी प्रयोग किया गया है। इन मंदिर समूह कुछ मंदिर के शिखर काफी ऊँचे तो कुछ काफी छोटे आकार के भी हैं।JAGESHWAR DHAM1

जागेश्वर मंदिर समूह के ये मंदिर पहाड़ों की स्थापत्य और शिला कला के बेजोड़ नमूने होने के साथ-साथ पुरातत्व के नजरिये से भी बहुत महत्वपूर्ण माने जाते हैं, जिसको देखते हुए भारतीय पुरात्तत्व विभाग ने मंदिर के पास ही एक संग्रहालय भी बनाया हुआ है । इसमें जागेश्वर के मंदिरों से निकली अमूल्य प्राचीन मूर्तियों और अनेको प्रकार के प्राचीन पत्थरों, सामग्री को रखा गया है।

यह मंदिर भगवान शिव के बारह ज्योतिर्लिंगो में एक है, जिसे जगद्गुरु शंकराचार्य ने अपने भ्रमण के दौरान इसकी मान्यता को पुनर्स्थापित किया था। इस मंदिर समुह के मध्य में मुख्य मंदिर में स्थापित शिव लिंग को श्री नागेश ज्योतिर्लिंग के रूप में पूजा जाता है, इसी नाम का एक और ज्योतिर्लिंग द्वारिका के पास भी स्थापित है, जिसे श्री नागेश ज्योतिर्लिंग के रूप में भी मान्यता प्राप्त है। JAGESHWAR DHAM

 

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हमारे शास्त्रों में भारतवर्ष में स्थापित सभी बारह ज्योतिर्लिंग के बारे में कुछ इस तरह से कहा गया है :-

” सौराष्ट्र सोमनाथ च श्री शेले मलिकार्जुनम ।
उज्जयिन्या महाकालमोकारे परमेश्वर ।
केदार हिमवत्प्रष्ठे डाकिन्या भीमशंकरम ।।
वाराणस्या च विश्वेश त्रम्ब्कम गोमती तटे।।
वेधनात चिताभुमो नागेश दारुकावने ।
सेतुबंधेज रामेश घुश्मेश तु शिवालये ।।
द्वादशे तानि नामानि: प्रातरूत्थया य पवेत ।
सर्वपापै विनिमुर्कत : सर्वसिधिफल लभेत ।। “

 

इसे दोहे में एक शब्द है ” नागेश दारुकावने “ इस शब्द की एक व्याख्या कुछ इस प्रकार हैं, दारुका के वन में स्थापित ज्योतिर्लिंग, दारुका देवदार के वृक्षों को कहा जाता हैं, तो देवदार के वृक्ष तो केवल जागेश्वर में ही है। JAGESHWAR DHAM

 

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श्रावणी मेला जागेश्वर | Shrawani Mela Jageshwar | Jageshwar Fare 

 

 

शिव की महिमा और ज्योतिर्लिंग के दर्शनार्थ हजारों श्रद्धालु प्रतिवर्ष इस पावन धाम के दर्शन को आते है। हर वर्ष सावन माह में यहाँ वृहद् मेले का आयोजन होता है, जिसमें श्रद्धालुओं द्वारा पार्थिव पूजन किया जाता है। सावन माह में जागेश्वर धाम में लाखों श्रद्धालु दर्शनार्थ आते है।

इस सावन माह (श्रावणी मेले) में जागेश्वर धाम में पार्थिव पूजा का विशेष आयोजन होता है। देश विदेशों से लोग यहाँ आकर पार्थिव पूजा का आयोजन करते है और भगवान शिव का आशीर्वाद प्राप्त करते है।

पतित पावनी जटागंगा के तट पर समुद्रतल से लगभग 6200 फुट की ऊंचाई पर स्थित पवित्र जागेश्वर धाम की नैसर्गिक सुंदरता अतुलनीय है।

पुराणों के अनुसार भगवान शिव तथा सप्तऋषियों ने यहां तपस्या की थी। कहा जाता है कि प्राचीन समय में जागेश्वर मंदिर में मांगी गई मन्नतें उसी रूप में स्वीकार हो जाती थीं जिसका भारी दुरुपयोग हो रहा था।

आठवीं सदी में आदि शंकराचार्य जागेश्वर आए और उन्होंने महामृत्युंजय में स्थापित शिवलिंग को कीलित करके इस दुरुपयोग को रोकने की व्यवस्था की। शंकराचार्य जी द्वारा कीलित किए जाने के बाद से अब यहां दूसरों के लिए बुरी कामना करने वालों की मनोकामनाएं पूरी नहीं होती केवल यज्ञ एवं अनुष्ठान से मंगलकारी मनोकामनाएं ही पूरी हो सकती हैं। JAGESHWAR DHAM

 

 

कैसे पहुंचे उत्तराखंड के पांचवे धाम जागेश्वर धाम :-

 

जागेश्वर धाम मंदिर उत्तराखंड राज्य के अल्मोड़ा जिले में स्थित है जोकि उत्तराखंड राज्य की सांस्कृतिक नगरी है। अल्मोड़ा जिला अन्य शहरों से सड़क मार्ग से जुड़ा है। बस, टैक्सियां एवं अन्य यातायात के स्थानीय साधन उपलब्ध है। अल्मोड़ा नगर से ३५ किमी दूर स्थित जागेश्वर धाम सड़क मार्ग से जुड़ा हुआ है जिसके लिए यहाँ के स्थानीय यातायात के साधन उपलब्ध है।

निकटतम रेलवे स्टेशन – काठगोदाम (125 किमी )

निकटतम हवाई अड्डा – पंतनगर (१५० किमी )

 

 

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