ग्रीष्म लहर क्या हैं , इससे होने वाले नुकसान । What Is Heat Waves in Hindi

 

What Is Heat Waves in Hindi Upsc

ग्रीष्म लहर ( Heat Waves in Hindi )- 

असामान्य रूप से उच्च तापमान की अवधि को ग्रीष्म लहर  या हीटवेव (Heat Waves in Hindi) कहते हैं।
भारत में ग्रीष्म लहर मई-जून महीने के दौरान देखने को मिलती है या कहे कि इस दौरान होने वाली यह एक सामान्य घटना है ।
कुछ मामलों में ग्रीष्म लहर का विस्तार जुलाई महीने तक भी देखा जा सकता है।

भारत तथा विश्व पर ग्रीष्म लहर का बढ़ता प्रभाव –

यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी ने मई 2022 में उत्तर पश्चिम भारत के कुछ हिस्सों में भूमि की सतह का तापमान 55 डिग्री सेल्सियस के आसपास दर्ज किया है।
वही कुछ आंकड़ों के अनुसार कुछ हिस्सों में यह तापमान 60 डिग्री सेल्सियस को भी पार कर गया था ।

भारत मौसम विज्ञान विभाग के अनुसार पिछले कुछ दशकों की तुलना में वर्ष में ग्रीष्म लहर दिवसों की संख्या में भी बढ़ोतरी हो गई है । जैसे विभाग के अनुसार भारत में 1981 से 1990 में ग्रीष्म लहर दिवसों की संख्या 413 थी , वही वर्ष 2011 से 2020 में ग्रीष्म लहर दिवसों की संख्या 600 से भी अधिक हो गई है।

ग्रीष्म लहर दिवसों में हुई यह बढ़ोतरी जलवायु परिवर्तन से उत्पन्न प्रभाव के कारण हुई है।

ग्रीष्म लहर (Heat Waves in Hindi) घोषित करने के मानदंड या ग्रीष्म लहर को कैसे निर्धारित किया जाता है

यदि किसी स्थान पर मैदानी इलाके में अधिकतम तापमान कम से कम 40 डिग्री सेंटीग्रेड हो । वही पहाड़ी क्षेत्र में कम से कम 30 डिग्री सेंटीग्रेड तक पहुंच जाता है तो यह स्थिति ग्रीष्म लहर की स्थिति मानी जाती है।

यदि किसी स्थान का तापमान सामान्य अधिकतम 40 डिग्री सेंटीग्रेड से कम या उसके बराबर होता है । तो यदि 5 डिग्री सेंटीग्रेड से 6 डिग्री सेंटीग्रेड की वृद्धि सामान्य तापमान में होती है, तो इस स्थिति को ग्रीष्म लहर माना जाता है।

वहीं यदि सामान्य तापमान से 7 डिग्री सेंटीग्रेड या उससे अधिक की वृद्धि होती है , तो इस स्थिति को चरम ग्रीष्म लहर की स्थिति माना जाएगा ।

भारत में ग्रीष्म लहर से उत्पन्न होने वाले प्रभाव (Effects of Heat Waves in Hindi)  : – 

ग्रीष्म लहर के कारण विभिन्न क्षेत्रों पर नकारात्मक प्रभाव दृष्टिगोचर होते हैं ।

यहां निम्न बिंदुओं के आधार पर होने वाले प्रभाव का वर्णन किया जाएगा –
आर्थिक प्रभाव , मानव जीवन पर प्रभाव, ऊर्जा के उपयोग पर प्रभाव , कृषि क्षेत्र पर प्रभाव , खाद्य सुरक्षा का संकट , श्रमिकों पर प्रभाव , कमजोर वर्गों पर प्रभाव आदि।

कमजोर वर्गों पर प्रभाव :- 

अनेक रिपोर्ट और दावों के अनुसार बढ़ती ग्लोबल वार्मिंग और जलवायु परिवर्तन के कारण कमजोर वर्गों पर नकारात्मक प्रभाव पड़ेंगे ।

कमजोर वर्ग प्राकृतिक आपदाओं के प्रति अत्यधिक सुभेद्यता रखते हैं । संसाधनों की कमी के कारण यह वर्ग अपने बचाव करने के लिए सक्षम नहीं होता है । वही अगर देखे तो ग्लोबल वार्मिंग , जलवायु परिवर्तन आदि कारको में इस वर्ग का न्यूनतम योगदान होता है परंतु इन सभी प्राकृतिक आपदाओं से सबसे अधिक प्रभावित कमजोर वर्ग ही होते हैं ।

कृषि पर प्रभाव :-

तापमान की अधिकता के कारण पैदावार पर भी नकारात्मक प्रभाव पड़ता है । एक अनुमान के अनुसार ग्रीष्म लहरों के कारण गेहूं के उत्पादन में 6 से 7% तक की कमी होने का अनुमान लगाया गया है ।

दुग्ध उत्पादन पर प्रभाव :- 

तापमान बढ़ने से या कहे कि ग्रीष्म लहरों के कारण पशुओं की सेहत पर भी नकारात्मक प्रभाव पड़ता है तथा उनकी दुग्ध उत्पादन की क्षमता कम होती है ।

कार्नेल विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं के अनुसार एक अनुमान के तहत बढ़ते हुए ग्रीष्म प्रभाव के कारण वर्ष 2005 के स्तर की तुलना में वर्ष 2100 तक भारत के शुष्क और अर्ध शुष्क डेरी फर्मों में दूध का उत्पादन में 25% तक की कमी आ सकती है

आर्थिक प्रभाव :- 

उच्च तापमान के कारण अर्थव्यवस्था की क्रियाओं पर भी नकारात्मक प्रभाव पड़ता है

बढ़ती ग्रीष्म लहर के कारण मजदूरों को अत्यंत नुकसान उठाना पड़ता है । जिससे उनकी क्षमता प्रभावित होती है और अर्थव्यवस्था पर भी नकारात्मक प्रभाव पड़ते हैं।

ऊर्जा उपयोग पर प्रभाव :- 

बढ़ते ग्रीष्म तनाव के कारण ऊर्जा का अत्यधिक उपयोग किया जाता है।
एक अनुमान के अनुसार भारत में वर्ष 2021 के मई महीने की अपेक्षा वर्ष 2022 के मई महीने में औसत दैनिक मांग में 30% की बढ़ोतरी हुई है।

मानव मृत्यु में बढ़ोतरी :- 

ग्रीष्म लहरों के कारण मानव मृत्यु की संख्या में बढ़ोतरी होगी । समाज में संसाधनों की कमी और जागरूकता कार्यक्रमों के अभाव के कारण यह स्थिति और गंभीर बन जाती है।

टाटा सेंटर फॉर डेवलपमेंट और शिकागो विश्वविद्यालय की वर्ष 2019 की एक रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2100 जलवायु परिवर्तन के कारण होने वाली अत्यधिक गर्मी से प्रति वर्ष 15 लाख से अधिक लोग मृत्यु के शिकार होंगे।

समग्रतः देख सकते है दिनोंदिन ग्रीष्म लहर का खतरा बढ़ता ही जा रहा हैं। ग्रीष्म लहर की विकट स्थिति से बचने के लिए समय रहते सरकार और समाज स्तर पर समन्वित प्रयास करने होंगे।

ग्रीष्म लहर से बचने के लिए उपाय :-

1. पेड़ पौधे ज़्यादा से ज़्यादा लगाएं –

ये एक ऐसा उपाय है जिसे समाज प्रशासन की सहायता से या एक स्तर पर अपने आप भी कर सकता हैं। अतः प्रत्येक नागरिक को ये दायित्व लेना चाहिए कि वो अपने जीवनकाल में कुछ पेड़ो को अवश्य लगाएं भी और हो  सके तो कुछ पेड़ो को बचाने का दायित्व भी निभाएं।

2. डार्क रूफ्स को बदलना :- 

शहरों को कंक्रीट का जंगल भी कहा जाता हैं , शहरों में अधिकतर सतह को गहरे रंग से ढका जाता हैं।  जो गर्मी को अवशोषित करते हैं। छतो , पार्किंग स्थलों , पार्क आदि में सतह पर हलके रंग का प्रयोग करना चाहिए जिससे ये गर्मी को काम अवशोषित करें।

३. मिश्रित फसलों को बढ़ावा देना –

किसान क्षेत्र के अनुसार कुछ ही फसलों को पारम्परिक तरीको से लगाता चला आ रहा हैं।  ऐसे में मिश्रित फसलों को बढ़ावा देना होगा।

फसलों की क्षति की पूर्ति हेतु बिमा के दायरे को बढ़ाने की आवश्यकता हैं।  भविष्य में खाद्य और पोषण सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए फसल चक्र को अपनाना होगा।

४. भवनों के निर्माण में कूलिंग तकनीक को अपनाना – 

पैसिव कूलिंग प्रौद्योगिकी का प्रगोग पप्राकृतिक रूप से हवादार भवनों के निर्माण में किया जाता हैं।

जलवायु परिवर्तन पर अंतर-सरकारी पैनल (IPCC) की AR6 रिपोर्ट में प्राचीन भारतीय भवन डिज़ाइनों का हवाला दिया गया है।  जहाँ इस प्रौद्योगिकी का उपयोग किया गया है। इसे ग्लोबल वार्मिंग के संदर्भ में आधुनिक भवनों के अनुकूल बनाया जा सकता है।

5. ग्रीष्म लहर को प्राकृतिक आपदा के रूप में चिह्नित करना :-

ग्रीष्म लहर को प्राकृतिक आपदा घोषित किया जाता है तो राज्य और ज़िला प्रशासन को क्षेत्रीय स्तर पर हीटवेव एक्शन प्लान तैयार करने में मदद मिलेगी।

६. जनजागरूकता :- 

इस तरह की घटनाओं से बचाव के जनजागरूकता का होना अत्यंत आवश्यक हैं।  इसमें जनता को जागरूक करना चाहिए कि ऐसी स्थिति में अनावश्यक घरों से बाहर न निकले , ऐसे मौसम में कैसे घरों में शीतलन किया जाए उसकी जानकारी दी जाए।  उचित खान पान के विषय में जागरूक किया जाए।

जनजागरूकता का प्रसार करने के लिए सोशल मीडिया , प्रिंट , इलेक्ट्रिक मीडिया का प्रयोग किया जा सकता हैं।

७. तकनीक के माध्यम से पूर्व चेतावनी प्रणाली को विकसित किया जाए –

पूर्व चेतावनी प्रणाली के माध्यम से ग्रीष्म लहर से होने वाली मौतों को रोका जा सकता है।

 

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