कारगिल विजय दिवस | KARGIL VIJAY DIWAS

 

 

KARGIL VIJAY DIWAS

90 के दशक का यह वह दौर था और था जब भारत और पाकिस्तान आपसी सौहार्द की पटरी पर आ रहे थे।  पाकिस्तान के प्रधानमंत्री थे नवाज शरीफ और भारत के प्रधानमंत्री थे अटल बिहारी वाजपेयी । अटल बिहारी वाजपेयी चाहते थे कि भारत तमाम गिले-शिकवे भुलाकर पड़ोसियों से अच्छे संबंध स्थापित करें।

1999 में तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी अमन और भाईचारे का पैगाम लेकर लाहौर रवाना हुए, लेकिन पाकिस्तान को हमेशा की तरह भारत के भाईचारे का यह संदेश रास नहीं आया। एक तरफ अटल बिहारी वाजपेयी दोस्ती की इबारत लिख रहे थे तो दूसरी तरफ पाकिस्तान कारगिल जंग की तैयारी पूरी कर चुका था।

लाइन ऑफ कंट्रोल के पास कारगिल सेक्टर में आतंकवादियों के भेष में पाकिस्तानी सेना कई भारतीय चोटियों पर कब्जा कर चुकी थी। लेकिन जैसे ही भारतीय सैनिकों को इसकी खबर हुई तो हमारे भारतीय जांबाज सैनिकों ने पाकिस्तान को मुंह तोड़ जवाब दिया।

आज इस लेख के माध्यम से कारगिल विशेष पर हम बात करेंगे कारगिल में विजय दिलाने वाले हमारे महान और वीरता के साथ अदम्य साहस का परिचय देने वाले सैनिकों के बारे में और कारगिल युद्ध की कुछ विशेष फेहरिश्त के बारे में।

 

 

कारगिल विजय दिवस | कारगिल युद्ध विशेष | विजय दिवस | KARGIL VIJAY DIWAS | KARGIL WAR | VIJAY DIWAS

 

 

26 जुलाई 1999 को भारत ने कारगिल युद्ध में विजय हासिल की। इस दिन को हर साल कारगिल विजय दिवस के रूप में मनाया जाता है।  करीब 2 महीने तक चला कारगिल युद्ध भारतीय सेना के साहस और  जांबाजी का ऐसा उदाहरण है जिस पर पूरे राष्ट्र को गर्व है।  लगभग 18000 फीट की ऊंचाई पर लड़ी गई कारगिल की इस जंग में भारतीय सेना ने पाकिस्तानी फौज को हराकर वीरता की एक नई मिसाल कायम की।

कारगिल एक निर्जन पहाड़ी इलाका। जहां आबादी शून्य के बराबर है, 6 महीने बर्फ से पूरी तरह ढका होता है और केवल 6 महीने ही आवागमन संभव होता है। लेकिन इतना जटिल क्षेत्र होने के बावजूद सामरिक नजरिए से भारत के लिए बहुत महत्वपूर्ण क्योंकि श्रीनगर से लेह को जोड़ने वाला श्रीनगर-लेह राजमार्ग 1A वहां से गुजरता है। अगर कोई दुश्मन चोटियों पर कब्जा कर लेता है तो राजमार्ग 1A पूरी तरह प्रभावित होता है और देश का संपर्क लेह से कट सकता है।

इसके अलावा कारगिल ऐसे स्थान पर स्थित है जो 4 घाटियों का प्रवेश द्वार है। इसी के चलते पाकिस्तानी सेना लद्दाख में घुसने के लिए सबसे पहले कारगिल को अपना निशाना बनाती है।

1999 से पहले 1948, 1965 और 1971 के युद्ध में पाकिस्तानी सेना ने इस क्षेत्र में कब्जा जमाने का असफल प्रयास किया। सामरिक नजरिए से कारगिल कश्मीर घाटी, लद्दाख और सियाचिन ग्लेशियर पर हमारी सैन्य स्थिति और सुरक्षा के लिहाज से बेहद संवेदनशील क्षेत्र है। 1999 में इस क्षेत्र में पाकिस्तान ने एक सुनिश्चित योजना के तहत घुसपैठ की।

 

पाकिस्तान की घुसपैठ के इरादे :

 

  • पाकिस्तान की कोशिश थी कि लेह को श्रीनगर से जोड़ने वाली सड़क पर कब्जा कर लिया जाए और इसे बंद कर दिया जाए ताकि सर्दियों के दौरान लद्दाख में जरूरी सामान की आपूर्ति रुक जाए।
  • साथ ही द्रास और करगिल पर कब्जा कर नियंत्रण रेखा खुलवाई जा सके।
  • इसके अलावा चुघ घाटी, बाल्टिक और तुतुर्क क्षेत्रों की पहाड़ियों पर कब्जा कर भारत को सियाचिन से पीछे हटने पर मजबूर किया जा सके।
  • और सबसे बढ़कर नियंत्रण रेखा में बदलाव करना।
  • शिमला समझौते को खत्म करना।
  • कश्मीर को दोबारा अंतरराष्ट्रीय मुद्दा बनाना था।

 

 

कारगिल युद्ध विशेष | KARGIL WAR SPECIAL | KARGIL VIJAY DIWAS 

 

पाकिस्तान ने कारगिल क्षेत्र में घुसपैठ कर जम्मू कश्मीर पर कब्जा जमाने के अपने इस अभियान को ऑपरेशन बदला नाम दिया। हालांकि पाकिस्तान ने अपनी घुसपैठ की योजना अक्टूबर 1998 में ही बना ली थी। और इसी के तहत अक्टूबर 1998 में तत्कालीन सेना प्रमुख परवेज मुशर्रफ ने पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर के उत्तरी इलाकों का दौरा किया।

इस योजना के तहत पाक समर्थित घुसपैठिए और सैनिक 1999 के अप्रैल और मई महीने के पहले सप्ताह तक कारगिल क्षेत्र की नियंत्रण रेखा पार कर भारतीय क्षेत्र में दाखिल हो चुके थे। सबसे पहले भारतीय सेना की एक गश्ती टुकड़ी की नजर उन घुसपैठियों पर पड़ी। इसके बाद सेना ने घुसपैठियों को खदेड़ने के लिए अपना एक गश्ती दल भेजा लेकिन उसे काफी क्षति उठानी पड़ी।

घुसपैठियों ने पाकिस्तानी सेना के सहयोग से 9 मई 1999 को कारगिल शहर के बाहर सेना के मुख्य आयुध भंडार को नष्ट कर दिया। इसके साथ ही पाकिस्तानी सेना ने भारतीय चौकियों पर गोलीबारी शुरू कर दी। यह घुसपैठियो को आगे बढ़ाने और प्रोत्साहित करने की रणनीति का हिस्सा था।

 

घुसपैठियों की संख्या और फैलाव को देखते हुए भारतीय सेना ने 14 मई 1999 को ऑपरेशन फ्लश शुरू किया। हालात की गंभीरता को देखते हुए भारतीय वायु सेना भी इस अभियान में शामिल हुई। उधर भारतीय नेवी ने पाकिस्तान के खिलाफ अपने युद्धपोत अरब सागर में तैनात कर लिए, जिसके चलते पाकिस्तानी नेवी और कराची में पाकिस्तानी जहाज सक्रिय नहीं हो पाए।

इस युद्ध के दौरान भारतीय थल सेना ने अपने ऑपरेशन को ऑपरेशन विजय जल सेना ने ऑपरेशन सफेद सागर और वायु सेना ने ऑपरेशन तलवार का नाम दिया। करीब 2 महीने तक यह युद्ध चला और जुलाई के अंतिम सप्ताह में जाकर समाप्त हुआ। पाकिस्तान ने इस युद्ध में आतंकवादियों का खूब इस्तेमाल भी किया।

भारत ने पाकिस्तान को युद्ध के दौरान ही कड़ा संदेश दे दिया था कि जब तक कश्मीर की नियंत्रण रेखा से अपनी सेना पूरी तरह से वापस नहीं बुलाता उससे कोई बातचीत नहीं होगी। पाकिस्तान पर उसकी इस नापाक हरकत के लिए अमेरिका सहित दुनिया के दूसरे देशों का दबाव भी बढ़ने लगा। अमेरिका ने युद्ध के दौरान पाकिस्तान को साफ संदेश दे दिया कि अगर वह युद्ध को और बढ़ाता है, और अपनी सेना पीछे नहीं हटाता है तो अमेरिका भारत को सीधे समर्थन दे सकता है।

पाकिस्तान के तत्कालीन प्रधानमंत्री नवाज शरीफ ने अंतरराष्ट्रीय समर्थन जुटाने की पूरी कोशिश की लेकिन उन्हें कहीं से भी कोई समर्थन नहीं मिला। इस बीच भारतीय सैनिकों ने अदम्य साहस और वीरता दिखाते हुए 5 जुलाई को टाइगर हिल्स के पश्चिम के पॉइंट 4875 पर कब्जा कर लिया।  इसके बाद द्रास और बाल्टिक क्षेत्र पर भी अपना कब्जा कर लिया।

भारतीय सेना के साहस के आगे पाकिस्तानी सेना ने घुटने टेक दिए और 10 जुलाई 1999 से पाकिस्तानी सेना नियंत्रण रेखा से पीछे हटने लगी।  14 जुलाई 1999 को तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी  ने ऑपरेशन विजय की जीत की घोषणा की।  26 जुलाई 1999 तक भारतीय सेना ने सभी पाकिस्तानी घुसपैठियों और सेना को भारतीय सीमा से बाहर कर दिया और अटल बिहारी वाजपेयी ने इस दिन को विजय दिवस के तौर पर मनाने का आह्वान किया।

 

 

कारगिल जीत के हीरो | HEROES OF KARGIL WAR 

 

कारगिल युद्ध को 22 साल बीत गए है, लेकिन आज भी हमारे जांबाज़ वीरों की अदम्य साहस एवं गाथा को याद किया जाता है।  यह वह जांबाज़ नायक है जिनकी बदौलत हमने कारगिल में पाकिस्तान के छक्के छुड़ा कर दुनिया के सामने उसकी नियत की पोल खोल दी। भारतीय सेना के सैकड़ों जवानों ने इस युद्ध में विजय पाने के लिए अपनी कुर्बानी दी तो कुछ आज भी जीते-जागते वॉर हीरोज है। आपको बताते हैं कारगिल में अदम्य साहस का परिचय देने वाले जवानों के बारे में :-

 

राइफलमैन संजय कुमार :

 

तैनाती के वक्त राइफलमैन संजय कुमार मात्र 24 साल के थे। वह १३ जम्मू-कश्मीर राइफल्स में तैनात थे। वह हिमाचल के बिलासपुर जिले के रहने वाले थे। उन्होंने कारगिल युद्ध में खुद घायल होते हुए भी दुश्मनों के दांत खट्टे कर दिए और दुश्मनों के बंकर को तबाह कर दिया। उनके लगभग पूरी असॉल्ट टीम शहीद हो चुकी थी और उन्हें खुद कमर और पांव में गोली लगी थी। इसके बावजूद उन्होंने अकेले दम पर दुश्मनों के  न सिर्फ बंकर तबाह किए बल्कि दुश्मनों की ही बंदूक छीन कर दुश्मनों को ही मौत के घाट उतार दिया। उनके इस अदम्य साहस के लिए उन्हें वीरता के सर्वोच्च सम्मान परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया।

 

ग्रेनेडियर योगेंद्र सिंह यादव :

 

मात्र 19 वर्ष की उम्र में उन्हें युद्ध में तैनाती मिली। वह सेना के 18 ग्रेनेडियर्स टीम के सदस्य थे। टाइगर हिल पर जब वह दुश्मनों के बंकरो को तबाह करने की टीम के साथ निकले तो ऑपरेशन के दौरान वहां फायरिंग की चपेट में आ गए। उनके तमाम साथी शहीद हो गए। खुद योगेंद्र यादव को भी लगभग 15 गोलियां लगी लेकिन उन्होंने ग्रेनेड और अपने बंदूको से कई पाकिस्तानी सैनिकों और घुसपैठियों को मार गिराया बल्कि जख्मी हालत में भी निचली पोस्ट तक पहुंचकर जरूरी जानकारी भी पहुंचाई। योगेंद्र यादव का यह साहस अद्वितीय था। उन्हें वीरता के सर्वोच्च सम्मान परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया।

 

कैप्टन विक्रम बत्रा :

 

कारगिल युद्ध का जब-जब जिक्र आता है, तो कैप्टन विक्रम बत्रा का नाम सबकी जुबान पर होता है।  कैप्टन विक्रम बत्रा की कारगिल में शौर्य की गाथाएं युगों-युगों तक याद की जाएगी। कैप्टन बत्रा को जब कारगिल युद्ध में पोस्टिंग मिली तो उनकी उम्र मात्र 24 साल की थी। वह १३ जम्मू-कश्मीर राइफल्स के जांबाज और हर दिल अजीज अफसर थे। उनकी अगुवाई में भारतीय सेना ने प्वाइंट 5140 को कब्जे में ले लिया। कैप्टन बत्रा ने एक और मत्वपूर्ण चोटी पॉइंट 4875 को कब्जे में लेने के मिशन में जाने की इच्छा जाहिर की। इसी चोटी पर अपने साथी जवानों को रेस्क्यू करने के दौरान वह शहीद हो गए उनके इस अदम्य साहस के लिए उनको मरणोपरांत वीरता के सर्वोच्च पुरस्कार परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया।

 

लेफ्टिनेंट मनोज कुमार पांडे :

 

मात्र 24 वर्ष के मनोज उस समय १/१ १ गोरखा राइफल्स में तैनात थे। युद्ध के दौरान उन्हें खालूबार से  दुश्मन को खदेड़ने की जिम्मेदारी दी गई। उन्होंने एक के बाद एक दुश्मन की तीन पोजिशन को तबाह कर दिया। घायल होने के बावजूद वह चौथी पोजीशन पर आखिरी बंकर को ध्वस्त करते हुए शहीद हो गए।  लेफ्टिनेंट मनोज वीरगति को प्राप्त हुए लेकिन उससे पहले वह खालूबार पर भारतीय सेना के कब्जे की नींव रख चुके थे। इस अदम्य साहस के लिए मरणोपरांत उन्हें वीरता के सर्वोच्च पुरस्कार परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया जो उनका हमेशा का सपना था।

 

इनके अलावा कुछ अन्य जांबाज़ जो इस प्रकार है :

 

कैप्टन अनुज नय्यर : 17 जाट रेजीमेंट

मेजर राजेश अधिकारी : अट्ठारह ग्रेनेडियर्स

लेफ्टिनेंट कीशिंग क्लिफोर्ड नोंग्रुम : 12 जम्मू कश्मीर लाइट इन्फ़ेंटरी

कैप्टन एन केंगुरूज़ : दो राजपूताना राइफल्स

मेजर सोनम वांगचुक : लद्दाख स्काउट्स

मेजर विवेक गुप्ता : दो राजपूताना राइफल्स

मेजर पद्मापानी अचार्य : दो राजपूताना राइफल्स

लेफ्टिनेंट बलवान सिंह : अट्ठारह ग्रेनेडियर्स

नायक दिगेंद्र कुमार : दो राजपूताना राइफल्स

 

इन सभी को अदम्य साहस और वीरता के लिए महावीर चक्र से सम्मानित किया गया। इनमें कई महावीरों  को यह सम्मान मरणोपरांत दिया गया, जबकि कुछ आज भी भारतीय सेना का गौरव बने हुए है।

 

जांबाजी की यह फेहरिस्त बहुत लंबी है। इन सुरवीरों के अलावा भी कई कारगिल योद्धा अपनी कहानियों और अदम्य साहस के किस्सों से देश के प्रत्येक नागरिक को प्रेरणा दे रहे हैं।

 

 

READ ALSO ( यह भी पढ़े ) : 

 

कारगिल युद्ध : अदम्य साहस एवं शौर्य का प्रतीक | KARGIL WAR IN HINDI | KARGIL WAR

Nagar Shaili in Hindi | नागर शैली | उत्तर भारतीय मंदिर शैली |

SARAGARHI BATTLE | SARAGARHI WAR IN HINDI | सारागढ़ी का युद्ध |

Emergency in India | National Emergency in India | आपातकाल | भारत में आपातकाल

First World War : Treaty of Versailles | प्रथम विश्व युद्ध : वर्साय की संधि

 

 

HKT BHARAT के सोशल मीडिया ( social media ) माध्यमों को like करके निरंतर ऐसे और लेख पढ़ने के लिए हमसे जुड़े रहे |

FACEBOOK PAGE

KOO APP

INSTAGRAM 

PINTEREST

TWITTER

SEARCH TERMS : कारगिल युद्ध | KARGIL WAR IN HINDI | KARGIL WAR | Heroes of Kargil War | कारगिल विजय दिवस | ESSAY ON KARGIL WAR | KARGIL WAR ESSAY IN HINDI | KARGIL VIJAY DIWAS | कारगिल विजय दिवस | कारगिल युद्ध विशेष | विजय दिवस | KARGIL VIJAY DIWAS | KARGIL WAR | VIJAY DIWAS