पहाड़ो का दरकना : एक भयावह आपदा का संकेत | Mountain Crevice in Hindi
Mountain Crevice in Hindi
कहा जाता है कुदरत का कानून सबसे बड़ा कानून होता है, और कुदरत कब क्या कर जाए यह किसी को नहीं पता होता है। आजकल उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश में कुछ ऐसा ही भयावह मंजर देखने को मिल रहा है। आज इस लेख के माध्यम से हम हिमालयी राज्यों खासकर उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश में पहाड़ो के दरकने के बारे में चर्चा करेंगे। इस लेख के माध्यम में हम जानेंगे की पहाड़ क्यों दरक रहे है ? Pahad Tut Rahe Hai | Mountain Crevice in Hindi | Mountain Crevice | Hills Breaking
कुदरत के कहर से सभी लोग सहमे हुए से है। प्रकृति जब कहर बरपाती है तो फिर उसकी चपेट में चाहे जो आये उसे बक्शा नहीं जाता। हिमाचल और उत्तराखंड राज्य में इन दिनों प्रकृति कुछ इसी प्रकार कहर बरपा रही है। भूस्खलन के कारण जगह-जगह तबाही के मंजर सामने आ रहे है।
भूस्खलन पहाड़ो की प्राकृतिक आपदा है, जो पहाड़ो से पत्थर खिसकने या गिरने पर होती है। भूस्खलन में पहाड़ो से पथरीली मिट्टी का अचानक बहाव हो जाता है। ऐसा भारी बारिश, बाढ़ या भूकंप की वजह से होता है। देश के बहुत से राज्यों में भूस्खलन हो रहा है, ज्यादातर हिमालयी राज्यों जिनमें उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश में अभी हाल ही में विशाल पहाड़ टूट गए जिससे लोगों की जिंदगी में अफरा तफरी मच गयी। इस भयावह मंजर ने हम सभी को यह सोचने पर विवश कर दिया है कि क्या हमने जो प्रकृति के साथ किया है, वही हमारे साथ प्रकृति कर रही है।
इस वजह से काफी नुकसान हो रहा है, काफी लोगों की मौत हो रही है लेकिन एक प्रश्न जो हर किसी के मन में जरूर है कि अचानक यह प्राकृतिक आपदा इतनी रफ़्तार से आगे क्यों बड़ गई है। ऐसा क्या किया जाये की लोगों की जान बच सके ?
आपने भूस्खलन होते हुए प्रायः देखा ही है लेकिन हाल ही में जो पहाड़ टूटने के दृश्य सामने आये है, ऐसी तबाही का मंजर शायद ही कभी किसी ने देखा हो। कुछ लोग इन आपदाओं को जिंदगी की अनिश्चितता से जोड़कर देखते होंगे लेकिन पहाड़ो का इस तरह से टूट जाना किसी भयावह मंजर और आने वाली विपत्ति से कम नहीं है।
पहाड़ो के दरकने से जिस तरह की आपदा का मंजर सामने आया है वो कही न कही हमारे लिए प्रकृति की चेतावनी ही है। देश में और मुख्यतः हिमालयी राज्यों में इस प्रकार की आपदाओं का खतरा बढ़ता जा रहा है, जिसे रोकने के लिए यह बेहद जरुरी है कि ऐसा क्यों हो रहा है।
भूस्खलन होने के वैसे तो बहुत से कारण है जैसे भूकंप, अत्यधिक वर्षा, वृक्षों का कटान, पहाड़ो पर अत्यधिक निर्माण कार्य चाहे वह सड़क मार्ग का हो या कोई निर्माण कार्य। वृक्षों का कटान कर हम ही इन आपदाओं को बढ़ावा देने का काम कर रहे है।
पहाड़ो का इस तरह से गिरना कहीं न कहीं प्रकृति से की गयी छेड़छाड़ ही है। अपनी सुविधाओं के खातिर हम वृक्षों का कटान कर रहे है, सड़के मानकों से विपरीत बना रहे है अर्थात हम अपनी सुविधाओं के लिए बस प्रकृति का दोहन कर रहे है। जिसके परिणाम हम सभी के समक्ष है। सरकारें वृक्षारोपण की योजनाएं बनाती है पर धरातल में उनको लागू नहीं करती मात्र कागजो में ही वृक्षारोपण पूर्ण हो जाता है।
बाढ़, भूकंप, भूस्खलन जैसी समस्याओं को ध्यान में रखा जाये तो यहाँ के पहाड़ों को कितना काटा जाये, यह पर्यावरण के अनुकूल ध्यान में रखना नितांत आवश्यक है। जहा घने जंगल है वहाँ पेड़ो को नुकसान पहुँचाये बिना सड़क बननी चाहिए। सड़क चौड़ीकरण का टिकाऊ डिजाइन विशेषज्ञों द्वारा बनवाया जाना चाहिए। सड़क निर्माण में निकलने वाला मलबा नदियों में सीधे न डालकर सड़क के दोनों ओर सुरक्षा दिवार के बीच डालकर वृक्षारोपण किया जाना चाहिए।
हिमालयी राज्यों की दुविधा यह भी है कि यहां विकास भी चाहिए और हरियाली भी। दोनों के बीच संतुलन ही एकमात्र हल है ऐसी विपदाओं को रोकना। हिमालयी भू-भाग में विकास का यह नया प्रारूप स्थानीय पर्यावरण, पारिस्थितिकी और जनजीवन पर भारी पड़ रहा है। सड़क निर्माण, सड़क चौड़ीकरण, बड़ी जलविद्युत परियोजनाओं व सुरंगों का निर्माण इस भूकम्प प्रभावित क्षेत्र की अस्थिरता को बढ़ा रहा है। भारी व अनियोजित निर्माण कार्याें का असर जनजीवन पर भी पड़ रहा है। इन बड़ी परियोजनाओं से भूस्खलन, भू-कटाव, बाढ़, विस्थापन आदि की समस्या लगातार बढ़ रही है। कागजों में हो रहा पौधारोपण अभियान शायद जमीनी स्तर पर हो तो ऐसे भयावह दृश्य कम दिखे।
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