सकारात्मक सोच की शक्ति |  Power Of Positive Thinking in Hindi

बचपन से ही सकारात्मक सोच की शक्ति ( power of positive thinking) की महत्ता के विषय में अनेक बार भिन्न भिन्न माध्यमों से सुनने या पढ़ने को मिलता रहा हैं। हम हर बार सोचते थे कि आखिर कैसे हमारे विचार हमारे जीवन को नियंत्रित नियंत्रित करते हैं। आखिर ये सकारात्मक सोच  की शक्ति क्या हैं ? / What is the power of positive thinking सकारात्मक सोच (positive thinking) कैसे काम करती हैं ?  इन्ही सब सवालो के विषय में सकारात्मक सोच की शक्ति | The Power Of Positive Thinking in Hindi लेख में चर्चा करने का प्रयास करेंगे।

एक विचार ने ही या कहे कि सकारात्मक सोच की शक्ति ने ही 

चंदू को चंद्रगुप्त मौर्य में स्थापित किया, एक विचार ने ही आचार्य चाणक्य के हाथों नंद वंश का सर्वनाश कर दिया , एक विचार ने ही नरेंद्र को स्वामी विवेकानंद में बदल कर सम्पूर्ण विश्व से परिचय करा दिया , विचारो की शक्ति ने ही युद्धभूमि में धनुष न उठाने वाले अर्जुन को धनुष उठवा कर महाभारत का नायक बना दिया , विचारो की शक्ति ने ही महात्मा बुद्ध , महावीर जैन आदि महापुरुषों को कल्याण के लिए भारतवर्ष को समर्पित किया हैं।

हमारे जीवन की दिशा को  गहराई से प्रभावित या फिर कहे कि प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से निर्धारित करने वाली सबसे अहम कारक होती हैं – हमारी सोच ।

सकारात्मक सोच ( positive thinking ) जीवन को सकारात्मकता की तरफ लेकर जाती है , वही नकारात्मक सोच जीवन में आगे बढ़ने में अनेक समस्याओ को जन्म देती हैं। 

विचार हमारे मन में उठने वाला एक वो हथियार है जो हमे आबाद भी कर सकता है और बर्बाद भी। विचारो में इस सृष्टि की सबसे ताकतवर अदृश्य शक्ति निवास करती हैं। बहुत हद तक हमारे जीवन की नियति विचारों के नियंत्रण में ही होती हैं। इसलिए हमेशा सकरात्मक विचार या सकारात्मक सोच ( positive thinking ) को ही धारण करने की बात कही जाती हैं। 

इसलिए ही हमारे ग्रंथो में, महापुरषों ने विचारों के सजग रूप से विश्लेषण पर बल दिया हैं। हमारे विचारों को हमारे भविष्य की परछाई तक बताया गया हैं।  बड़े बड़े साम्राज्य का अस्तित्व भी विचारों पर टिका हुआ ही होता हैं।  यदि राजा कुविचार लाता है और कुविचारों का ही अनुशरण करता है तो एक न एक दिन उसके साम्राज्य का अंत निश्चित होता हैं।

सकारात्मक विचार या सकारात्मक सोच कैसे काम करती हैं –

इस विषय मे आचार्य चाणक्य ने सचेत भी किया है कि –


विचारों को वश में रखो,
यही तुम्हारी वाणी बनेंगे।
वाणी को वश में रखो,
यही तुम्हारा कर्म बनेगी।
कर्मों को वश में रखो,
यही तुम्हारी आदतें बनेंगे।
आदतों को वश में रखो,
यही तुम्हारा चरित्र बनेंगी।
और चरित्र को वश में रखो
क्योंकि इसी से तुम्हारा भाग्य बनेगा।

इस प्रकार हमारे भाग्य का निर्माता हमारे विचारों को ही बताया गया हैं।  आज जितने भी अविष्कार हुए है वो सब एक विचार के ही परिणाम हैं। आज अगर हम बल्ब का प्रकाश ले पा रहे हैं , रेलगाड़ी से यात्रा कर पा रहे हैं , फ़ोन या लैपटॉप में पूरी दुनिया की जानकारी का हमारे सामने एक बटन दबाने से पेश होना हो ; वर्तमान में जितने भी कार्य हमारे सामने हो रहे है वो कभी न कभी एक विचार के रूप में ही पनपे होंगे।

अब अगर ये सर्वविदित है ही कि विचार की शक्ति हमारे जीवन मे महत्वपूर्ण स्थान रखती है ; तो प्रश्न उठता है कि क्या विचारों को नियंत्रित करना अपने जीवन की दशा को नियंत्रित  करने के समान हैं ??
निश्चित तौर पर इस सवाल का जवाब – हां ही होगा ।
इसलिए ये सबसे प्रमुखता से किया जाने वाला कार्य होना चाहिए कि आखिर हम कोनसे विचारों को अपने जीवन में  जगह दे रहे हैं।

संगती का  विचारो पर प्रभाव 

अनेक सामाजिक विशेषज्ञों या  अन्य महापुरषों ने कहा भी है कि अगर हम अपने व्यक्तित्व को जानना चाहते हैं तो हमें अपने मित्रों (जिन मित्रो / दोस्तों के साथ जीवन का अधिकतम समय व्यतीत किया हैं ) के गुणों का विश्लेषण कर लेना मात्र ही पर्याप्त होगा ।  तात्पर्य यह है कि हमारा व्यक्तित्व भी वैसा ही होगा जैसा हमने अपनी संगति से विचार ग्रहण किए होंगे। 

अर्थात जितना आवश्यक यह है कि हम अपने ग्रहण किये जाने वाले विचारों का विश्लेषण करें ; उतना ही महत्वपूर्ण यह हैं कि हम अपनी संगति का चुनाव भी उतनी ही सजगता से करें।

परंतु दुर्भाग्य की बात यह हैं कि जितनी ख़ोज और समय व्यतीत करके हम अपने जीवन में भौतिक वस्तुओं ( कपड़े, या अन्य भौतिक वस्तुयें) का प्रवेश कराते जा रहे हैं; हम अपने जीवन को उतना ही तनावपूर्ण बनाते जा रहे हैं। अतः यह अत्यंत आवश्यक है कि हम अत्यंत सजगता से अपने जीवन मे विचारों की महत्ता को समझे और तभी उत्तम प्रकार के विचारों को अपने जीवन मे प्रवेश करने दे।

महात्मा गांधी जी की जीवनी सत्य के मेरे प्रयोग में एक वाक्य इस विषय को अत्यंत परिपूर्णता से रखता प्रतीत होता हैं ।
उसमें एक महाशय गांधी जी को कहते है कि-


तुम ‘सभ्य’ लोग सब डरपोक हो । महापुरुष किसी की पोशाक नहीं देखते । वे तो उसका दिल  परखते हैं ।”

अथार्त ये स्पष्ट है कि भौतिक वस्तुओं की महत्ता महापुरुषों की नज़रों में नगण्य मात्र हैं ; उन्हें आपके विचारों से मतलब मात्र होता हैं।

सकारात्मक सोच की शक्ति |  Power Of Positive Thinking in Hindi

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