संघर्ष से ही सामर्थ्य अर्जित होता है। No Struggle No Progress Article In Hindi |

No struggle No Progress In Hindi

जीवन में किसी का भी जीवन पूर्णतः कष्टों या समस्याओं से मुक्त नहीं हो सकता हैं। यदि किसी का जीवन सुख सम्पन्नता या भौतिक सुखो से परिपूर्ण है तो उसे कही भविष्य में और पाने की मानसिक अशांति है या वो किसी स्वास्थ्य कारणों से दुःखी हैं। वही कोई अन्य जीवन में सुखो की प्राप्ति के लिए प्रयास कर रहा होता हैं। ऐसे ही सभी व्यक्ति किसी न किसी भागदौड़ में लगे हुए है। सभी के जीवन में किसी न किसी तरह के संघर्ष चल ही रहे होते है। यहाँ हमे देखना यह होगा कि संघर्ष भी एक तरह से हमारे गुरु ही होते है। जो हमे बहुत कुछ सीखा कर जाते हैं।  No struggle No Progress Article In Hindi

स्वामी विवेकानंद जी ने कर्म योग पुस्तक में कहा है –

सुख और दुख उसकी आत्मा के सामने से होकर जाते हैं और अनेक भाव चित्र छोड़ जाते हैं । इन भाव चित्रों की समष्टि का ही नाम मनुष्य का चरित्र हैं। किसी का भी चरित्र लीजिए; वह उसकी भावनाओं, उसकी मानसिक  प्रवृतियों की समष्टि है। उस चरित्र के निर्माण में सुख-दुख का समान भाग हैं।  चरित्र निर्माण में सुख और दुख समान रुप है और कहीं-कहीं दुख सुख से अधिक शिक्षा देता हैं।  संसार के बड़े-बड़े महापुरुषों के चरित्रों का अध्ययन करने से पता चलता है कि दुख ने सुख से अधिक शिक्षा दी; धन से अधिक निर्धनता ने उन्हें महत्ता प्रदान की; प्रशंसा से नहीं अपितु निंदा के प्रहार सहकर उनकी अंतःज्योति का जागरण हुआ। 

यहाँ स्वामी जी स्पष्ट तौर पर कहते है कि संघर्ष भी हमे जीवन में गुरु के समान अनेक कुछ सीखा कर  जाता है।

अंग्रेजी में भी एक कहावत हैं –

If there Is No Struggle, there Is No Progress

 

संघर्ष से ही सामर्थ्य अर्जित होता है। No Struggle No Progress Article In Hindi |
संघर्ष से ही सामर्थ्य अर्जित होता है। No Struggle No Progress Article In Hindi |

जीवन में कठिनाई तो आएगी ही, कहा भी जाता है कि यदि आपके रास्ते में कोई कठिनाई नहीं आ रही है तो शायद आप गलत रास्ते पर चल रहे हो । जीवन में आयी प्रत्येक समस्या को एक अवसर समझो , अवसर अपनी क्षमताओं को आजमाने का और क्षमताओं को बढ़ाने का।

समस्या से निकलने के बाद हम वह नहीं रह जाते हैं , जो हम समस्या आने से पहले थे, बल्कि जीवन में समस्याओं से निकलने का अनुभव तो प्राप्त करते ही हैं। साथ ही हमारे आत्मविश्वास और क्षमताओं का दायरा भी बड़ा हो जाता है।इसलिए यदि समस्या जीवन में आ रही है तो आप उसे अवसर में बदलने की इच्छाशक्ति रखो। हमें निराश तो तब होना चाहिए जब हमारा जीवन एक ही तरह से चल रहा हो क्योंकि

एक ही तरह के जीवन से कुछ नया कभी प्राप्त नहीं होगा । फिर चाहे वह ‘नई मंजिल ‘ हो, ‘नई सफलता ‘हो या ‘नया अनुभव’ हो।

कहा भी जाता है कि विपत्ति कायरों को ही दहलाती है , योद्धा तो समस्याओं की तरफ एक कदम बढ़ा कर उनका आलिंगन करते हैं। समस्या से निकलकर पहले से अधिक शक्ति अर्जित करते हैं । अगर हम विचार करें तो इतिहास क्या है,

इतिहास केवल कुछ दृढ़ इच्छाशक्ति , धैर्यवान और संयमित व्यक्तियों की कहानियां हैं। जो समस्याओं को जीवन का हिस्सा मानकर उनको हराते हुए आगे बढ़ते गए ।

समस्याओं से मनुष्य हो महापुरुष हो या देवता हो कोई नहीं बच पाया है । भगवान राम के जीवन में भी अनेक समस्याएं मौजूद थी उन्हें विजय करके ही राजकुमार राम भगवान राम बने।

बल्ब के आविष्कारक एडिशन से जब उनकी असफलताओं के बारे में पूछा गया। तो उन्होंने कहा कि उन्हें असफलताएं नहीं कहा जा सकता।

मैं असफल नहीं हुआ हूं बस कुछ हजार ऐसे तरीके खोज लिए हैं जो काम नही करते हैं।”

स्वामी विवेकानंद जी ने इसी विषय के बारे में कहा था कि प्रयास करो सफल हुए तो नेतृत्व करोगे , नहीं तो मार्गदर्शन करोगे । आप देखोगे कि इसमें हार तो कहीं है ही नहीं। इसलिए घर से बाहर निकले अपने कंफर्ट जोन को छोड़ें ।

जीवन में प्रयास करोगे तो ही कुछ प्राप्त करोगे प्रयास करके देखो हार तो मिलती ही नहीं है या तो जीत मिलती है सीख मिलती है।

 

प्यासे को ही कुए पर जाना होता है यदि सफलता की भूख हमारे अंदर भी है तो बढ़ो अपने कुँए रूपी सफलता की ओर। प्रकृति हमें खुद ही ज्यादा से ज्यादा प्राप्त करने के लिए प्रेरित करती है । यहां ज्यादा से ज्यादा प्राप्त करने का मतलब भौतिक वस्तुओं से नहीं बल्कि अपनी चेतना का विकास करने से है।

प्रकृति ने हमें सबसे बड़ा वरदान दिया है हमारी चेतना हमारा अनंत विचारशील मस्तिष्क। जिसका जितना अधिक प्रयोग करोगे उतनी ही अपार संभावनाएं खोजते जाएंगे इसलिए जब प्रकृति ने हमें अपार संभावनाएं दी है तो उन संभावनाओं को अवसर में बदलो और बाहर निकलो अपने कंफर्ट जोन से। और विस्तार कर दो अपने दायरे का।

समाज में दो प्रकार के लोग होते हैं एक वह जो अपनी दृढ़ इच्छाशक्ति और निर्णय के आधार पर परिस्थितियों को परिवर्तित कर देते हैं । दूसरे वे जो परिस्थितियों और हालातों से हार कर खुद के निर्णय बदल देते हैं ।

पहले प्रकार में शामिल होने के लिए दिन रात मेहनत करते रहे । अपनी क्षमताओं का विकास करते रहे अपनी जड़ों से जुड़कर ही शीर्षतम ऊंचाई तक पहुंचने का प्रयास करें । जिस प्रकार पेड़ से टूटा पता अगर पानी की धार में गिर जाए तो उसी दिशा में बहने लगता है और यदि हवा के बवंडर में फस जाए तो वही घूमता रहता है । हमें ऐसा नहीं बनना है बल्कि अपनी जड़ों से जुड़ कर पानी की धार और तूफान का हिम्मत से सामना करना है।

संघर्ष से ही सामर्थ्य अर्जित होता है के कुछ उदाहरण । No struggle No Progress examples In Hindi | No struggle No Progress In Hindi

महात्मा बुद्ध –

इसी क्रम में आगे देखे तो महात्मा बुद्ध महलों में रहकर या भौतिक सुखों का भोग करके बुद्ध नहीं बने थे।  उनके सिद्धार्थ से महात्मा बुद्ध तक के सफर को तय करने में उन दृश्यों का मुख्य योगदान है; जो उन्होंने महल से बाहर सैर करते हुए देखे थे। उनमें से एक बुजुर्ग व्यक्ति जिनकी कमर झुक चुकी थी मतलब कि वो झुक कर चलते थे।

एक बीमार व्यक्ति जो रोगो से पीड़ित था  , एक मृत व्यक्ति, वही एक सन्यासी इन दृश्यों ने अपार भौतिक सुखों में रहने वाले सिद्धार्थ के हृदय को विचलित कर दिया है। यही से दुखों के अनुभव के कारण उनके महात्मा बुध बनने का सफर शुरू होता है। यदि वह अपना पूरा जीवन भौतिक सुखों ,धन-वैभव के साए में ही गुजारते तो कभी महात्मा बुद्ध नहीं बन पाते।

भगवान् श्री राम –

वहीं यदि अगला उदाहरण श्रीराम का ले तो उन्होंने भी वनवास को स्वीकार कर कष्टों के मार्ग का चयन किया। उसी मार्ग पर आगे बढ़ते हुए अनेक प्रकार के कष्टों और समस्याओं पर विजय प्राप्त कर वो आज पूजनीय हैं।

पांडव / अर्जुन 

वहीं यदि बात करें पांडवों की तो जब उन्हें वनवास और गृह त्याग कर जाना पड़ा। तो उन्होंने भी जीवन की समस्याओं को झेलते हुए निरंतर अपनी शक्ति में वृद्धि की। यदि अर्जुन महल के अंदर ही पूरा जीवन व्यतीत करते तो शायद वह कभी अनेक प्रकार के रण कौशल या शिक्षा को ग्रहण नहीं कर पाते क्योंकि अनेक प्रकार की युद्ध कौशल उन्होंने वनवास और गृहत्याग के दौरान ही प्राप्त किये।

जब पांडवों को गृहत्याग का आदेश दिया गया था तो श्री कृष्णा ने अर्जुन को आदेश दिया था कि अपनी कौशल क्षमताओं में वृद्धि करने का यही उपयुक्त समय है।

अतः पुरे भारत वर्ष में जहाँ से भी रण कौशल या कोई नया अस्त्र मिले उसे प्राप्त करो।  अर्जुन ने भी उस कष्ट के समय को अपनी क्षमताओं में बढ़ाने में लगाया।

डॉ एपीजे अब्दुल कलाम  

मिसाइल मैन एपीजे अब्दुल कलाम साहब बचपन से सुख सुविधा से संपन्न परिवार के नहीं थे।  उन्हें भी बचपन में अखबार बेच कर जीविका चलानी पड़ी थी ।

ऐसे ही अनेक उदाहरण हमारे सामने मौजूद होंगे। जिन्होंने कठिन समय को झेलकर सफलता की उच्च स्थिति को प्राप्त किया।

बाबासाहेब अंबेडकर

सबसे बड़ा उदाहरण है  बाबासाहेब अंबेडकर – उनकी पृष्ठभूमि भी सुविधा संपन्न परिवार की नहीं थी। उसके बाद भी  उन्होंने शिक्षा में अनेक डिग्री हासिल की और भारत के प्रथम मंत्रिमंडल में मंत्री के तौर पर स्थान तो प्राप्त किया ही साथ ही उन्होंने विश्व के सबसे बड़े संविधान को लिखने में भी अपना अनुभव एवं योगदान दिया।

हम कह सकते है कि इसकी बहुत संभावना है कि जो व्यक्ति दुःख दर्द देखकर उनसे निकलकर जीवन में ऊँचे मुकाम तक जा पहुंचे हैं। यदि उनके जीवन में हमेशा सुख सुविधा की कोई कमी न होती तो शायद ही वो कभी यहां तक पहुंच पाते हैं।   क्योकि सुविधा सम्पन्नता जहाँ हमे आरामदायक ज़िंदगी देती है तो वही हमसे बहुत कुछ ले भी लेती है जैसे कि कठिन समय में काम आने वाली दृढ़ इच्छाशक्ति , बार बार असफल होने के बाद भी फिर उठ खड़े होने का जज्बा।

सत्य है कि जीवन के कठिन समय ने ही अनेक महान पुरुषों के लिए गुरु का कार्य किया हैं।  और उन्हें ऐसी अमूल्य शिक्षा प्रदान की जो उनके रास्ते में आने वाली अनेक समस्याओं का समाधान करने में सहायक हुई।  एक तथ्य देखोगे जिस व्यक्ति ने संघर्षों में जीवन व्यतीत किया होता है वह एक अलग ही शक्ति और आत्मविश्वास से संपन्न होता है।

 

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